हमें पूजा के प्रारंभ में प्रतिदिन शांति पाठ करना चाहिए और 108 बार जाप करना चाहिए। शांति पाठ शांति और सुख का मंत्र है। यह घर में शांति लाता है।
यहाँ मंत्र और उसके विवरण अर्थ है।
मंत्र:
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः ।
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ॥
स्थिरैरंगैस्तुष्टुवांसस्तनूभिः ।
व्यशेम देवहितं यदायुः ॥ 1॥
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः ।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ॥
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः ।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ 2 ॥
ॐ शान्ति ! शान्ति !! शान्ति !!!
मंत्र का अर्थ:
हे गणपति भगवान् श्री गणेश! हम सदैव ऐसी वाणी सुनें जो हमें सुख दे तथा बुराईयों से हमेशा दूर रखे। हमारा जीवन भलाई के कामों में व्यतीत हो। हम सदा भगवान् की पूजा में लगे रहें। बुरी बातों की ओर ले जाने वाली बातों से सर्वदा दूर रहें। हमारा स्वास्थ्य सदा ठीक रहे जिससे हम परमात्मा के चरणों में अपना जीवन समर्पित कर सकें। हमारा मन भोग विलास में लीन न हो।
हमारे प्रत्येक कण में भगवान् विराजमान हों और हम उनकी सेवा-सुश्रुषा में लगे रहें जिससे हम हमेशा अच्छे कार्य करते रहें । ऐसी प्रार्थना हमें भगवान् से करनी चाहिए। जिनकी कीर्ति चारों तरफ फैली हुई है वह देवों के राजा इन्द्र हमेशा सब जगह विराजमान हैं और बुद्धि के स्वामी भगवान् श्री बृहस्पति ये समस्त देवता की छिपी हुई शक्तियाँ हैं। ये भले की सहयोगी होती हैं। इनसे मनुष्यों का भला होता है।
विकल्प:
अगर किसी कारण से आप पूरा मंत्र नहीं कर पा रहे हैं। जप "ओम शांति ! शांति !! शांति !!" .
ओम एक बार और शांति को तीन बार कहा जाता है। तीन बार शांति कहने का कारण मन, आत्मा और शरीर को शांति देना है। जब हम पहली बार शांति का जाप करते हैं, तो यह हमारे दिमाग को नकारात्मकता से साफ करता है और उसमें सकारात्मकता लाता है। दूसरा शांति मंत्र आत्मा के लिए है, आध्यात्मिक अनुभव लाने के लिए। तीसरा शांति मंत्र शरीर को स्वस्थ और तंदुरुस्त बनाने के लिए है।