"ॐ जय जगदीश हरे" आरती Spiritual RAGA

Om Jay Jagadish Hare
"ॐ जय जगदीश हरे" आरती
 

"ॐ जय जगदीश हरे" एक बहुत ही प्रसिद्ध आरती है। जो शायद हम सबने सुने ही हुए है। जब भी किसी के घर में सत्यनारायण की कथा होती है या ​भगवान विष्णु की पूजा की जाती है तो ॐ जय जगदीश हरे आरती जरूर गाई जाती है। भगवान विष्णु अंतरयामी हैं और अपने भगतों का वैसे ही ध्यान रखते है जैसे एक माता-पिता अपने बचो का रखते है। वो सब दुखो को दूर करते है। 


"ॐ जय जगदीश हरे" किस भगवान की आरती  है?


"ॐ जय जगदीश हरे" विष्णु जी की आरती है। 


"ॐ जय जगदीश हरे" आरती किसने और कब लिखे थी?


यह आरती श्रद्धा राम शर्मा फिल्लौरी जी ने सन् 1870 ईस्वी में लिखी थी। वो पंजाब के लुधियाना के पास फुल्लौरी गांव की थे। 


आरती:


ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे ।

भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥


जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का, स्वामी दुःख बिनसे मन का ।

सुख सम्पति घर आवे, सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥


मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी, स्वामी शरण गहूं मैं किसकी ।

तुम बिन और न दूजा, तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥


तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी, स्वामी तुम अन्तर्यामी ।

पारब्रह्म परमेश्वर, पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥


तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता, स्वामी तुम पालनकर्ता ।

मैं मूरख फलकामी, मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥


तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति, स्वामी सबके प्राणपति ।

किस विधि मिलूं दयामय, किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥


दीन-बन्धु दुःख-हर्ता, ठाकुर तुम मेरे, स्वामी रक्षक तुम मेरे ।

अपने हाथ उठाओ, अपने शरण लगाओ, द्वार पड़ा तेरे ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥


विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा, स्वमी पाप हरो देवा ।

श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥


ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे ।

भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥


कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।

सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।


तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो।

तुम्ही हो बंधू, सखा तुम्ही हो ॥


दाता के दरबार मे खड़े,

सभी हाथ जोड़।

देवन वाला एक है, 

मांगत लाख करोड़॥


आज भी तेरा आसरा, 

कल भी तेरी आस।

घड़ी-घड़ी तेरा आसरा,

तुझ बिन कौन सवारे काज॥ 


दाता ऐसा वर दीजिए,

जिसमे कुटुंब समाए।

मैं भी भूखा न रहूँ,

मेरे साथ न कोई भूखा जाए॥

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