जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवा धात्री, स्वाहा घोर रूपिणी देवी को नमस्कार है। हे मधुकैटभ नाशिनी ! हे ब्रह्मा को वर देने वाली तुमको नमस्कार है । का विनाश करो । नमस्कार है। रूप दो, जय दो और शत्रुओं हे महिषासुर नाशिनी !.. हे वर देने वाली | तुमको रूप दो, जय दो, यश दो और शत्रुओं का नाश करो। हे बन्दित चरण वाली ! हे देवताओं को सौभाग्य देने वाली ! रूप दो, जय दो, यश दो और शत्रुओं का नाश करो। हे रक्तबीज विनाशिनी ! हे चराडमुण्ड विनाशिनी । है देवी रूप दो, जय दो यश दो और शत्रुओं का नाश करो ।
अचिन्त्य रूप और चरित वाली ! हे शत्रु विनाशिनी रूप दो, जय दो, यश दो और शत्रुओं का नाश करो। हे हि सदा पूर्वक नम्र रहने वाले मनुष्यों को और मुझ विनीत को रूप, जय, यश दो और शत्रुओं का नाश करो। हे चण्डिक ! व्यापिनाशिनी! जो मनुष्य भक्तिपूर्वक तुम्हारी स्तुति करते हैं उनको रूप जय, यश दो और उनके शत्रुओं का नाश करो ।
Shri Durga Saptashati श्री दुर्गा सप्तशती Spiritual RAGA
हे चण्डिके ! जो पुरुष हमेशा भक्ति से तुम्हारी पूजा करते हैं उनको रूप दो जय दो यश दो और उनके शत्रुओं का नाश करो। हे देवी! मुके सौभाग्य, आरोग्य और परम सुख दो रूप दो जय दो यश दो और शत्रुओं का नाश करो। हे दे॒वी ! शत्रुओं का नाश करो अधिक बल बढ़ाओ । रूप दो जय दो यश दो और शत्रुओं का नाश करो । ह देवी ! कल्याण करो और विपुल सम्पत्ति दो । रूप दो जय दो यश दो और शत्रुओं का विनाश करो। अपने भक्त (मुझको) विद्वान, यशस्वी और लक्ष्मीवान करो। रूप दो जय दो यश दो और शत्रुओं का नाश करो।
हे उग्र दैत्यों का गर्व नष्ट करने वाली ! हे चण्डिके ! मुझ विनीत को रूप दो जय दो यश दो और हे चार भुजा वाली । हे ब्रह्मा द्वारास्तुति की गईपरमेश्वरी ! रूप दो जय दो यश दो और दुशमनों का नाश करो। हे निरन्तर कृष्ण जी द्वारा भक्तिपूर्वक स्तुति की गई । हे अम्बिके ! रूप दो जय दो यश दो और दुशमनों का विनाश करो। हे देवताओं और दैत्यों के सिर रूपी रतनों से स्पर्शित चरणों वाली अम्बिके रूप दो जय दो यश दो तथा दुशमनों का नाश करो ।
हे इन्द्र द्वारा सद्भाव से पूजित परमेश्वरी ! रूप, जय, यश प्रदान करो तथा दुशमनों का नाश करो। अपने प्रचगढ भुजडराडों से दैत्यों का नाश करने वाली देवी ! रूप जय और यश प्रदान करो तथा दुशमनों का नाश करो । हे भक्तजनों को आनन्द प्रदान करने वाली अम्बिके ! रूप जय और यश प्रदान करो तथा मेरे दुशमनों को नष्ट करो। हे देवी! मन को प्रसन्न करने वाली इच्छानुकूल चलने वाली दुर्गम संसारसे पार करने वाली अच्छे कुल में उत्पन्न पत्नी प्रदान करो ।
जो मनुष्य इस स्तोत्र को पढ़ कर सप्तशती स्तोत्र को पढ़ता है। वही सप्तशती के पाठ का श्रेष्ठ फल और सम्पत्ति प्राप्त करता ।
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