मार्कण्डेय जी बोले-शुद्ध ज्ञान स्वरूप वेदवई रूप दिव्य नेत्रों वाले सर्वोपरि सुख की उपलब्धि के कारण अर्धचन्द्रधारी शिव को नमस्कार है निरन्तर जप करने वाला मनुष्य यदि मन्त्रों के इस कीलक को जानता है तो निश्य ही कल्याण को प्राप्त करता है। इस कीलक स्तोत्र के द्वारा स्तुति करने मात्र से उच्चाटन आदि सभी प्रयोजन सिद्ध होते हैं। कोई मन्त्र और तन्त्र ऐसा नहीं है जिससे बिना जप किये ही उच्चाटन आदि सिद्ध हो सके। शिव जी ने संसार को सब कुछ सिद्ध होने की आशङ्का से इस सब शुभ कोकील दिया है और चण्डी के इस स्तोत्र को गुप्त कर दिया है यतः मनुष्य इसको बड़े पुरायसे प्राप्त करता है। जो कृष्णपक्ष की चतुर्दशी व अष्टमी को ध्यानवास्थित होता है औरों को देता है और पुनः लेता है।
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अन्य रीति से सिद्ध नहीं होता। ऐसे कील से महादेवजी ने इसे कील दिया है जो इसको निष्कील करके नित्यप्रति जाप करता है यह मनुष्य सिद्ध गण और गन्धर्व हो जाता है उसको कहीं भी घूमते हुये भय नहीं होता और न अल्पमृत्यु के वश में जाता है तथा मर कर मोदा को प्राप्त होता है। इसको जानकर चारम्भ करे, न करने वाला नष्ट हो जाता है इसलिये बुद्धिमान मली प्रकार जानकर ही इसको प्रारम्भ करते हैं। जो सौभाग्य स्त्रियों में देख पड़ता है वह सब इसी कील का प्रताप है। इसलिये इसका जप करना सर्वश्रेष्ठ है। परन्तु उच्च स्वर में जपने से सम्पूर्ण लाभ प्राप्त होता है। अतः उसका आरम्भ करना चाहिये जिसके प्रसादसे ऐश्वर्य सौभाग्य आरोग्यता तथा संपत्ति प्राप्त होती है और दुशमनों का नाश होता है तथा मोदा मिलता है। उस भगवती की क्यों न स्तुति की जाय ।
॥ इति भगवत्या कीलक स्तोषम् समाप्तम् ॥
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