मेघा ऋषि ने कहा कि देवी के द्वारा पराक्रमी दुष्ट महिषासुर को फौज सहित मारे जाने पर इन्द्र आदि सभी देवता प्रसन्न होकर मस्तक झुका कर प्रणाम करके नाना प्रकार से स्तुति करने लगे। जिस देवीने यह समस्त संसार अपनी शक्ति से उत्पन्न किया है । जो सब देवों की पूज्य है, उन सभी देवों और महर्षियों की पूज्य उस अम्बिकादेवी को हम भक्ति भाव से नम्र होकर दण्डवत करते हैं। वह हमारा कल्याण करे। जिसके अनुपम प्रभाव और बल का विष्णु ब्रह्मा और शिवजी भी वर्णन नहीं कर पाते, वह देवी चण्डिका सारे संसार के सृजन और अशुभ मय के नाश के लिए बाध्य हो ।
जो पुण्यात्मा पुरुषोंकि यहां लक्ष्मी, पापियों के लिए दरिद्र, ज्ञानियों के लिए हृदय में बुद्धि, सत्पुरुषों में श्रद्धा, कुलाङ्गनाओं में लज्जा के समान हो। हे देवी! हम सब आपके सामने मस्तक झुकाते हैं। इस संसार की पालना करो। हे देवी। तेरे इस अचिन्त्य रूप असुरों की विनाशक तेरी शक्ति तथा संग्राम में होने वाले तुम्हारे चरित्रों को हम कैसे वर्णन करें। त्रिगुण स्वरूप होने पर भी सारे संसार का कारण हो तथा देवों से मुक्त होने के कारण विष्णु, ब्रह्मा आदि भी तुम्हें नहीं जान पाते, तुम सबका आश्रय हो सारा जगत तुम्हारा अंश मात्र है, तुम विकार रहित और अनादि शौल तथा परम प्रकृति हो ।
Shri Durga Saptashati श्री दुर्गा सप्तशती Spiritual RAGA
हे देवी! तुम स्वाहा और मुधा रूप हो, यज्ञ कर्मों में तुम्हारा नाम [स्वाहा-] उच्चारण करने से देवता और पितृ कर्म में तुम्हारा नाम [स्वधा] उच्चारण करने से पितृ तृप्त होते हैं। हे भगवती देवी ! तुम मुक्तिका कारण और अचिन्त्य ब्रह्म-ज्ञानरूपा महाव्रता हो, राग, द्वेष आदि रोगों से रहित तत्त्व, वेत्ता इन्द्रियजयी तथा मोम की इच्छा करने वाले सुनि तुम्हारा स्मरण करते हैं इसलिए आप सर्वोपरि हैं। तुम शब्द रूप होकर पवित्र ॠग्वेद और यजुर्वेद की तथा भोंकारयुक्त रमणीय पदों के पाठ वाले सामवेद की आश्रय हो, तुम दे दुर्गा सप्तशती वेदत्रयी और भगवती हो, प्राणियोंके दुःख क्लेश तथा संसार की विपत्तियों को दूर करने वाली हो ।
हे देवी! तुम सम्पूर्ण शास्त्रोंके तत्वको जाननेके कारण मेघा बुद्धि तथा दुर्गम संसार सागरसे पार होने के लिए ज्ञान रूपी असंग नौका होने से दुर्गा हो, कैटभ को मारने वाले विष्णु भगवान के हृदय में वास करने वाली लक्ष्मी तथा शिव के बाम भागमें विराजने वाली गौरी हो । तुम्हारे मंद- मंद मुस्काते हुए पूर्णिमा के चन्द्रमा के समान निर्मल तथा सोने के समान कान्तिमान मुख को देखकर महिषासुर ने क्रोध से प्रहार किया यह कितना आश्चर्य है। हे देवी! कुटिल भौहोंसे भयानक तथा क्रुन्द्र उदयकाल के चन्द्रमा के समान छवि युक्त मुख को देखकर महिषासुर ने तत्क्षण प्राणोंका त्याग नहीं किया. इसमें अत्यन्त आश्चर्य है क्योंकि कुपित यमराज को देखकर कौन जी सकता है।
हे देवी! आप प्रसन्न हो । आप संसार के लिए हितका- रिणो हैं, परन्तु कुपित होकर शीघ्र ही दुष्टों को नष्ट कर देतो हो, आपने महिषासुर के महान बलीको शीघ्र नष्ट कर दिया इससे हमने अब आपके स्वभावको जाना। हे मङ्गल- मयी देवी | जिन पर आप प्रसन्न होती हो वे ही संसार में कुशल हैं, वे ही धनधान्य और यश से युक्त हैं, उन्हीं में धर्म के सारे लक्षण मिलते हैं, वे ही धन्य हैं तथा पुत्र-स्त्री और मृत्यु से भरपूर होते हैं। हे देवी! ऐसे सत्पुरुष सदैव सम्पूर्ण धार्मिक कामों को आदरपूर्वक करते हैं और आपकी कृपा से स्वर्गको प्राप्त होते हैं।
इसलिए हे देवी, आप तीनों लोकों में उत्तम फल देने वाली हो, हे दुर्गे, जो आपका नाम जपते हैं आप उनके सभी भयों को नष्ट करती हो, स्वस्थ पुरुषों को स्मरण करने पर श्रेष्ठ बुद्धि देती हो दरिद्रों का दुःख और भय मिटाने वाला तुम्हारे सिवा कौन है? निश्चय आप सब प्राणियों का कल्याण करने के लिए दयासे द्रवित रहती हो असुरों के मारे जाने से सारे संसार को मुख मिला तथा बहुत दिन तक जो उन्होंने नर्क प्राप्ति के लिए पाप किया है समर में मरकर वे स्वर्ग को प्राप्त हों यह जानकर ही आप दुष्टों का हनन करती हो।
हे देवी आप असुरों को दृष्टिसे भस्म कर सकती थीं, उन पर अस्त्र-शस्त्र चलाने की जरूरत न थी, समर में शस्त्रों से पवित्र होकर शत्रु भो शुभ लोकों को प्राप्त हों, इस भाव से उनमें आप की यह बुद्धि थी इससे आप अत्यन्त साध्वी हैं किरणों से सुशोभित अर्ध-चन्द्रमा के सदृश आपके मुख को देखते हुए ही आपके खंग की उग्रदीप्ति पुन्ज और त्रिशूलके अग्रभाग की कन्ति समूह से असुरों की आंखों की ज्योति नष्ट नहीं हुई। हे देवी! आपका स्वभाव व रूप दुराचारियों को सदा- चारी बनाने वाला और अचिन्त्य है क्योंकि कोई उसकी समता नहीं कर सकता तथा आपकी शक्ति देवोंके पराक्रम को हरण करने वाले असुरों को नष्ट करती है इसी प्रकार आपकी कृपा शत्रुओं पर भी प्रकट होती है।
हे वरदाश्री तीनों लोकोंमें से जिसके साथ आपके इस पराक्रमकी तुलना की जाए, आपके समान शत्रुओं के लिए भयदायक तथा सुन्दर स्वरूप किसका है हमेशा दया परंतु समरमें निष्ठुरता आपके मनमें देखी, समरमें शत्रुनाश के द्वारा सारी त्रिलोकी आपने बचाई तथा शत्रुओं को मार कर स्वर्ग को पहुंचाया और अमुर जन्मसे हमारा भय दूर किया, आपको नमस्कार है । हे चण्डिके ! शूल, खंग, घण्टा शब्द तथा धनुष की टंकार से हमारी रक्षा करो। हे अम्बिके ! पूर्व और पश्चिम, दक्षिण तथा उत्तर चारों दिशाओं में अपने त्रिशूल को घुमा कर हमारी रक्षा करो। आपके जो सौम्य तथा अत्यन्त घोर रूप तीनों लोकों में विचरते हैं उनसे हमारी और संसार की रखा करो।
हे अम्बिके देवी ! खड्ग, शूल और गदा आदि जितने भी अस्त्र आपके हाथ में हैं, उनके द्वारा सब तरफ से हमारी रक्षा करो। मेधा ऋषि बोले- जब देवों ने जगत के धारण करने वाली देवी का नन्दन वन के पुष्पों तथा गन्ध लेपन द्वारा पूजन और स्तवन किया और सारे देवताओं ने भक्तिपूर्वक धूप से धूषित की तो प्रसन्न मुख से मारे बिनम्र देवोंसे कहा तब देवी बोली-सारे देवता अपना इच्छित वर मुझेसे मांगो। देव बोले- आपने सब कुछ किया, कुछ भी करना शेष नहीं रहा, क्योंकि आपने हमारे दुश्मन महिषासुर को मारा।
फिर भी हे महेश्वरी ! यदि आप वर देना चाहती हैं तो कृपा कर के जब भी हम आपका स्मरण करें तब आप हमारे समस्त कष्टों को दूर करें और जो मनुष्य इन स्तवों से आप की स्तुति करे, उसके धनको वृद्धि, ऐश्वर्य धन तथा स्त्री और सम्पदा की सदा वृद्धि हो और अम्बिके हम पर सदैव प्रसन रहो । ऋषि जी बोले – अपने और संसार के लिए देवों ने जब इस तरह देवी को खुश किया तो हे राजन! वह भद्र- काली 'ऐसा ही होगा' कह कर अन्तरध्यान हो गई। हे नृप जिस तरह संसार की हितैषिणी देवी-देव शरीर से पहले और शुम्भ-निशुम्भ के वध के लिए देवों का उपकार करने वाली पैदा हुई । वह भी वृतांत सुनो — मैं तुमसे कहता हूं।
इति श्री मार्कण्डेय के देवी माहात्म्य में 'शुक्रादिस्तुति' नामक चौथा अध्याय समाप्त।
Shri Durga Saptashati fifth chapter श्री दुर्गा सप्तशती पांचवां अध्याय Spiritual RAGA