देवी बोली- जो मनुष्य एकाग्र मन से नित्य-प्रति स्तोत्र [दुर्गा सप्तशती] से मेरी प्रार्थना करता है उस मनुष्य की समस्त बाधाओं का में निश्चय ही दमन कर देती हूं। जो मधुकैटभका विनाश, महिपासुरका घात और शुम्भ-निशुम्भ के वध का कीर्तन करेंगे तथा अष्टमी, चतुर्दशी तथा दोनों पक्ष की नवमी को एकाग्र मन से मेरे माहात्म्य को भक्ति सहित श्रवण करेंगे, उनके समस्त पाप तथा पाप जनित आपत्तियां भी दूर हो जावेंगी । उनके घर में दरिद्रता नहीं आएगी और न उनके स्वजनों का वियोग ही होगा।
ऐसे मनुष्यों को शत्रु, चोर, राजा, अस्त्र-शस्त्र, अग्नि और जल आदि से भय नहीं होगा। इस कारण एकाग्र मन से मेरे इस महात्म्य का भक्ति सहित पठन-पाठन करना और श्रा करना चाहिए। मेरा यह महात्म्य महामारी से उत्पन्न सब उपद्रव तथा तीनों प्रकार के उत्पातों को शांत करने वाला है। जिस स्थान पर भली-भांति नित्य- प्रति मेरे महात्म्यका पाठ किया जाता है उस स्थान को मैं कदापि नहीं छोड़ती, मैं वहां सदैव निवास करती हूं। बलिदान, पूजा, हवन तथा अन्य महोत्सव आदि में मेरा यह महात्म्य पाठ करना और श्रवण करना चाहिए।
Shri Durga Saptashati श्री दुर्गा सप्तशती Spiritual RAGA
जानकर या बिना जाने जो भी बलि, पूजा या हवन करेगा उसे मैं प्रसन्नतापूर्वक ग्रहण करूंगी। प्रतिवर्ष शरदकाल में जो पूजा की जाती है उस अवसर पर मेरा महात्म्य भक्तिपूर्वक श्रवण करने से मनुष्य सब बाधाओं से विमुक्त होकर धनधान्य तथा पुत्र व पौत्रों से परिपूर्ण हो जाएगा। इसमें लेशमात्र भी सन्देह नहीं है। जो मेरे इस महात्म्य तथा शुभ उत्पत्तियों को और पराक्रम को श्रवण करते हैं वे युद्धमें निडर हो जाते हैं। इस महात्म्य के मुनने वालों के शत्रु नष्ट हो जाते हैं, उनका कल्याण होता है और उनका समस्त कुटुम्ब आनन्दित रहता है, शांति कर्मों में खोटे स्वप्न देखने पर, ग्रहजनित भयंकर पीड़ा में होने वाले समस्त दुःख शांत हो जाते हैं।
मेरा महात्म्य बालग्रहों दुर्गा सप्तशती से आक्रांत हुए बालकोंको शांति प्रदान करता है तथा आपस के विरोध को मिटाकर मैत्री उत्पन्न करने वाला है। इसके पाठ मात्र से राक्षस, भूत और पिशाचों का विनाश हो जाता है। यह मेरा महात्म्य मनुष्य मात्र को मेरे समीप लाने वाला है। पशु, पुष्प, अर्घ्य, गन्ध, दीप ब्राह्मणों को भोजन हवन और दिन रात का अभिषेक तथा नानाप्रकार के भोग चढ़ाकर निरन्तर एक साल तक पूजन करने से जितना में प्रसन्न होती हूं उतनी ही प्रसन्नता इस महात्म्य के मात्र से होती है।
मेरे महात्म्य के सुनने से सब पाप नष्ट हो जाते हैं तथा सब रोग नष्ट हो जाते हैं। मेरे प्रादुर्भाव के कीर्तन करने से सब भृतों से रक्षा होती है। उसका श्रवण करने से मनुष्यको शत्रु भय नहीं रहता। आपके द्वारा जो मेरी स्तुति की गई है और जो ब्रह्म ऋषियों ने विनती की है तथा ब्रह्माजी ने जो स्तुतियां की हैं, उनके पाठ करने से बुद्धि श्रेष्ठ हो जाती है। जङ्गल में, सूने मार्ग में अथवा दावानल से घिर जाने पर, निर्जन स्थान पर चोर उचक्कों से घिर जाने पर, दुश्मनों द्वारा पकड़े जाने पर, घनघोर वन, में सिंह, व्याघ्र अथवा जङ्गली हाथियों के पीछा करने पर, क्रुद्ध नृपति के आदेश से बध [फांसी ] के लिए गिरफ्तार किए जाने पर अथवा समुद्र में नौका पर बैठने के बाद वायु दुर्गा सप्तशती के वेग से नौका के डगमगाने पर और युद्ध में दारुण शस्त्रों की बरसा के समय अथवा सब प्रकार की आपत्तियों तथा नानाप्रकार की यन्त्रणाओं से दुःखी होने पर जो मनुष्य मेरे चरित्रका स्मरण करता है, वह सब प्रकार के संकटों से मुक्त हो जाता है।
मेरे प्रभाव से शेर इत्यादि व लुटर तथा शत्रु हमेशा उससे दूर रहते हैं। ऋषि बोले- इस प्रकार इतनी कथा कहकर प्रचण्ड विक्रमा भगवती चण्डिका देवी समस्त देवताओं के देखते ही देखते वहीं अन्तरध्यान हो गई और सभी देवता निर्भय होकर पहले की भांति अपने अधिकारों का पालन करने लगे और शत्रुओं के नष्ट हो जाने पर अपना-अपना यज्ञभाग का उपभोग करने लगे। युद्ध स्थल में देवी के द्वारा असुरों तथा शुम्भ-निशुम्भ के मारे जाने से शेष सभी राक्षस पाताल लोक में चले गए। हे राजन! भगवती अम्बिका देवी इस भांति नित्य होती हुई भी अनेक बार जन्म लेकर इस संसार की रक्षा करती हैं।
वही विश्व को मोहित करती हैं और वही जन्म देती हैं तथा वे ही प्रार्थना करने पर सन्तुष्ट हो विज्ञान एवं स्मृति प्रदान करती हैं । हे राजन! जब प्रलयकाल में महाबली से यह समस्त ब्रह्माण्ड व्याप्त हो जाता है, तब वह देवी महाकाल रूप महामारी और उत्पत्ति काल में ऋद्धि के रूप में होती हैं। और पालन के समय ही सनातनी देवी प्राणियों की रक्षा करती हैं | वही देवी अभ्युदय के समय लक्ष्मी रूप होकर मनुष्यों को अनेक प्रकार के ऐश्वर्य की वृद्धि कराती हैं और आपत्तिकाल में लक्ष्मी का नाश करती हैं। पुष्प, धूप, गन्ध आदि से पूजा करने अथवा स्तुतिं करने पर वह देवी धन पुत्र और धर्ममें शुभमति तथा उत्तम गति प्रदान करती हैं।
इतिश्री मार्कण्डेय पुराण के देवी महात्म्य में, 'फल-स्तुति' मामक बारहवाँ अध्याय समाप्त।
Shri Durga Saptashati thirteen chapter श्री दुर्गा सप्तशती तेरहवां अध्याय Spiritual RAGA