वृहस्पति त्रयोदशी (प्रदोष) व्रत कथा Brihaspati Trayodashi (Pradosh) Vrat Katha spiritual RAGA

Brihaspati Pradosh Vrat Katha

वृहस्पति त्रयोदशी व्रत कथा इस प्रकार है कि एक बार इन्द्र और वृत्रासुर में घनघोर युद्ध हुआ। उस समय देवताओं ने दैत्य सेना को पराजित कर नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। अपनी सेना का विनाश देख कृत्रासुर अत्यंत क्रोधित हो स्वयं युद्ध के लिए उद्यत हुआ मायावी असुर ने आसुरी माया से भयंकर विकराल रूप धारण किया। उसके स्वरूप को देख इन्द्रादिक सब देवताओं ने इन्द्र के परामर्श से परम गुरु बृहस्पतिजी का आवाहन किया गुरु तत्काल आकर कहने लगे हे देवेन्द्र! अब तुम वृत्रासुर की कथा ध्यान-मग्न होकर सुनो। 

वृत्रासुर पहले बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ था, इसने गन्धर्व पर्वत पर उग्र तप करके शिवजी को प्रसन्न किया था। पूर्व समय में यह चित्ररथ नाम का राजा था, तुम्हारे समीपस्थ जो सुरम्य वन है, वह इसी का राज्य था, अब साधु प्रवृत्ति विचारवान् महात्मा उसमें आनन्द लेते हैं।


वह भगवान् के दर्शन की अनुपम भूमि है, एक समय चित्ररथ स्वेच्छा से कैलास पर्वत पर चला गया। भगवान् का स्वरूप और वाम अंग में जगदम्बा को विराजमान देख चित्ररथ हँसा और हाथ जोड़कर शिवजी से बोला- हे शिव शंकर! हे प्रभो! हम मायामोहित हो विषयों में फँसे रहने के कारण स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं किन्तु देव! लोक में ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि स्त्री का आलिंगन कर कोई सभा में बैठे। 


चित्ररथ के वचन सुनकर सर्वव्यापी भगवान् शंकर हँसकर बोले कि हे राजन्! मेरा व्यवहारिक दृष्टिकोण पृथक् है। मैंने मृत्युदाता कालकूट महाविष का पान किया है, फिर भी तुम साधारण जनों की भाँति मेरी हँसी उड़ाते हो। तभी पार्वती क्रोधित हो चित्ररथ की ओर देखती हुई कहने लगी- ओ दुष्ट! तूने सर्वव्यापी महेश्वर के साथ ही मेरी हँसी उड़ाई है, तुझे अपने कर्मों का फल भोगना पड़ेगा।


अरे मूर्खराज! तू अति चतुर है, अतएव मैं तुझे ऐसी शिक्षा दूंगी कि फिर तू ऐसा दुःसाहस ही न करेगा। अब तू दैत्यस्वरूप धारणकर विमान से नीचे गिर जा, तुझे मैं शाप देती हूँ। जब जगदम्बा भवानी ने चित्ररथ को ये शाप दिया, तो वह तत्क्षण विमान से गिर, राक्षस योनि को प्राप्त हो गया और प्रख्यात महासुर नाम से प्रसिद्ध हुआ । त्वष्टा नामक ऋषि ने उसे श्रेष्ठ तप से उत्पन्न किया और अब वही वृत्रासुर ब्रह्मचर्यपूर्वक रहकर शिवभक्ति में लीन है। 


इस कारण तुम उसे जीत नहीं सकते। अतएव मेरे परामर्श से यह प्रदोष व्रत करो, जिससे महाबलशाली दैत्य पर विजय प्राप्त कर सको। गुरुदेव के वचनों को सुनकर सब देवता प्रसन्न हुए और गुरुवार त्रयोदशी (प्रदोष व्रत) विधि-विधान से किया एवं राक्षस वृत्रासुर पर विजय प्राप्त कर इन्द्रदेव सुखपूर्वक रहने लगे। बोलो | उमापति महादेव की जय।

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