बुध त्रयोदशी (प्रदोष) व्रत कथा Buddha Trayodashi (Pradosh) Vrat Katha Spiritual RAGA

Buddha Pradosh Vrat Katha

सूतजी बोले- ऋषियों अब मैं आपको बुध त्रयोदशी (प्रदोष) की कथा सुनाता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनिये। प्राचीन काल की कथा है-एक पुरुष का नया नया विवाह हुआ था। वह गौने के बाद दूसरी बार पत्नी को लिवाने अपनी ससुराल पहुँचा और अपनी सास से कहा कि बुधवार के दिन ही पत्नी को लेकर अपने नगर जायेगा। उस पुरुष के सास-ससुर मे, साले सालियों ने उसको बहुत समझाया कि बुधवार को पत्नी को विदा कराकर ले जाना शुभ नहीं है, लेकिन यह पुरुष अपनी जिद से टस से मस नहीं हुआ। विवश होकर सास-ससुर ने अपने जामाता और पुत्री को भारी मन से विदा किया।

पति-पत्नी बैलगाड़ी में चले जा रहे थे, नगर के बाहर निकलते ही पत्नी को प्यास लगी। पति लोटा लेकर पत्नी के लिए पानी लेने गया। पानी लेकर जब लौटा तो उसके क्रोध और आर्य की सीमा न रही, क्योंकि उसकी पत्नी किसी अन्य पुरुष के लाये लोटे में से पानी पीकर हँस-हँस कर बात कर रही थी। क्रोध में आग बबूला होकर यह उस आदमी से झगड़ा करने लगा। मगर यह देखकर उसके आधर्य की सीमा न रही कि उस पुरुष की शक्ल उस आदमी से हूबहू मिलती थी। 


हमशक्ल आदमियों को झगड़ते हुए जब काफी देर हो गई तो वहाँ आने-जाने वालों की भीड़ एकत्र हो गई, सिपाही भी आ गया। सिपाही ने स्त्री से पूछा कि इन दोनों में से कौन- सा आदमी तेरा पति है, तो वह बेचारी असमंजस में पड़ गई, क्योंकि दोनों की शक्ल एक- दूसरे से बिल्कुल मिलती थी। बीच राह में अपनी पत्नी को इस तरह लुटा देखकर उस पुरुष की आँख भर आई। 


वह शंकर भगवान् से प्रार्थना करने लगा, कि हे भगवान्! आप मेरी और मेरी पत्नी की रक्षा करो। मुझसे बड़ी भूल हुई जो मैं बुधवार को पत्नी को विदा करा लाया। भविष्य में ऐसा अपराध कदापि नहीं करूँगा। उसकी वह प्रार्थना जैसे ही पूरी हुई कि दूसरा पुरुष अन्तर्धान हो गया और वह पुरुष सकुशल अपनी पत्नी के साथ अपने घर पहुंच गया। उस दिन के बाद पति-पत्नी नियम पूर्वक बुधवार (प्रदोष व्रत रहने लगे। 

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