शौनक ऋषि सूतजी से बोले- हे प्रभो! दया कर अब आप मंगल प्रदोष की कथा का वर्णन करें, आपकी अति कृपा होगी। सूतजी बोले- अब मैं मंगल त्रयोदशी (प्रदोष व्रत का विधि-विधान कहता हूँ। मंगलवार का दिन व्याधियों का नाशक है। इस व्रत में एक समय व्रती को गेहूँ और गुड़ का भोजन करना चाहिये। देव प्रतिमा पर लाल रंग का फूल चढ़ाना और स्वयं लाल वस्त्र धारण करना चाहिये।
इस व्रत के करने से मनुष्य सभी पापों व रोगों से मुक्त हो जाता है। इसमें किसी प्रकार का संशय नहीं है। अब मैं आपको उस बुढ़िया की कथा सुनाता हूँ, जिसने यह व्रत किया व मोक्ष को प्राप्त हुई। अत्यन्त प्राचीन काल की घटना है। एक नगर में एक बुढ़िया रहती थी। उसके मंगलिया नाम का एक पुत्र था। वृद्धा को हनुमानजी पर बड़ी श्रद्धा थी। वह प्रत्येक मंगलवार को हनुमानजी का व्रत रखकर यथा विधि उनका भोग लगाती थी। इसके अलावा मंगलवार को न तो घर लीपती थी और न ही मिट्टी खोदती थी।
इसी प्रकार से व्रत रखते हुए जब उससे काफी दिन बीत गए तो हनुमानजी ने क चलो आज इस वृद्धा की श्रद्धा की परीक्षा करें। ये साधु देष बनाकर उसके द्वार पर जा पहुँचे और पुकारा- "है कोई हनुमान का भक्त जो हमारी इच्छा पूरी करे?" वृन्दा ने यह पुकार सुनी तो बाहर आई और पूछा कि महाराज क्या आज्ञा है? साधु वेषधारी हनुमानजी बोले कि 'मैं बहुत भूखा हूँ, भोजन का तू थोड़ी-सी जमीन लीप दे। वृद्धा बढ़ी दुविधा में पड़ गई। अन्त में हाथ जोड़कर प्रार्थना की, हे महाराजा लीपने और मिट्टी खोदने के अतिरिक्त जो काम आप कहें, यह में करने को तैयार हूँ।
साधु ने तीन बार प्रतिज्ञा कराने के बाद कहा "तू अपने बेटे को बुला में उसे आधा लिटा कर, उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊंगा। वृद्धा ने सुना उसके पैरों तले की धरती खिसक गई, मगर वह वचन हार चुकी थी। उसने मंगलिया को पुकार कर साधु महाराज के हवाले कर दिया। मगर साधु ऐसे ही मानने वाले न थे। उन्होंने वृद्धा के हाथों से ही मंगलिया को आँधा लिटाकर, उसकी पीठ पर आग जलवाई।
आग जलाकर, दुःखी मन से वृद्धा अपने घर के अन्दर जा घुसी। साधु जब भोजन बना चुका तो उसने वृद्धा को बुलाकर कहा कि वह मंगलिया को पुकारे ताकि वह भी आकर भोग लगा ले। वृद्धा आंखों में आँसू भरकर कहने लगी कि अब उसका नाम लेकर मेरे हृदय को और न दुखाओ, लेकिन साधु महाराज न माने तो वृद्धा को भोजन के लिए मंगलिया को पुकारना पड़ा। पुकारने की देर थी कि मंगलिया बाहर से हँसता हुआ घर में दौड़ा आया। मंगलिया को जीता-जागता देखकर वृद्धा को सुखद आश्चर्य हुआ। वह साधु महाराज के चरणों में गिर पड़ी। साधु महाराज ने उसे अपने असली रूप के दर्शन दिए। हनुमानजी को अपने आँगन में देखकर वृद्धा को लगा कि जीवन सफल हो गया।