वैशाख कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत कथा Spiritual RAGA

(धर्मकेतु नामक ब्राह्मण की कथा)

वैशाख कृष्ण-गणेश चतुर्थी
(गणेश चतुर्थी व्रत कथा)

वैशाख कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत किस महीने में पड़ता है?


वैशाख कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत अप्रैल या मई के महीने में आता है।


वैशाख कृष्ण में गणेश जी के किस नाम की पूजा करनी चाहिए?


इस दिन ‘वक्रतुंड’ नाम के गणेश जी की पूजा करनी चाहिए।


विवरण: 


यह व्रत संकटनाशक गणेश चतुर्थी व्रत में से एक है। यह व्रत आपके घर में सुख-शांति लाता है। इस व्रत को आप अपनी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए कर सकते हैं। इस व्रत में अन्य चीजों के साथ लड्डू का भोग भगवान गणेश को अवश्य लगाना चाहिए। रात को चंद्रमा को जल चढ़ाने के बाद व्रत पूर्ण होगा। इस व्रत में आप शांति पाठ भी पढ़ सकते हैं।


कथा: 

॥ श्री महागणाधिपतये नमः ॥


एक बार की बात है, पार्वती जी और गणेश जी वन में बैठी थे। पार्वती जी ने गणेश जी से पूछा, "वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की जो संकटा नामक चतुर्थी कही गई है, उस दिन कौन से गणेशजी की और किस तरीके से पूजा करनी चाहिए और किस प्रकार का भोजन ग्रहण करना चाहिए?"


गणपति जी ने उत्तर दिया, "हे पार्वतीजी! वैशाख माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को व्रत करना चाहिए। उस दिन 'वक्रतुण्ड' नाम के गणपतिजी की आराधना करके कमलगट्टे (कमल के बीज के अंदर की मीठी गरी) के हलवे का भोजन करना चाहिए। इस व्रत को करने से आपको शत्रुओं पर विजय प्राप्त होगी तथा अष्टसिद्धियाँ व नवनिधियाँ आपकी सेवा में रहेंगी। आप ध्यान से सुनें।"


गणेश जी धर्मकेतु नामक ब्राह्मण की कथा सुनते है:


प्राचीन समय में रन्तिदेव नाम के प्रतापी राजा हुए हैं। जैसे अग्नि तिनके के समूहों को भस्म कर देती है वैसे ही वह अपने शत्रुओं को नष्ट कर देते थे । यम, कुबेर, इन्द्रादि उनके मित्र थे। धर्मकेतु नाम का एक श्रेष्ठ ब्राह्मण उनके राज्य में रहता था। उसके सुशीला और चंचला नाम की दो स्त्रियाँ थीं। 


सुशीला सदैव कोई न कोई व्रत करती रहती थी। अतः उसका शरीर दुर्बल हो गया था। इसके विपरीत चंचला कभी भी कोई उपवास नहीं करती थी। वह सदैव पेटभर कर भोजन करती थी। कुछ समय पश्चात् सुशीला को एक सुन्दर लक्षणों वाली कन्या हुई और चंचला को एक पुत्र पैदा हुआ।


इस बात पर चंचला सुशीला को ताना मारकर बोली, "अरी सुशीला! तूने इतने उपवास करके अपने शरीर को दुबला बना लिया फिर भी तूने एक दुर्बल कन्या को पैदा किया। मेरी तरफ देख, मैंने कभी व्रत नहीं किया। मैं कैसी हृष्ट-पुष्ट हूँ और वैसे ही बालक को मैंने जन्म दिया है।” 


अपनी सौत का यह व्यंग्य सुशीला के हृदय को पीड़ा देने लगा। वह विधिवत् गणेशजी की पूजा करने लगी। 


संकटनाशक गणेश चतुर्थी को जब सुशीला ने भक्तिभाव से व्रत किया तब रात को वरदायक गणपतिजी ने उसे दर्शन दिये और बोले, “हे सुशीले! तेरी आराधना से हम बहुत प्रसन्न हैं। मैं तुम्हें वरदान देता हूँ कि तेरी कन्या के मुख से निरन्तर मोती व मूँगा गिरते रहेंगे। इससे तुम सदा खुश रहोगी। इसके अतिरिक्त तुम्हारे एक शास्त्र का जानने वाला पुत्र भी उत्पन्न होगा।”


ऐसा कहकर गणेशजी अदृष्ट हो गये। कुछ दिनों के पश्चात् सुशीला के एक पुत्र हुआ। तदनन्तर धर्मकेतु का स्वर्गवास हो गया। उसकी मृत्यु के बाद चंचला सारा धन लेकर अन्य घर में रहने लगी। सुशीला पति गृह में ही रहती हुई अपने पुत्र व पुत्री का लालन-पालन करने लगी। उसकी कन्या के मुख से मोती तथा मूँगा गिरने के कारण सुशीला के पास थोड़े समय में ही काफी धन इकट्ठा हो गया। 


चंचला इस कारण उससे जलने लगी। एक दिन चंचला ने हत्या करने के इरादे से सुशीला की पुत्री को कुएँ में गिरा दिया। उस कुएँ में गणेश जी ने उसके जीवन की रक्षा की तथा वह बालिका राजी-खुशी अपनी माता के पास वापस लौट आई। ऐसा देखकर चंचला का मन क्रोधित हो उठा। वह विचारने लगी कि ईश्वर जिसकी रक्षा करता है उसे कोई भी नहीं मार सकता। 


सुशीला अपनी पुत्री को पुनः प्राप्त कर अति प्रसन्न हुई । पुत्री को अपनी छाती से लगाकर वह कहने लगी, “भगवान् गणपति जी ने तुझे दोबारा जीवन दिया है। जिनका कोई नहीं होता उनके स्वामी गणेश जी हैं।”


 चंचला ने आकर उसके पैरों में अपना सिर झुकाया। चंचला को देखकर सुशीला बहुत आश्चर्य में हुई। 


चंचला ने हाथ जोड़कर कहा “बहिन सुशीले! मैं बहुत पापिन एवं नीच हूँ। आप दया करने वाली हैं। आपने दोनों कुलों का भला किया है। आप मेरी गलतियों को क्षमा करें। जिसके भगवान् रक्षक हैं उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। जो मनुष्य साधुओं एवं अच्छे पुरुषों के दोषों को देखते हैं वे अपने कर्म से स्वयं ही नाश को प्राप्त हो जाते हैं।”


तत्पश्चात् चंचला ने भी उस कष्टनाशक तथा पुण्य को देनेवाले संकटनाशक गणपति जी के व्रत को किया। गणपति जी की कृपा से उन दोनों में आपस में दोस्ती हो गई। जिस पर गणेश जी प्रसन्न होते हैं उसके बैरी भी सखा बन जाते हैं। सुशीला के संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत किये जाने के फलस्वरूप उसकी सौत चंचला का मन पलट गया। 


श्री गणपति जी कहते हैं “हे देवी! मैंने पूर्वकाल की सारी बात बता दी है। इस संसार में इससे सुन्दर आपत्तियों को दूर करने वाला कोई अन्य व्रत नहीं है।”


इस व्रत को करने से आपको शत्रुओं पर विजय प्राप्त होगी तथा अष्टसिद्धियाँ व नवनिधियाँ आपकी सेवा में रहेंगी।

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