ज्येष्ठ कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत कथा Spiritual RAGA

(दयादेव नामक ब्राह्मण की कथा)
गणेश चतुर्थी व्रत कथा
(गणेश चतुर्थी व्रत कथा)

ज्येष्ठ कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत किस महीने में आता है?


ज्येष्ठ कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत मई या जून के महीने में आता है।



ज्येष्ठ कृष्ण में गणेश जी के किस नाम की पूजा करनी चाहिए?


इस दिन ‘मूषक रथ’ नाम के गणेश जी की पूजा करनी चाहिए।


विवरण:


यह व्रत संकटनाशक गणेश चतुर्थी व्रत में से एक है। इस व्रत को आप अपनी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए कर सकते हैं। यह व्रत आपके घर में सुख-शांति लाता है। इस व्रत में आप शांति पाठ भी पढ़ सकते हैं। रात को चंद्रमा को जल चढ़ाने के बाद व्रत पूर्ण होगा।


कथा:

॥ श्री महागणाधिपतये नमः ॥

एक समय की बात है, पार्वती जी ने गणेश जी से पूछा "हे पुत्र! ज्येष्ठ माह की चतुर्थी की किस तरह पूजा करनी चाहिए? इस माह के गणपति जी का नाम क्या है? आहार में किस चीज का भोजन करना चाहिए? सूक्ष्म रूप में इस विधि को बताइये।" 


गणेश जी ने कहा, "हे माते! ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्थी सौभाग्य को बढ़ाने वाली तथा पति प्रदायिनी है। इस दिन मूषक रथ नाम के गणपति जी की पूजा पूर्ण भक्ति के साथ करनी चाहिए। इस दिन घी से बनाया हुआ भोजन जैसे हलवा, पूड़ी, लड्डू इत्यादि गणेश जी को समर्पित करें। ब्राह्मण को भोजन कराकर फिर खुद भोजन करें।"


गणेश जी आगे कहते है, "हे पार्वती माता जी! मैं इस सम्बन्ध में एक पूर्व कालीन इतिहास बता रहा हूँ। गणपति व्रत और उनकी पूजा की विधि जैसी पुराण में बताई गई है उसे सुनें।"


गणेश जी ने दयादेव नामक ब्राह्मण की कथा सुनाई: 


सतयुग में एक पृथु नाम के राजा हुआ करते थे, जिन्होंने सौ यज्ञ किये। उनके राज्य के भीतर दयादेव नाम के एक ब्राह्मण रहते थे। वेदों में पूर्ण विद्वान् उनके चार पुत्र थे। पिता ने अपने चारों पुत्रों का विवाह वैदिक रीति से कर दिया। 


उनकी चार बहुओं में बड़ी बहू ने अपनी सास से कहा, "हे सासू जी! मैं छोटेपन से ही संकटनाशक चतुर्थी का व्रत करती आई हूँ। मैंने अपने पिता के घर में भी इस मंगलदायक व्रत को किया है। इसलिए हे कल्याणी! आप मुझे यहाँ भी यह व्रत करने की आज्ञा देने की कृपा करें।"


बहू की बात सुनकर उसके ससुर ने कहा, "हे बहू! तुम सब बहुओं में बड़ी और श्रेष्ठ हो। अभी तुम्हारा समय खाने-पीने का है। तुम्हें किसी भी तरह की कोई असुविधा नहीं है और न ही तुम भिखारिन हो। अतः तुम व्रत करना क्यों चाहती हो?  फिर तुम्हें इसकी आवश्यकता ही क्या है?" बहु ने कुछ नही कहा और व्रत रहते रही। 


थोड़े समय पश्चात् बड़ी बहू गर्भवती हो गई। दस माह बाद उसने एक सुन्दर बालक को जन्म दिया। उसकी सास बार-बार बहू को व्रत करने के लिए मना करने लगी और व्रत को छोड़ने के लिए लाचार करने लगी। तो बहु ने व्रत रखना बंद कर दी। व्रत के छूट जाने के कारण गणेश जी रुष्ट हो गये और उसके पुत्र के विवाह के समय में वर-वधू के फेरों के बाद उसके पुत्र का अपहरण कर लिया। इस अनहोनी घटना से मंडप में हलचल मच गई।


वधू के पिता दुखी होकर कहने लगे, "लड़का कहाँ चला गया?" बारातियों द्वारा ऐसी खबर मिलने पर लड़के की माता अपने ससुर दयादेव से रोकर कहने लगी, "हे ससुरजी! आपने मेरा गणेश चतुर्थी का व्रत छुड़वा दिया है जिससे मेरा पुत्र गायब हो गया है।" पुत्र वधू के मुँह से यह सुनकर दयादेव ब्राह्मण अत्यन्त दुखी हुआ। अपने स्वामी के लिए दुखित पुत्र वधू प्रति माह संकटनाशक गणेश चतुर्थी का उपवास करने लगी।


एक बार एक वेदों का जानने वाला दुर्बल ब्राह्मण भीख माँगने के लिए इस मृदुभाषिणी के घर आया। उसने कहा, “हे पुत्री ! मुझे भिक्षा में इतना भोजन दो जिससे कि मेरी भूख मिट जाए।” उस धर्माचरण कन्या ने ब्राह्मण का विधिवत् आदर-सत्कार किया और उसको भर पेट भोजन कराने के पश्चात् उसको वस्त्र आदि दिये। 


कन्या के सेवा-भाव से प्रसन्न होकर ब्राह्मण ने कहा, “हे कल्याणी! हम तुम पर अति प्रसन्न हैं, तुम अपनी इच्छानुसार मुझसे वरदान माँग लो। मैं वेशधारी ब्राह्मण गणेश जी हूँ और तुम्हारी श्रद्धा एवं प्रीति के फलस्वरूप ही यहाँ आया हूँ।” ब्राह्मण की यह बात सुनकर कन्या हाथ जोड़कर कहने लगी, “हे विघ्नविनायक! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे मेरे स्वामी के दर्शन करा दीजिए।”


कन्या के ऐसा कहने पर गणेश जी ने उससे कहा कि “हे उत्तम विचारवाली कन्या! जैसा तुम चाहती हो वैसा ही होगा। तुम्हारा स्वामी जल्दी ही तुम्हें मिल जाएगा।” ऐसा कहकर गणेश जी वहीं अदृष्ट हो गये। उसी समय सोमशर्मा नाम का एक ब्राह्मण उस ब्राह्मण बालक को शहर में लाये। अपने पौत्र को देखकर दयादेव बहुत प्रसन्न हुए।


बालक की माता खुशी से फूली न समाई तथा सम्पूर्ण नगरवासी बहुत प्रसन्न हुए। बालक की माता ने अपने पुत्र को छाती से लगा लिया और कहने लगी, “गणपति जी की कृपा से ही मैंने अपने अपहरण किये गये पुत्र को पाया है।” उसे नए कपड़ों एवं गहनों से सजाया। दयादेव तो बार-बार नतमस्तक होकर कहने लगे, “हे द्विज श्रेष्ठ! आपकी कृपावश ही मैंने अपने खोये हुए पुत्र को पाया है।”


उन्होंने सोमशर्मा को स्वादिष्ट भोजन कराकर, धोती, दुपट्टे आदि से सुशोभित कर उन्हें गोदान दिया और पुनः मंडप बनाकर विधिपूर्वक विवाह का कार्य पूरा किया। इससे समस्त पुरवासी बहुत प्रसन्न हुए। वह भाग्यशालिनी कन्या अपने स्वामी को पाकर धन्य हो गई। ज्येष्ठ माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी मनुष्यों की मनोकामना पूर्ण करती है। 


इस दिन स्त्री पुरुषों को एकदन्त गणपति जी की पूजा करनी चाहिए। हे देवी! पहले कहे गये विधान के अनुसार भक्ति श्रद्धा युक्त जो मनुष्य इस व्रत एवं पूजन को करेंगे उनकी समस्त कामनाएँ पूरी होंगी।


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