भाद्र कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत कथा Spiritual RAGA

(राजा नल की कथा)

भाद्र कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत कथा
भाद्र कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत कथा

भाद्र कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत किस महीने में आता है?


भाद्र कृष्ण -गणेश चतुर्थी व्रत अगस्त या सितंबर के महीने में आता है।


भाद्र कृष्ण में गणेश जी के किस नाम की पूजा करनी चाहिए?


इस दिन ‘सभी’ नाम के गणेश जी की पूजा करनी चाहिए।


विवरण:


यह व्रत संकटनाशक गणेश चतुर्थी व्रत में से एक है। इस व्रत को आप अपनी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए कर सकते हैं। यह व्रत आपके घर में सुख-शांति लाता है। इस व्रत में आप शांति पाठ भी पढ़ सकते हैं। रात को चंद्रमा को जल चढ़ाने के बाद व्रत पूर्ण होगा।


कथा:

॥ श्री महागणाधिपतये नमः ॥


पार्वती जी ने गणेश जी से पूछा, “हे पुत्र! भादों माह की कृष्ण चतुर्थी का व्रत जिसको संकटनाशक चतुर्थी कहा गया है किस तरह किया जाता है? मुझसे कहिए।” गणेश जी बोले, “हे माता! भादों कृष्ण चतुर्थी संकटनाशक, तरह-तरह के फलों एवं सब सिद्धियों को देने वाली है।  रात को चंद्रमा को जल चढ़ाने के बाद व्रत पूर्ण होगा। भोजन से सम्बन्धित ही कुछ विशेषताएँ इस व्रत में हैं, सो बतला रहा हूँ। इस व्रत में लड्डू या मोदक का सेवन अनिवार्य है। अगर किसी कारणवश मनुष्य लड्डू या मोदक का सेवन ना कर पाए तो बेसन का हलवा खा ले, उसके अभाव में आटे  का हलवा ले ले तोह भी चलेगा।"


भादों के माह में ऐसी मान्यता है की भक्त अपनी श्रद्धा अनुसार 1.5 दिन, 3 दिन, 7 दिन या 10 दिन के लिए गणेश जी को अपने घर ला सकते हैं। और १२ माह के व्रत से जो पुण्य प्राप्त होता है उसी के बराबर पुण्य वो उन दिनों गणेश सेवा से प्राप्त कर सकता है । व्रती बारह महीनों में अलग-अलग नामों से विनायक, एक दन्त, कृष्ण पिंग, गजानन, लम्बोदर, भाल चन्द्र, हेरम्ब, विकट, वक्रतुण्ड, आखुरध, विघ्नराज और गणाधिप गणेश जी की क्रमशः एक-एक नाम से आराधना करता है। इन ही नामो से गणेश जी की उन दिनों में भी पूजा अर्चना करनी चाइये।   


चतुर्थी के दिन भक्त सुबह रोज के कार्यों से निपट कर व्रत करें। रात को पूजन करें और कथा सुनें। भादों  कृष्णा गणेश चतुर्थी के दिन राजा नल की कथा का बड़ा महत्व है।  


पूर्वकाल में एक पुण्यात्मा और यशस्वी राजा नल हुए। उनकी रूपवती रानी दमयन्ती नाम से विख्यात थी। एक बार राजा नल ने अनजाने में किसी ऋषि का अपमान कर दिया तब ऋषि ने उनको श्राप दिया की तुम्हे दारुण दुःख प्राप्त होगा। राजा नल को इसके बाद बड़ी-बड़ी विपत्तियों को झेलना पड़ा। हाथी खाने से हाथियों की और घुड़साल से घोड़ों की चोरी हो गई। डाकुओं द्वारा राजा का खजाना लूट लिया गया। अग्नि की लपटों से उनका माल भस्म हो गया। मंत्रियों ने भी राजा का साथ छोड़ दिया। राजा इसके बाद अपने मंत्रियो की बातो में आ के एक बार जुआ खेलने लगे और उसी बार राजा जुए में सब कुछ हार गये।


राजधानी भी जुए में हाथ से चली गई। सब ओर से निराश होकर राजा नल वन में चले गये। उन्हें वन में दमयन्ती के साथ बहुत से कष्ट उठाने पड़े। अन्त में उनका रानी से वियोग हो गया। राजा किसी नगर में साईस का कार्य करने लगे। रानी अन्यत्र किसी नगर में रहने लगी तथा राजकुमार भी किसी दूसरी जगह नौकरी करने लगा। जो कभी राजा, रानी, राजपुत्र कहलाते थे वे ही अब भीख मांगने लगे। नाना प्रकार की बीमारियों से ग्रसित होकर एक दूसरे से बिछुड़ कर कर्मों के फल भोगते हुए समय गुजारने लगे।


एक बार की बात है कि वन में इधर-उधर भटकते हुए दमयन्ती ने शरभंग ऋषि के दर्शन किये। उसने उनके चरणों में मस्तक झुकाकर और हाथ जोड़कर अपना सारा वृत्तांत कह सुनाया और उनसे पूछा, हे ऋषिराज मेरे पति मुझे कब मिलेंगे? किस प्रकार हम इस दुःख भरी अवस्था से बाहर आएंगे ? हमारा भाग्य कब पलटेगा ? हे मुनि श्रेष्ठ! आप निश्चित तौर से बताइये। 


श्री गणेश जी कहते हैं कि दमयन्ती का यह प्रश्न सुनकर शरभंग ऋषि ने कहा, हे दमयन्ती ! मैं तुम्हारे भले की बात बता रहा हूँ, इसे सुनो। इससे दारुण दुःख का नाश होता है और यह समस्त प्रकार की इच्छाओं को पूरा करनेवाला एवं अच्छे फल को देने वाला है। भादों मास की कृष्ण चतुर्थी संकटनाशनी कही गई है। इस दिन स्त्री-पुरुषों को एकदन्त भगवान् गणपति जी की आराधना करनी चाहिए। विधिपूर्वक इस व्रत एवं पूजन को करने से ही हे रानी! तुम्हारी समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होंगी।  


गणपति जी कहते हैं कि शरभंग ऋषि के इन वचनों को सुनकर, दमयन्ती ने भादों माह की संकटनाशनी चतुर्थी व्रत शुरू किया और उसी समय से प्रति माह गणेश जी का पूजन करने लगी। सात माह के भीतर ही हे राजन्! इस श्रेष्ठ व्रत को करने से उसे पहले की तरह पति, पुत्र, राज्य और सब प्रकार के वैभव आदि की प्राप्ति हो गई।

जिस प्रकार गणेश जी ने नल और दमयंती का दुःख दूर किया है उसी प्रकार हमारा दुःख भी दूर करें।

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