आषाढ़ कृष्णपक्ष की योगिनी एकादशी का व्रत सब पापों को दूर करके भक्ति और मुक्ति को देने वाला है पुराणों में लिखी हुई उसकी पाप नाशनी कथा व्रत है।
आषाढ़ कृष्णा पक्ष की एकादशी का क्या नाम है?
आषाढ़ कृष्णा पक्ष की एकादशी का नाम है: योगिनी एकादशी।
योगिनी एकादशी कौन से महीने में आते है?
योगिनी एकादशी का व्रत कब आता है?
योगिनी एकादशी का व्रत, आषाढ़ महीने की कृष्णापक्ष को आता है।
योगिनी एकादशी का व्रत कैसे करे?
एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नान करे, विधिपूर्वक पूजन करें, सारा दिन बिना कुछ खाए भगवान का किरतान करे।
एकादशी का व्रत कितना उत्तम माना जाता है?
अर्द्ध प्रसूता गौ, सुवर्ण और पृथ्वी दान करने से जो फल मिलता है, वही फल मनुष्य को योगिनी एकादशी का व्रत करने से मिलता है।
कथा:
अलकापुरी का राजा कुबेर शिवजी का पूजन किया करता था। उसका माली हेममाली नाम का यक्ष था। उसकी पत्नि विशालाक्षी बहुत सुन्दर थी। वह माली उसके स्नेह से युक्त होकर कामदेव के वशीभूत हो गया वह मानसरोवर से फूल लाकर अपनी पत्नि के प्रेम में फंसकर घर पर ही ठहर गया। फूल देने के लिए कुबेर के स्थान पर नहीं गया। मध्याह्न के समय कुबेर जब शिवालय में शिवजी का पूजन करने लगे। तब वहां फूल दिखाई नहीं दिये। हेममाली अपने घर में अपनी स्त्री के साथ रमण कर रहा था।
विलम्ब के कारण कुपित होकर कुबेर बोला, "हे यक्षी! दुष्ट हेमामाली क्यों नहीं आया?" वे बोले, "हे नृप ! वह पत्नि का प्रेमी अपने घर पर अपने पत्नि के साथ है।" यह सुनकर कुबेर क्रोध में भर गया। शीघ्रता से हेममाली को बुलाया। देर हो जाने के कारण वह माली भी भय से व्याकुल होकर वहां आया। कुबेर को नमस्कार करके सामने खड़ा हो गया।
उसको देखकर कुबेर के क्रोध से होंठ फड़कने लगे और कुबेर ने कहा, "अरे पापी, दुष्ट, दुराचारी! तूने देवता का अपराध किया। इसलिए तेरे शरीर में श्वेत कुष्ट हो जाय और तेरी पत्नि तेरे से सदा वियोग रहे।" कुबेर के इस प्रकार कहने पर वह उस स्थान से गिर गया और श्वेत कुष्ठ से पीड़ित होकर बहुत दुःखी हुआ। ऐसे भयंकर वन में गया जहां अन्न और जल कहीं नहीं मिलता था।
वह भ्रमण करता हुआ हिमालय पर्वत पर चला गया। वहां पर तपस्वी मार्कण्डेय मुनिश्वर का दर्शन किया और प्रणाम किया परोपकारी मार्कण्डेय मुनिश्वर ने उसको कुष्ठी देखकर उसे बुलाकर कहा, "तुम्हारे कुष्ठ कैसे हो गया?" मार्कण्डेय जी के कहने पर हेमामाली बोला, "मैं कुबेर का सेवक हूँ, हेमामाली मेरा नाम है। हे मुनि! मैं नित्य मानसरोवर से फूल लाकर शिवजी के पूजन के समय कुबेर को देता था एक दिन मुझको देर हो गई क्योंकि कामदेव के वशीभूत होकर मैं अपनी पत्नि के साथ विषय भोग में लग गया।
हे मुने! तब कुबेर ने कुपित होकर मुझे श्राप दे दिया। मेरे शरीर में कुष्ठ हो गया और स्त्री से वियोग हो गया। इसलिए हे मुनि श्रेष्ठ! मुझ पापी को उपदेश दीजिए।" मार्कण्डेय जी बोले, "तूने सत्य कहा, झूठ नहीं बोला। इसलिए मैं शुभ फल देने वाले व्रत का उपदेश करूंगा। तू आषाढ़ कृष्णपक्ष की योगिनी नाम की एकादशी का व्रत कर। इस व्रत के प्रभाव से निश्चय कुष्ठ दूर जायेगा।"
मुनि के इस वाक्य को सुनकर उसने पृथ्वी पर प्रणाम किया और उसने यह उत्तम व्रत किया। इसके प्रभाव से वह देवरूप हो गया। पत्नी से उसका मिलाप हो गया और अच्छा सुख मिला । बड़े पापों को दूर करने के वाली आषाढ़ कृष्णा एकादशी का व्रत मैंने तुम से कहा है।