ऋषि बोले—देवी का यह शब्द सुन क्रोध युक्त दूत ने दैत्यराज शुम्भ के पास जाकर पूरी कथा विस्तार पूर्वक सुना दी। तब दूत से समस्त बातों को सुनकर दैत्यराज ने कोधित हो कर असुर सेनापति धूम्रलोचन से कहा- हे धूम्र- लोचन ! तुम शीघ्र ही अपनी सेना समेत वहां जाओ और उस दुष्टा के केश पकड़कर घसीटते हुए बलपूर्वक यहां ले आओ । यदि उसकी रक्षा करने को कोई देवता, यक्ष या गन्धर्व आवे तो उसे अवश्य मार डालना । ऋषि बोले- इस प्रकार दैत्यराज से आज्ञा लेकर धूम्रलोचन साठ हजार दैत्यों की सेना लेकर वहां शीघ्र पहुंच गया और देवी को देखकर ललकार कर कहा- तू बहुत जल्द शम्भ और निशुम्भके पास चली जा यदि तू प्रसन्नतापूर्वक नहीं चलेगी तो मैं तेरे केश पकड़कर तुझे घसीटता हुआ ले जाऊंगा।
Shri Durga Saptashati श्री दुर्गा सप्तशती Spiritual RAGA
तब देवी बोली- दैत्येश्वर ने तुझ जैसे बलशाली को भेजा है यदि तू मुझे बलपूर्वक ले जाएगा तो मैं उस समय तेरा क्या कर सकती हूं। ऋषि ने कहा- देवी के ऐसा कहते ही धूम्रलोचन देवीके भागे दौड़ा तो उसी समय अम्बिका ने हुंकार से उस दैत्य को मस्म कर दिया । तदनन्तर असुर सेना अत्यन्त क्रोधित हो देवी की तरफ बढ़ी, तब देवी बड़े तेज बाण शक्ति तथा फरशों की बरसा करने लगी। इतने ही में देवी का वाहन सिंह अपनी गर्दन के बाल हिलाता हुआ क्रोध से भयंकर गर्जना करता हुआ असुर सेना पर झपटा। उसने कितनों को पंजों से, कितनों को मुखसे तथा होंठ या डाढ़से घायल करके मार डाला।
उसने अपने नखों से कितने ही असुरों के धड़ को अलग कर दिया। कितने असुरों की भुजाओं और सिरों को काट डाला और अपनी गर्दन के बालों को हिलाता हुआ कुछ दैत्योंके उदर को फाड़कर रक्तपान करने लगा। उस महाबली सिंहने क्षणमात्र में ही असुरों की सब सेना को धराशायी कर दिया। असुरराज ने जब यह सुना कि देवी ने धूम्रलोचन को मार दिया है और उसके सिंह ने समस्त सेना को नष्ट कर दिया है तो उसके होठ क्रोध से फड़कने लगे और उसने चण्ड-मुण्ड नामक महाअसुरों को आज्ञा दी कि हे चण्ड ! हे मुण्ड ! तुम बहुत बलवान सेना लेकर जाओ और वहां से उस स्त्री के केश पकड़ कर ले आओ । यदि वह न आवे और तुम्हें किसी प्रकार का संदेह हो हो उससे अपनी सेना सहित युद्ध करके उसकी हत्या कर देना और उस दुष्टा तथा उसके सिंह को मर जाने पर भी बांध कर शीघ्र मेरे पास ले आना।
इस प्रकार 'धूम्रलोचन वध' नाम छठा अध्याय समाप्त हुआ।
Shri Durga Saptashati seventh chapter श्री दुर्गा सप्तशती सातवां अध्याय Spiritual RAGA