(चैत्र कृष्ण-गणेश चतुर्थी) |
चैत्र कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत किस महीने में आता है?
चैत्र कृष्ण में गणेश जी के किस नाम की पूजा करनी चाहिए?
इस दिन ‘विकट’ नाम के गणेश जी की पूजा करनी चाहिए।
विवरण:
यह व्रत संकटनाशक गणेश चतुर्थी व्रत में से एक है। यह व्रत आपके घर में सुख-शांति लाता है। इस व्रत को आप अपनी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए कर सकते हैं। इस व्रत में आप शांति पाठ भी पढ़ सकते हैं। इस व्रत में अन्य चीजों के साथ लड्डू का भोग भगवान गणेश को अवश्य लगाना चाहिए। रात को चंद्रमा को जल चढ़ाने के बाद व्रत पूर्ण होगा।
कथा:
एक समय की बात है पार्वती जी ने गणेश जी से पूछा “हे गणेश जी ! चैत्र मास की कृष्ण चतुर्थी को आपकी पूजा कैसे करनी चाहिए? इस दिन भोजन क्या लेना चाहिए? इस मास के देवता का क्या नाम है और उनका पूजन विधान क्या है? वह आप मुझे बताइये।”
गणेश जी ने पार्वती जी को कहा “हे महादेवी! चैत्र कृष्ण चतुर्थी को 'विकट' नामक गणेश की पूजा करनी चाहिए। सारे दिन व्रत कर के रात को षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए। ब्राह्मण भोज के बाद स्वयं व्रत रखने वाले को पंचगव्य (गौ का गोबर, मूत्र, दूध, दही, घी) लेना चाहिए। यह संकटनाशक व्रत है। इस दिन शुद्ध घी और बिजौरे नींबू से हवन करने से बांझ स्त्रियों को भी बच्चे की प्राप्ति होती हैं। हे शैलपुत्री! इसका इतिहास बहुत अद्भुत है जिसके स्मरण मात्र से ही मनुष्य को सिद्धि मिलती है। उसे मैं आपको कहता हूँ।”
गणेश जी ने मकरध्वज नामक राजा की कथा सुनाई:
पुराने समय में, सतयुग में मकरध्वज नाम के एक राजा हुआ करते थे। वे प्रजापालक थे। उनके राज्य में कोई निर्धन नहीं था । चारों वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) अपने-अपने धर्मों का पालन करते थे। प्रजा को चोर डाकुओं आदि का कोई भय नहीं था। सभी लोग उदार, बुद्धिमान्, दानी व धर्मपरायण थे। इतना सब कुछ होते हुए भी राजा को एक दुःख था कि उन्हकै कोई बच्चा नहीं था। लेकिन कुछ समय पश्चात् महर्षि याज्ञवल्क्य की कृपा से उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई। वे अतयंत खुश हुए।
राजा अपना अधिकतर वक़्त अपने पुत्र के साथ ही बिताना थे इस लिए उन्होंने राज्य का कार्यभार अपने मंत्री धर्मपाल पर छोड़ दिया और अपने पुत्र का पालन-पोषण करने लगे। राज्य शासन हाथ में आ जाने से मंत्री धर्मपाल धनवान् हो गए। भगवान के आशीर्वाद से, मंत्री के पाँच पुत्र थे। वे सब बिना सोचे समझे धन का उपभोग करने लगे। मंत्री ने अपने सारे पुत्रों का विवाह बहुत धूम-धाम से करवा दिया।
मंत्री धर्मपाल की सबसे छोटे पुत्र की बहू अत्यन्त धर्मपरायणी थी। वो गणेश जी की बहुत पूजा करती थी और उनके लिए व्रत भी रखती थी। उसने चैत्र कृष्ण चतुर्थी पर भक्तिपूर्वक गणपति जी का व्रत रखा और पूजा करी। ऐसा देखकर उसकी सास ने कहा, “अरी! क्या तन्त्र-मन्त्र द्वारा मेरे पुत्र को वश में करने का उपाय कर रही है?”
बार-बार सास के रोकने पर भी जब बहू न मानी तो सास ने कहा, "मुझे यह सब पसन्द नहीं है। ये सब मत किया कर मेरे घर में। नहीं तो मैं तुझे दंड दूगी।"
बहू ने कहा, "मैं तो बस संकटनाशक गजानन का व्रत कर रही हूँ। यह व्रत तो बहुत फलदायक है। आपको भी रखना चाहिए। इस से घर में खुशियाँ बनी रहती है।"
सास ने कहा "मैं गणेश को नहीं जानती कि ये कौन हैं? हम राजघराने के लोग हैं और हमारी किस विपत्ति को यह नष्ट करेंगे।"
फिर सास ने अपने पुत्र से कहा कि "हे पुत्र! तुम्हारी बहू जादू-टोने कर रही है और मेरे कई बार मना करने पर भी वह अपनी जिद के कारण नहीं मान रही। इसे अब मार-पीट कर ही ठीक करना होगा।"
माता के कहने पर पुत्र ने बहू को मारा-पीटा। पर मार-पीट सहकर भी बहू ने गणेश जी का व्रत पूरा किया। पूजा के बाद उसने गणेश जी से प्रार्थना की "हे गणपति ! हे विघ्नविनायक! कुछ ऐसा कीजिए की मेरे सास-ससुर के मन में आपके प्रति आस्था जाग्रत हो जाए।"
भगवान् ने अपने भगत की समस्या के उपाए करने के लिए उसी समय राजा की पुत्र का अपहरण कर, मंत्री धर्मपाल के महल में छिपाकर रख दिया। गणेश जी ने राजकुमार के वस्त्र, आभूषण आदि उतार कर राजमहल में फेंक दिए और स्वयं अंतर्धान हो गए।
राजा अपनी महल में घूम रहे थे और घूमते-घूमते उन्होंने देखा कि राजकुमार की वस्त्र, आभूषण आदि ज़मीन पर पड़े है। ऐसा देखकर राजा अपनी पुत्र को खोजने लगे और उसे शीघ्रता से पुकारा लेकिन कोई उत्तर न मिला।
राजा बहुत परेशान थे। फिर राजा ने मंत्री धर्मपाल को बुलाया और उनसे पूछा, "राजकुमार कहाँ चला गया ? किसने यह बुरा कार्य किया है ? हाय! राजकुमार कहाँ गया ?"
मन्त्री ने कहा- "हे राजन्! राजकुमार ऐसे कहाँ जा सकते हैं। यही कहीं होगें। मैं अभी सभी स्थानों में खोज कराता हूँ।"
इसके बाद, राजा ने अपने नौकरों, अंगरक्षकों और बाकी मंत्रियों आदि को भी राजकुमार का शीघ्र पता लगाने के लिए कहा। राजा का आदेश पाकर वे लोग सभी स्थानों में खोज करने लगे।
जब राजकुमार का कहीं भी पता न लगा। तब सब लोग राजा के पास आए और डरते हुए कहा, "महाराज! राजकुमार का कहीं पता नहीं चला। राजकुमार को आते जाते किसी ने नहीं देखा। पर ये राजकुमार का एक आभूषण मंत्री धर्मपाल के घर के पास से मिला है।"
ऐसा सुनकर राजा ने मंत्री को बुलवाया। राजा ने मन्त्री से पूछा कि "राजकुमार कहाँ है? मुझे सच-सच बता दो वरना मैं तुम्हारा वध कर डालूँगा और तुम्हारे कुल को नष्ट कर दूंगा।"
राजा द्वारा डाँट फटकार पड़ने पर मन्त्री हैरान हो गया। मंत्री ने कहा, "हे राजा! मैंने यह कार्य नहीं किया। मैं पता लगाता हूँ कि किसने यह बुरा कार्य किया है और जल्दी से जल्दी राजकुमार को आपके पास लाता हूँ।” धर्मपाल बहुत परेशान हो गए और महल में आकर अपनी पत्नी, पुत्रों तथा सभी बहुओं को सारा वाकिया बताया और पूछा कि "यह कर्म किसने किया है? मुझे साफ़ साफ़ बता दो। यदि राजकुमार का पता नहीं लगा तो राजा मेरे वंश का नाश कर देंगे।"
सब लोग बहुत हैरान और परेशान हो गए। ससुर की बात सुनकर छोटी बहू ने एक उपाए देते हुए कहा "हे पिता जी! आप इतनी चिंता क्यों कर रहे हो? आप गणपति जी की पूजा कीजिए और आपकी सारी परेशानिया दूर हो जाएगी। अगर राजा से लेकर नगर के समस्त स्त्री-पुरुष, बालक-वृद्ध, चैत्र मास गणेश चतुर्थी का व्रत करें तो गणेश जी की कृपा से राजकुमार मिल जाएँगे। आप मेरा विश्वास करो, मेरा वचन कभी झूठा नहीं होगा।"
छोटी बहू की बात सुनकर ससुर ने हाथ जोड़कर कहा कि “हे बहू! तुम धन्य हो, तुम मेरा तथा मेरे कुल का उद्धार कर दोगी।” तब राजा सहित सब प्रजाजनों ने गणेशजी की प्रसन्नता के लिए संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत करना प्रारम्भ किया। इस व्रत से गणेशजी प्रसन्न हो गए।
सब लोगों के समक्ष शीघ्र ही उन्होंने राजकुमार को प्रकट कर दिया। ऐसा देखकर नगरवासी आश्चर्यचकित हो गए। राजा के हर्ष की तो सीमा न रही। सब लोग बहुत प्रसन्न हुए। राजा ने कहा, “हे विघ्नविनायक! आपको धन्य है और मंत्री की कल्याणी बहू भी धन्य है जिसकी वजह से मेरा पुत्र मुझे मिल गया।”
अतः समस्त जन इस सन्तानदायक व्रत को सदैव विधिवत् करते रहें।