पद्मा एकादशी (आषाढ़ शुक्ला) व्रत कथा Spiritual RAGA

जगत में एकादशी से पवित्र और कोई पर्व नहीं है। आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम पद्मा है। हृषीकेश भगवान के प्रसन्न करने को यह उत्तम व्रत करना चाहिए। इस व्रत की कथा को सुन कर बड़े पाप नष्ट हो जाते हैं।

पद्मा एकादशी (आषाढ़ शुक्ला) व्रत कथा
पद्मा एकादशी (आषाढ़ शुक्ला) व्रत कथा


आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी का क्या नाम है?


आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम है: पद्मा एकादशी


पद्मा एकादशी कौन से महीने में आते है?


पद्मा एकादशी जून-जुलाई में आते है।


पद्मा एकादशी का व्रत कैसे करे? 


दिन के आठवें भाग में जब सूर्य का प्रकाश मन्दा हो जाय उस समय के आहार का नाम नक्त भोजन हैं। जब भोजन करना चाहिए। मध्याह्न के समय स्नान करके पवित्र हो जायें। ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर प्रणाम करके क्षमा मांगे।


एकादशी का व्रत कितना उत्तम माना जाता है?


सिद्धि और कामना को पूर्ण करने वाले नारायण इसके देवता हैं।  एकादशी के व्रत के पुण्य की सीमा नहीं हैं। तीर्थ, दान, नियम, तभी तक गर्जते हैं जब तक एकादशी नहीं प्राप्त हर्ट इसलिए संसार से डरे हुए मनुष्यों को एकादशी व्रत करना चाहिए। हजार यज्ञ करके भी एकादशी के बराबर फल नहीं होता।

कथा:

 

सूर्यवंश में सत्यवादी, प्रतापी मान्धाता नाम का चक्रवर्ती राजा था। वह राजा धर्म से अपने पुत्र की तरह प्रजा का पालन करता था। एक समय की बात है, तीन वर्ष तक उसके राज्य में वर्षा नहीं हुई। इससे उसकी प्रजा भूख प्यास से पीड़ित होकर व्याकुल हो गई। अन्न के अभाव से पीड़ित होने के कारण उसके राज्य में काल पड़ गया। 


फिर प्रजा आकर राजा से बोली, “हे राजन्! मेघ रूपी विष्णु भगवान सब में व्याप्त हैं वे ही वर्षा करते हैं। हे नृपते ! अन्न के न होने से प्रजा नष्ट हो रही है। ऐसा यत्न करिये जिससे कल्याण हो।” राजा बोला, “आपने सत्य कहा। तथापि मैं प्रजा के हित के लिए यत्न करूँगा।” ऐसा विचार करके राजा ने कुछ सेना साथ में ले ली। ब्रह्माजी को प्रणाम करके गहन वन में चला गया। तपस्वी मुनिश्वरों के आश्रम में विचरने लगा। 


राजा ने ब्रह्मा के पुत्र अंगिरा ऋषि को देखा जिनके तेज से दिशाओं में प्रकाश हो रहा था। दूसरे ब्रह्मा की तरह मालूम होते थे। उनको देखकर जितेन्द्रिय राजा प्रसन्न हुआ और सवारी से उतर कर हाथ जोड़कर चरणों में प्रणाम किया। ऋषि ने आशीर्वाद देकर राज्य के सातों अंगों की कुशल पूछी। फिर मुनि ने राजा के आने का कारण पूछा। राजा ने अपनी कुशल और आने का कारण सुनाया। 


राजा बोला, “मैंने धर्म से पृथ्वी का पालन किया है परन्तु मेरे राज्य में वर्षा नहीं हुई। इसका कारण मैं नहीं जानता। इस सन्देह को दूर करने के लिए मैं आपके पास आया हूँ। शान्ति और कल्याण की विधि से प्रजा के सुख का करिये।” ऋषि बोले, “हे राजन्! यह सतयुग सब युगों में उत्तम है। इस युग में मनुष्य ब्रह्मज्ञानी है। इसमें धर्म के चारों चरण वर्तमान हैं। 


इस युग में वर्तमान है इस युग में वर्तमानों के सिवा और कोई तपस्या नहीं करते। हे राजेन्द्र! तुम्हारे देश में शुद्र तप कर रहा है। उसके अनुचित कार्य करने से वर्षा नहीं हो रही है। उसको मारने का उपाय करो जिससे दोष शान्त हो।” राजा बोला, “तप करते हुए को बिना अपराध के मैं नहीं मारूंगा। दुःख दूर करने को धर्म का उपदेश दीजिए।” 


ऋषि बोले, “हे राजन्! जो ऐसा है तो एकादशी का व्रत करिये। आषाढ़ के शुक्ल पक्ष में पद्मा नाम की प्रसिद्ध एकादशी है इसके व्रत के प्रभाव से निश्चय ही वर्षा होगी। यह सब को देने वाली और सब उपद्रवों को नष्ट करने वाली है। हे नृप! तुम प्रजा और परिवार सहित इसका व्रत करो।”


मुनि का यह वचन सुनकर राजा अपने महल में आया और पद्मा एकादशी का व्रत किया और व्रत के करने पर सब राज्य में वर्षा हुई। भगवान की कृपा से मनुष्यों को सुख हुआ इस कारण यह उत्तम व्रत करना चाहिए।

Previous Post Next Post