इस एकादशी का नाम कामिका है। उसके सुनने मात्र से अश्वमेध का फल मिलता है। जो शंख, चक्र, गदाधारी विष्णु भगवान का पूजन करता है, कामिका का व्रत करने वाले को वही फल मिलता है।
कामिका एकादशी का व्रत कब आता है?
कामिका एकादशी का व्रत, श्रावण महीने की कृष्णापक्ष को आता है।
कामिका एकादशी कौन से महीने में आते है?
कामिका एकादशी का व्रत कैसे करे?
सामग्री ब्याई गौ का दान करने से जो फल मिलता है, वही फल कामिका का व्रत करने वाले को मिलता है। जो उत्तम मनुष्य श्रवण में श्रीधर भगवान का पूजन करता है, उसको देवता, गन्धर्व, उरग, पन्नग सबके पूजन का फल मिल जाता है इसलिए एकादशी के दिन हरि का यत्न से पूजन करना चाहिए।
इससे बढ़कर पवित्र और पापों को दूर करने वाला व्रत नहीं है। कामिका का व्रत करने वाला जो मनुष्य रात में जागरण करता है, उसको भयंकर यमराज दिखाई नहीं देता न उसकी दुर्गति होती है। कामिका का व्रत करने से योगी मोक्ष को प्राप्त हो गये हैं। तुलसी के पत्तों से जो हरि का पूजन करता है वह पापों से ऐसे दूर रहता है जैसे कमल का पत्ता पानी से दूर रहता है। रत्न, मोती, पन्ना, मूंगा आदि के पूजन से विष्णु इतने प्रसन्न नहीं होते जितने तुलसीदल द्वारा पूजन से प्रसन्न होते हैं।
एकादशी का व्रत कितना उत्तम माना जाता है?
जिसने तुलसी की मंजरी से केशव भगवान का पूजन किया है उसने जन्म भर पापों का लेखा मिटा दिया जो तुलसी दर्शन से सब पापों को दूर करने वाली, भगवान के समीप पहुँचाने वाली तथा भगवान के चरणों पर चढ़ाने से मोक्ष देने वाली है, उस तुलसी को नमस्कार है। एकादशी के दिन जिसका दीपक भगवान के सामने जलता है, उसके पितर स्वर्ग में जाकर अमृत पीकर तृप्त हो जाते हैं।
घी अथवा तेल से दीपक जलाने वाला मनुष्य करोड़ों दीपकों से प्रकाशित होकर सूर्य लोक को जाता है ये कामिका एकादशी की महिमा मैंने तुमने कही है। इसलिए पापों को हरने वाली कामिका एकादशी का व्रत करना चाहिए। यह ब्रह्महत्या तथा गर्भहत्या को दूर करने वाली है। स्वर्ग तथा विशेष पुण्य को देने वाली मनुष्य श्रद्धापूर्वक इसका माहात्म्य सुनकर बैकुण्ठ को चला जाता है।
कथा:
एक गाँव में एक वीर क्षत्रिय रहता था। एक दिन किसी कारण वश उसकी ब्राह्मण से हाथापाई हो गई और ब्राह्मण की मृत्य हो गई। अपने हाथों मरे गये ब्राह्मण की क्रिया उस क्षत्रिय ने करनी चाही। परन्तु पंडितों ने उसे क्रिया में शामिल होने से मना कर दिया। ब्राह्मणों ने बताया कि तुम पर ब्रह्म-हत्या का दोष है। पहले प्रायश्चित कर इस पाप से मुक्त हो तब हम तुम्हारे घर भोजन करेंगे।
इस पर क्षत्रिय ने पूछा कि इस पाप से मुक्त होने के क्या उपाय है। तब ब्राह्मणों ने बताया कि श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को भक्तिभाव से भगवान श्रीधर का व्रत एवं पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन कराके सदश्रिणा के साथ आशीर्वाद प्राप्त करने से इस पाप से मुक्ति मिलेगी। पंडितों के बताये हुए तरीके पर व्रत कराने वाली रात में भगवान श्रीधर ने क्षत्रिय को दर्शन देकर कहा कि तुम्हें ब्रह्म-हत्या के पाप से मुक्ति मिल गई है।
इस व्रत के करने से ब्रह्म-हत्या आदि के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और इहलोक में सुख भोगकर प्राणी अन्त में विष्णुलोक को जाते हैं। इस कामिका एकादशी के माहात्म्य के श्रवण व पठन से मनुष्य स्वर्गलोक को प्राप्त करते हैं।