Amavasya - Mauni Amavasya (Magha Mas) Vrat Katha

 Mauni Amavasya

मौनी अमावस्या, मघा माह में आती है और कहते है हिन्दू धर्म के अनुसार, माघ महीने से द्वापर युग प्रारंभ हुआ था। इस दिन गंगा स्नान, दान और मौन व्रत करना चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए। 

Amavasya


माघ माह की अमावस्या का क्या नाम है और क्यों?


माघ माह की अमावस्या का नाम है - मौनी अमावस्या। मौनी अमावस्या, मौनी शब्द का अर्थ मौन है अर्थात् चुप रहना, इस दिन कोई भी व्यक्ति पूरे दिन मौन रहता है और यह एक तरह का व्रत है।


मौनी अमावस्या, ग्रेगोरियन कैलेंडर (इंग्लिश कैलेंडर) की अनुसार कब आते है?


मौनी अमावस्या, ग्रेगोरियन कैलेंडर (इंग्लिश कैलेंडर) की अनुसार जनवरी-फरवरी में आती है। हिन्दू धर्म के अनुसार मौनी अमावस्या माघ महीने के मध्य में आता है और इसे माघी अमावस्या भी कहा जाता है।



कथा: 


ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय नमः। 


प्राचीन काल में कांचीपुरी में देवस्वामी नाम का एक ब्राह्मण रहता था, उसकी पत्नी का नाम धनवती था। उनके सात पुत्र और एक पुत्री थी, पुत्री का नाम गुणवती था। ब्राम्हण ने सातों पुत्रों का विवाह करने के बाद बेटी के लिए वर तलाश करने के लिए अपने सबसे बड़े पुत्र को भेजा। उसने एक ज्योतिषी को कन्या की कुण्डली दिखाई, उसने बताया कि विवाह होते ही कन्या विधवा हो जाएगी। ज्योतिषी की बात सुन ब्राह्मण दुखी हो गया और उसने इसका उपाय पूछा। 


उपाय पूछे जाने पर, ब्राह्मण ने बताया कि सिंहल द्वीप पर एक सोमा नामक धोबिन रहती है। सोम भगवन नारायण की बहुत बड़ी भक्त है और कई वर्षो से अमावस्या के व्रत का फल एकत्र कर रही है। यदि कन्या की शादी से पहले घर आकर वह पूजन करे और अपने अमावस्या के फल का दान कर दे तो यह दोष दूर हो जाएगा। ब्राम्हण ने गुणवती को अपने सबसे छोटे पुत्र के साथ सिंहलद्वीप भेजा, दोनों सागर किनारे पहुंचकर उसे पार करने की कोशिश करने लगे। जब समुद्र को पार करने का कोई रास्ता नहीं मिला तो भूखे प्यासे एक वट वृक्ष के नीचे आराम करने लगे। पेड़ पर घोसले में एक गिद्ध का परिवार रहता था। उस समय घोसले में सिर्फ गिद्ध के बच्चे थे, वे सुबह से भाई बहन के क्रियाकलापों को देख रहे थे।


शाम को जब गिद्ध के बच्चों की मां भोजन लेकर घोसले में आई तो वे उस भाई बहन की कहानी को बताने लगे। उनकी बात सुनकर गिद्ध की मां को नीचे बैठे भाई बहन पर काफी दया आई और बच्चों को आश्वासन दिया कि वह उनकी समस्या का समाधान करेगी। यह सुनकर गिद्ध के बच्चों ने भोजन ग्रहंण किया।


दया और ममता से वशीभूत गिद्ध माता उनके पास आई और बोली कि मैंने आपकी समस्याओं को जान लिया है। इस वन में जो भी फल फूल मिलेगा मैं आपके लिए ले आती हूं तथा प्रात: काल मैं आपको सिंहलद्वीप धोबिन के पास पहुंचा दूंगी। अगले दिन सुबह होते ही गिद्ध माता ने दोनों भाई बहनों को समुद्र पार कराकर सिंहलद्वीप सोमा के पास पहुंचा दिया।


गुणवती प्रतिदिन सुबह सूर्योदय से पहले सोमा का घर लीप दिया करती थी, एक दिन सोमा ने अपनी बहुओं से पूछा कि प्रतिदिन सुबह हमारा घर कौन लीपता है। बहुओं ने तारीफ बटोरने के लिए कहा कि हमारे अलावा और कौन ऐसा करेगा, लेकिन सोमा को उनकी बातों पर यकीन नहीं हुआ और वह यह जानने के लिए पूरी रात जागती रही। तभी उसने सुबह गुणवती को घर साफ करते हुए देख लिया और उससे उसकी परेशानी पूछा। गुणवती ने अपनी परेशानी बताया, जिसे सुन सोमा चिंतित हो गई और उसके घर जाकर पूजापाठ करने के लिए तैयार हो गई।


सोमा ने ब्राह्मण के घर आकर पूजा किया परन्तु मन में संदेह होने से अपने अमावस्या व्रत का पुण्य गुणवती को अर्पित नहीं किया। इस पूजा के बाद ही गुणवती की शादी हो गयी और सभी नगरवासियो के साथ साथ सोम को भी शादी में बुलाया गया।  शादी वाले दिन ही विवाह होते ही उसके पति की तबियत बहुत ख़राब हो गई। तब सोमा को अपने किये गए पाप का अंदाजा हुआ। थी तो सोम भी एक माँ ही, उसने गुणवती को अपनी पुत्री मान कर अपने सभी पुण्य को दान कर दिया, जिससे उसका पति ठीक हो गया। लेकिन पुण्यों की कमी से सोमा के पति और बेटे की तबियत बहुत खराब हो गयी और मरने की हालत हो गई। तब सोमा को पत्र भेज कर वापस आने को बोला। जब सोम सिंघलद्वीप जा रही थी तब मौनी अमावस्या का दिन आया। सोमा ने रास्ते भर मौन रह कर रास्ता पार किया और मन ही मन नारायण का पूजन करती रही। 

 रास्ते में उसे एक पीपल का वृक्ष दिखा। पीपल वृक्ष की छाया में विष्णु जी का पूजन कर 108 बार पीपल की परिक्रमा की। इसके पुण्य प्रताप से परिवार के सभी सदस्य ठीक हो गए।


इस प्रकार मौनी अमावस्या के दिन किसी पवित्र नदी में स्नान कर विधिवत भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने व पीपल के पेड़ की परिक्रमा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है तथा परिवार के सदस्यों पर भगवान का आशीर्वाद सदैव बना रहता है।


In English:


In ancient times, a Brahmin named Devaswami lived in Kanchipuri, his wife's name was Dhanavati. He had seven sons and one daughter, the daughter's name was Gunavati. After getting all the seven sons married, the Brahmin sent his eldest son to find a groom for the daughter. He showed the girl's horoscope to an astrologer, he told that the girl will become a widow as soon as she gets married. The Brahmin became sad after listening to the astrologer and asked the remedy.


On being asked the remedy, the brahmin told that there lived a washerwoman named Soma on the island of Sinhala. Som is a great devotee of Lord Narayan and has been collecting the fruits of fasting on Amavasya for many years. If the girl comes home before marriage and worships and donates the fruit of her Amavasya, then this defect will be removed. The Brahmin sent Gunavati along with his youngest son to Sinhaldweep, both reached the sea shore and tried to cross it. When no way was found to cross the sea, the hungry and thirsty started resting under a banyan tree. A family of vultures lived in a nest on a tree. At that time there were only vulture children in the nest, they were watching the activities of brother and sister since morning.


In the evening, when the mother of the vulture children came to the nest with food, they started telling the story of that brother and sister. After listening to them, the vulture's mother felt pity on the siblings sitting below and assured the children that she would solve their problem. Hearing this, the children of the vultures accepted the food.


Mother vulture subdued by kindness and affection came to him and said that I have come to know your problems. Whatever fruits and flowers I find in this forest, I bring for you and in the morning I will take you to Sinhaldweep Dhobin. The next day in the morning, the vulture mother took both the siblings across the ocean and took them to Sinhaldweep Soma.


Gunavati used to clean Soma's house every morning before sunrise, one day Soma asked her daughters-in-law who cleans our house every morning. The daughters-in-law asked who else but us would do this to garner praise, but Soma did not believe their words and stayed awake the whole night to find out. That's why he saw Gunavati cleaning the house in the morning and asked her about her problem. Gunavati told her problem, hearing which Soma got worried and got ready to go to her house and offer prayers.


Soma worshiped after coming to the Brahmin's house, but due to doubt in his mind, he did not offer the virtue of his Amavasya fast to Gunavati. It was only after this puja that Gunavati got married and along with all the townspeople, Som was also invited to the wedding. As soon as the marriage took place on the wedding day, her husband's health became very bad. Then Soma realized his sin. So Som was also a mother, she considered Gunavati as her daughter and donated all her virtues, due to which her husband got cured. But due to lack of virtues, the health of Soma's husband and son became very bad and they were on the verge of death. Then sent a letter to Soma asking him to come back. When Som was going to Singhaldweep, the day of Mauni Amavasya came. Soma crossed the road keeping silent all the way and kept on worshiping Narayan in her heart.

  

On the way he saw a Peepal tree. After worshiping Lord Vishnu under the shade of the Peepal tree, he circumambulated the Peepal tree 108 times. All the family members were cured by his virtue.


In this way, on the day of Mauni Amavasya, by bathing in a holy river, duly worshiping Lord Vishnu and circumambulating the Peepal tree, one gets the desired fruit and the family members are blessed by God forever.

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