मोक्षदा एकादशी (मार्गशीर्ष शुक्ला) व्रत कथा |
प्राचीन समय में श्री कृष्णचन्द्र जी ने एकादशी के उत्तम व्रत का माहात्म्य विधि पूर्वक वर्णन किया है। जो कोई इस माहात्म्य को सुनेगा वह अनेक सुखों को भोगकर विष्णुलोक को प्राप्त होगा। अपने घर में आदर पूर्वक नैवेद्य आदि से श्री गोविन्द का पूजन करके भक्ति से दीपदान करें।
मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष की एकादशी का क्या नाम है?
मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम है: मोक्षदा एकादशी।
मोक्षदा एकादशी कौन से महीने में आते है?
मोक्षदा एकादशी नवंबर-दिसंबर में आते है।
मोक्षदा एकादशी का व्रत कब आता है?
मोक्षदा एकादशी का व्रत, हेमन्त ऋतु के मार्गशीर्ष महीने की शुक्लपक्ष को आता है।
मोक्षदा एकादशी का व्रत कैसे करे?
दिन के आठवें भाग में जब सूर्य का प्रकाश मन्दा हो जाय उस समय के आहार का नाम नक्त भोजन हैं। जब भोजन करना चाहिए। मध्याह्न के समय स्नान करके पवित्र हो जायें। ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर प्रणाम करके क्षमा मांगे। उसका पुण्य दिन में एक बार भोजन करने वाले को होता है। यह उपवास सब पापों को हरने वाली है। इसमें दामोदर भगवान की अच्छी तरह पूजा करे। तुलसी की मंजरी और धूप-दीप से अच्छी तरह भगवान की आराधना करे।
एकादशी का व्रत कितना उत्तम माना जाता है?
जिसके घर पर एक लाख तपस्वी नित्य भोजन करते हैं उनका साठ हजार वर्ष में जो सहाय होता वह एकादशी का उपवास करने से होता है। उससे दस गुना फल भूखे को अन्न देने से होता है। अन्न दान से स्वर्ग में रहते हुए पितर और देवता तृप्त हो जाते हैं, एकादशी के व्रत के पुण्य की सीमा नहीं हैं। तीर्थ, दान, नियम, तभी तक गर्जते हैं जब तक एकादशी नहीं प्राप्त हर्ट इसलिए संसार से डरे हुए मनुष्यों को एकादशी व्रत करना चाहिए। हजार यज्ञ करके भी एकादशी के बराबर फल नहीं होता।
कथा:
एक समय की बात है, वैष्णवों से सुशोभित चंपक नामक सुन्दर नगर में प्रजा की पुत्र की तरह रक्षा करने वाला वैखानस नामक राजा था। एक दिन राजा ने स्वप्न में अधोगति को प्राप्त हुए अपने पिता को देखा, यह देखकर उसे आश्चर्य हुआ। उसने ब्राह्मणों से स्वप्न का वृतान्त “हे ब्राह्मणों! मैने स्वप्न में अपने पिता को नर्क में पड़ा हुआ देखा है। पिता ने मुझसे कहा कि हे पुत्र! मैं अद्योगति में हूँ मेरा उद्धार करो।”
राजा ने आगे कहा, “हे ब्राह्मणों! जिसके द्वारा मेरे पूर्वजों को मोक्ष हो जाय, ऐसा दान, व्रत, तप, योग कुछ बतलाइये।” ब्राह्मण बोले, “हे नृप! यहां पर्वत मुनि का आश्रम पास में है। वह भूत, भविष्य, वर्तमान सबको जानते हैं। उनके पास आप जाइये।”
वह राजा उनका वचन सुनकर मुनि के आश्रम में गया। वह आश्रम शान्त प्रकृति के ब्राह्मण, प्रजा और मुनिश्वरों से सुशोभित था । राजा ने वहां जाकर पृथ्वी पर साष्टांग प्रणाम किया। मुनि ने राज्य के सातों अंगों की कुशल पूछी और कहा, “तुम्हारा राज्य निष्कंटक तो है?”
राजा बोला, “हे विप्र! आपकी कृपा से सब कुशल होने पर भी कुछ विघ्न उपस्थित हो गया है। हे ब्रह्मन्! मुझे कुछ संदेह है उसको आप दूर कीजिए।” पर्वत मुनि राजा के यह वचन सुनकर नेत्र बन्द करके भूत-भविष्य को सोचने लगे।
फिर राजा से बोले, “हे राजेन्द्र! आपके पिता के पाप को मैंने समझ लिया है। तुम्हारे पिता ने काम के वशीभूत होकर अन्य स्त्रियों के साथ सम्भोग किया और स्वयं की स्त्री को आग्रह करने पर भी ऋतुदान नहीं दिया। इस कर्म से वह नरक में पड़ा है।”
राजा बोला, “हे मुनि! किस व्रत और दान से उस नर्क से मेरे पिता का उद्धार होगा, वह उपाय मुझसे कहिये।”
मुनि बोले, “मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में मोक्षदा नाम की एकादशी हैं। तुम सब लोग उसका व्रत करके उसका पुण्य पिता को दे दो।”
मुनि के इस वचन को सुनकर राजा अपने घर आ गया। जब मार्गशीर्ष मॉस की एकादशी आई तब स्त्री, पुत्र और परवार समेत विधिपूर्वक व्रत करके उसका पुण्य पिता को दिया। इस व्रत के प्रभाव से उसका पिता स्वर्ग को गया और आकाश से स्पष्ट शब्दों मे राजा से बोला, “हे पुत्र ! तेरा सदा कल्याण हो।” यह कहकर वह स्वर्ग को चला गया। हे राजन्! इस प्रकार जो इस मोक्षदा एकादशी का व्रत करता है उसका पाप दूर होता है।