आमलकी एकादशी (फाल्गुन शुक्ला) व्रत कथा Spiritual RAGA

आमलकी एकादशी का व्रत सम्पूर्ण फलों को देने वाला है। आमलकी का व्रत बड़े पापों को नाश करने वाला तथा हजार गोदान के फल देने वाला है।

आमलकी एकादशी (फाल्गुन शुक्ला) व्रत कथा
(आमलकी एकादशी (फाल्गुन शुक्ला) व्रत कथा)

फाल्गुन शुक्लपक्ष की एकादशी का क्या नाम है?


फाल्गुन शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम है: आमलकी एकादशी


आमलकी एकादशी कौन से महीने में आते है?


आमलकी एकादशी फरवरी-मार्च में आते है।


आमलकी एकादशी का व्रत कैसे करे?


दिन के आठवें भाग में जब सूर्य का प्रकाश मन्दा हो जाय उस समय के आहार का नाम नक्त भोजन हैं। जब भोजन करना चाहिए। मध्याह्न के समय स्नान करके पवित्र हो जायें। ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर प्रणाम करके क्षमा मांगे। उसका पुण्य दिन में एक बार भोजन करने वाले को होता है। यह उपवास सब पापों को हरने वाली है। इसमें दामोदर भगवान की अच्छी तरह पूजा करे। तुलसी की मंजरी और धूप-दीप से अच्छी तरह भगवान की आराधना करे।


एकादशी का व्रत कितना उत्तम माना जाता है?


यह सब पापों को दूर करने वाली आमलकी एकादशी है। सिद्धि और कामना को पूर्ण करने वाले नारायण इसके देवता हैं।  एकादशी के व्रत के पुण्य की सीमा नहीं हैं। तीर्थ, दान, नियम, तभी तक गर्जते हैं जब तक एकादशी नहीं प्राप्त हर्ट इसलिए संसार से डरे हुए मनुष्यों को एकादशी व्रत करना चाहिए। हजार यज्ञ करके भी एकादशी के बराबर फल नहीं होता।


कथा:


हृष्ट-पुष्ट मनुष्यों और ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्रों से सुशोभित वैदिश नाम का नगर था। वहां सुन्दर वेद ध्वनि हो रही थी। उस सुन्दर नगर में कोई नास्तिक और दुराचारी नहीं था। वहां का चैत्ररथ नामक प्रसिद्ध राजा था। वह राजा दस हजार हाथियों के समान बलवान, धनी तथा शस्त्र, शास्त्रों को जानने वाला था। 


उसने राज्य में निर्धन और लोभी नहीं दिखाई देता था। दोनों पक्ष एकादशी के दिन मनुष्य भोजन नहीं करते थे। सब धर्मों को छोड़कर भगवान् की भक्ति करते। इस प्रकार भगवान् की भक्ति करते हुए मनुष्य को सुख पूर्वक बहुत वर्ष बीत गये। 


कुछ समय बीतने पर फाल्गुन शुक्लपक्ष की द्वादशी युक्त एकादशी आई। उस एकादशी को बालक बूढ़े सबने मिलकर नियम से उपवास किया। राजा इस व्रत को विशेष फलदायक समझकर नदी में स्नान करके प्रजा के साथ मन्दिर में गये। राजा ने जल से भरा हुआ कलश स्थापित करके उसे क्षत्रिय, उपानह, पंचरत्न और सुन्दर गंध से सुशोभित किया। 


दीपमाला से युक्त परशुराम जी के साथ ऋषियों समेत सावधानी से पूजन किया और आमले का भी पूजन किया और बोले सब पापों को नाश करने वाली आमलकी! तुमको नमस्कार है, मेरे अर्घ्य को ग्रहण करो। उसी समय वहां पर एक शिकारी आया। भूख और परिश्रम से युक्त, पाप के भार से पीड़ित, कुटम्ब के लिए जीव हिंसा करने वाला सब धर्मों से अलग वह आमलकी एकादशी का जागरण और दीपकों से शोभित उस स्थान को देखकर वहां बैठ गया यह क्या है? ऐसा मन में सोचकर आश्चर्य करने लगा। 


उसने वहां रक्खे हुए कलश के ऊपर दामोदर भगवान का दर्शन किया वहां आमले का वृक्ष और दीपक जुड़े देखे और पण्डितों के मुख से भगवान की कथा सुनी, क्षुधित होने पर भी एकादशी का माहात्म्य सुना। कथा कुछ इस प्रकार थी। किसी समय में चित्रसेन नामक राजा राज्य करता था। राजा सदा से ही विष्णु भगवान का बहुत बड़ा भक्त था। एक दिन राजा शिकार करते हुए जंगल में बहुत दूर निकल गए। उन्हें राक्षसों ने घेर लिया। राजा घबराहट में मूर्छित हो गए। राक्षसों ने उनपर हमला किया, पर वे जिस भी अस्त्र से राजा को मारना चाहते, वह फूल में बदल जाता। फिर अचानक राजा के शरीर से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई और सभी राक्षसों को मारकर अदृश्य हो गई। जब राजा की चेतना लौटी तो, उन्होंने देखा कि सभी राक्षस मरे पड़े हैं। राजा को आश्चर्य हुआ कि इन्हें किसने मारा? तभी आकाशवाणी हुई- हे राजन! तुम्हारी देह से उत्पन्न आमलकी एकादशी की वैष्णवी शक्ति ने इनका संहार किया है। इन्हें मारकर वहां पुन: तुम्हारे शरीर में प्रवेश कर गई। यह सुनकर राजा की खुशी का ठिकाना न रहा। उन्होंने लौटकर राज्य में सबको एकादशी व्रत की महिमा बताई। उस दिन से उस राजा प्रजा एकादशी और आमलकी एकादशी का व्रत रखने लगी। शिकारी ने श्रद्धापूर्वक पूरी कथा सुनी और विस्मय युक्त होकर रात में जागरण किया फिर प्रातः काल सब मनुष्य नगर मे गये उस शिकारी ने भी घर पर आकर प्रसन्नता से भोजन किया। भगवान उसके व्रत से प्रसन हुए और उसकी सारे पाप दूर हो गए। वो शिकारी ख़ुशी और ईमानदारी से अपना जीवन जीने लगा। फिर बहुत काल के अनन्तर व्याघ्र की मृत्यु हुई। जो श्रेष्ठ मनुष्य आमल की एकादशी का व्रत करते हैं वे निःसन्देह विष्णुलोक को जाते हैं।


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