बैशाख कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम बरूथिनी है। वह इस लोक और परलोक में सौभाग्य प्रदान करती है। बरूथिनी का व्रत करने से सदा सुख रहता है, पाप की हानि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है, दस हजार बर्ष तप करने से जो फल मनुष्य को मिलता है, उसके समान फल बरूथिनी का व्रत करने प्राप्त होता है।
बैशाख कृष्णा पक्ष की एकादशी का क्या नाम है?
बैशाख कृष्णा पक्ष की एकादशी का नाम है: बरुथिनी एकादशी।
बरुथिनी एकादशी कौन से महीने में आते है?
बरुथिनी एकादशी अप्रैल-मई में आते है।
बरुथिनी एकादशी का व्रत कब आता है?
बरुथिनी एकादशी का व्रत, बैशाख महीने की कृष्णापक्ष को आता है।
बरुथिनी एकादशी का व्रत कैसे करे?
एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नान करे, विधिपूर्वक पूजन करें, सारा दिन बिना कुछ खाए भगवान का किरतान करे।
एकादशी का व्रत कितना उत्तम माना जाता है?
यह एकादशी बहुत पवित्र व्रती के पापों को दूर करने वाली और मुक्ति को देने वाली है। घोड़े के दान से भूमि का दान, सबसे अधिक तिल का दान, उससे अधिक स्वर्ण दान और स्वर्ण दान से अधिक अन्न दान है। अन्न दान से उत्तम कोई दान न हुआ न होगा। पितृ, देव, मनुष्यों की तृप्ति अन्न से ही होती है। उसी के समान कवियों ने कन्यादान को कहा है। भगवान ने स्वयं कहा है कि गौ दान उसी के समान है और कहे हुए सब दानों से अधिक विद्यादान के फल को पाता है।
पाप से मोहित होकर मनुष्य कन्या के धन से निर्वाह करते हैं, वे मनुष्य महाप्रलय तक नरक में रहते हैं। इसलिए कन्या का धन कभी नहीं लेना चाहिए। जो कोई आभूषण पहिनाकर यथा शक्ति धन सहित कन्या का दान करता है, उसके पुण्य की संख्या करने को चित्रगुप्त भी समर्थ नहीं है। यह पापों को दूर करके अन्त में अक्षत गति को देती है, रात में जागरण करके जो जर्नादन का पूजन करते हैं, वे सब पापों से छूटकर परम गति को प्राप्त होता हैं। इस कारण पाप और यमराज से डरे हुए मनुष्यों को बरूथिनी का व्रत करना उचित है। इसके पढ़ने और सुनने से हजार गौ दान का फल मिलता है और वे सब पापों से छूटकर विष्णु लोक में सुख भोगते हैं।
कथा:
प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा राज्य करते थे। वह अत्यंत दानशील तथा तपस्वी थे। एक दिन जब वह जंगल में तपस्या कर रहे थे, तभी न जाने कहाँ से एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा। राजा पूर्ववत अपनी तपस्या में लीन रहे। कुछ देर बाद पैर चबाते-चबाते भालू राजा को घसीटकर पास के जंगल में ले गया।
राजा बहुत घबराया, मगर तापस धर्म अनुकूल उसने क्रोध और हिंसा न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की, करुण भाव से भगवान विष्णु को पुकारा। उसकी पुकार सुनकर भगवान श्रीहरि विष्णु प्रकट हुए औरभालू को वहाँ से भगा दिया।
राजा का पैर भालू पहले ही खा चुका था। इससे राजा बहुत ही शोकाकुल हुए। उन्हें दुःखी देखकर भगवान विष्णु बोले: हे वत्स! शोक मत करो। तुम मथुरा जाओ और वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो। उसके प्रभाव से पुन: सुदृढ़ अंगों वाले हो जाओगे। इस भालू ने तुम्हें जो काटा है, यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था।
भगवान की आज्ञा मानकर राजा मान्धाता ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक वरूथिनी एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से राजा शीघ्र ही पुन: सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया। इसी एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग गये थे। जो भी व्यक्ति भय से पीड़ित है उसे वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। इस व्रत को करने से समस्त पापों का नाश होकर मोक्ष मिलता है।