मोहनी एकादशी (बैशाख शुक्ला) व्रत कथा Spiritual RAGA

बैशाख शुक्लपक्ष में जो एकादशी है उसका नाम मोहनी है वह सब पापों को दूर करती है। इस कारण यह आप सरीखे मनुष्यों के करने योग्य है। यह पापों को दूर करने वाली और दुःखों को नष्ट करने वाली है।

मोहनी एकादशी (बैशाख शुक्ला) व्रत कथा
(मोहनी एकादशी (बैशाख शुक्ला) व्रत कथा)

बैशाख शुक्लपक्ष की एकादशी का क्या नाम है?


बैशाख शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम है: मोहनी एकादशी


मोहनी एकादशी कौन से महीने में आते है?


मोहनी एकादशी अप्रैल-मई में आते है।

मोहनी एकादशी का व्रत कैसे करे?


दिन के आठवें भाग में जब सूर्य का प्रकाश मन्दा हो जाय उस समय के आहार का नाम नक्त भोजन हैं। जब भोजन करना चाहिए। मध्याह्न के समय स्नान करके पवित्र हो जायें। ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर प्रणाम करके क्षमा मांगे।


एकादशी का व्रत कितना उत्तम माना जाता है?


सिद्धि और कामना को पूर्ण करने वाले नारायण इसके देवता हैं।  एकादशी के व्रत के पुण्य की सीमा नहीं हैं। तीर्थ, दान, नियम, तभी तक गर्जते हैं जब तक एकादशी नहीं प्राप्त हर्ट इसलिए संसार से डरे हुए मनुष्यों को एकादशी व्रत करना चाहिए। हजार यज्ञ करके भी एकादशी के बराबर फल नहीं होता।



कथा:


सरस्वती के तट पर भद्रावती नाम की सुन्दर पुरी है। वह द्युतिमान नाम का राजा राज्य करता था। वह धैर्यमान सत्यवादी राजा चन्द्रवंश में पैदा हुआ था। वह कर्म में प्रवृत्ति रखने वाला धनपाल के नाम से प्रसिद्ध था। 


प्याऊ, यज्ञशाला, तालाब, बगीचा आदि को बनवाता था। शान्त स्वरूप और भगवान के भक्त उस वैश्य के समान, द्युतिमान, मेधावी, सुकृत, धृष्ट बुद्धि नाम के पांच पुत्र थे। पांचवां पुत्र धृष्ट बुद्धि बड़ा पापी था। वेश्याओं से रमण तथा दुष्टों से वार्तालाप में कुशल था। वह अन्यायी और दुष्ट था। पिता के धन को नष्ट करता था अभक्ष्य वस्तुओं को खाता था। वह पापी सदा मदिरा पीता था। उसके पिता ने उसको वेश्या के गले में भुजा डालकर घूमते हुए देखा तो उसे घर से निकाल दिया और बांधवों ने भी उसको अलग कर दिया। उसने अपने शरीर के आभूषण भी नष्ट कर दिये। धन के नष्ट होने से वेश्याओं ने भी निन्दा करके उसको त्याग दिया ।


वह वस्त्रहीन और भूख से व्याकुल होकर चिन्ता करने लगा कि मैं क्या करूं और कहां जाऊं? वह पिता के डर से वन में चला गया। वहां भूख प्यास से पीड़ित होकर इधर-इधर घूमने लगा। फिर सिंह की तरह मृग, शूकर और चीतों को मारने लगा हाथ में धनुष बाण और पीठ में तरकस बांधकर मांसाहार करता हुआ वन में रहने वन में विचरने वाले पक्षी, पशु, चकोर, मोर, कंक, तीतर और मूषकों को मारने लगा। 


इसके अतिरिक्त और जीवों को भी मारने लगा। निर्दयी धृष्ट बुद्धि पूर्व जन्म के पापों से पाप रूपी कीचड़ में फंस गया। दुःख शोक से युक्त होकर वह दिन रात चिन्ता किया करता था। कुछ पुण्य के उदय होने से वह कौण्डिन्य ऋषि के आश्रम में पहुँच गया। धृष्ट बुद्धि मुनि को प्रणाम करके बोला, “हे ब्राह्मण! ऐसा प्रायश्चित बताओ जिससे बिना यत्न किये जन्म भर के पापों का नाश हो जाय, धन मेरे पास नहीं हैं।”


ऋषि बोले, “जिसके करने से तेरा पाप दूर हो उस उपाय को तू सावधान होकर सुन। चैत्र शुक्लपक्ष में मोहनी नाम की एकादशी का व्रत कर। यह मनुष्यों के सुमेरु के समान पापों को नष्ट कर देती है। इसका उपवास करने से अनेक जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं।”


मुनि के वचन सुनकर धृष्ट बुद्धि मन में प्रसन्न हुआ और उसने विधिपूर्वक व्रत को किया। इस व्रत के करने से उसके पाप नष्ट हो गये।

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