इन्दिरा एकादशी (आश्विन कृष्णा) व्रत कथा Spiritual RAGA

आश्विन के कृष्णपक्ष में इन्दिरा नाम की एकादशी होती है जो कि अधोगति को प्राप्त हुए पिंतरों को गति देने वाली है।  इसके पाठ करने और सुनने से मनुष्य सब पापों से छुट जाता हैं। इस लोक में सब सुखों को भोगकर अन्त में विष्णु लोक में निवास करता है।

इन्दिरा एकादशी (आश्विन कृष्णा) व्रत कथा
इन्दिरा एकादशी (आश्विन कृष्णा) व्रत कथा

इन्दिरा एकादशी का व्रत कब आता है? 


इन्दिरा एकादशी का व्रत, आश्विन महीने की कृष्णापक्ष को आता है।


इन्दिरा एकादशी का व्रत कैसे करे?


अश्विन कृष्णपक्ष की दशमी को प्रातःकाल स्नान करें। पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध करे। एक बार भोजन करके रात में भूमि पर शयन करे। प्रात:काल होने पर एकादशी को दातुन कुल्ला करके मुख धोवे। भक्ति भाव से उपवास के नियमों को ग्रहण करें नियम करके मध्याह्न के समय शालीग्राम की मूर्ति के सामने विधि पूर्वक श्राद्ध करके शुद्ध ब्राह्मणों का पूजन करके भोजन करावे दक्षिणा दें। 


पितरों के श्राद्ध करने से जो अन्न बचा है, उसको सूंघकर गौ को दे। भगवान का गंध, पुष्प आदि से पूजन करें। रात्रि में भगवान के समीप जागरण करे। द्वादशी को प्रातःकाल भगवान का भक्ति से पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन करावे। भाई, धेवते, पुत्र आदि के साथ आप भी मौन से भोजन करें।


एकादशी का व्रत कितना उत्तम माना जाता है?


इस व्रत को जो मनुष्य करते हैं, वे निश्चय ही सब पापों से छूटकर स्वर्ग को जाते हैं। इसके पाठ करने और सुनने से अवश्मेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।


कथा:


सतयुग में शत्रुओं को दबाने वाला इन्द्रसेन राजा था। वह महिष्मती पुरी में धर्म से प्रजा की रक्षा करता हुआ राज करता था। वह पुत्र-पौत्र और अन्न-धन से युक्त होकर भगवान का परम भक्त था। 


एक दिन राजा सुख से सभा में बैठा हुआ था। बुद्धिमान नारद मुनि आये। उनको आये हुए देखकर राजा हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और आसन पर बैठाया। नारद मुनि राजा से बोले, "हे राजेन्द्र! तुम्हारे सातों अंग प्रसन्न तो हैं ?" 


नारद जी का वचन सुनकर राजा बोला, "हे मुनिश्रेष्ठ! आपकी कृपा से मेरी सब जगह कुशल है। आपके दर्शन से मेरी सब यज्ञ की क्रिया सफल हो गई। हे विप्रर्षे ! आप कृपा करके अपने आने का कारण कहिये।"


यह सुनकर नारद जी बोले, "हे नृपोत्तम! मैं ब्रह्मलोक से यमलोक में गया। यमराज ने भक्ति से मेरा पूजन किया। सुन्दर आसन पर बैठकर धर्मात्मा, सत्यवादी यमराज की मैंने प्रशंसा की। बहुत पुण्य करने वाले तुम्हारे पिता व्रत में विघ्न पड़ने के कारण यमराज की सभा में रहते हैं। 


हे जनेश्वर! उन्होंने जो सन्देशा कहा है उसको तुम से कहता हूँ। उन्होंने कहा है कि पूर्व जन्म के किसी विघ्न के कारण मैं यमराज के निकट रहता हूँ, हे पुत्र ! इन्दिरा के व्रत का पुण्य देकर मुझे स्वर्ग को भेजो। हे. राजन्! पिता को स्वर्ग भेजने के लिए इन्दिरा एकादशी का व्रत करो। उस व्रत के प्रभाव से तुम्हारे पिता स्वर्ग को चले जायेंगे।"


राजा बोला, "हे भगवान! कृपा इन्दिरा एकादशी का व्रत कहो किस विधि से, किस पक्ष में, किस तिथि में करना चाहिए।"


नारद जी बोले, "हे राजन्! मैं इस व्रत की विधि कहता हू। अश्विन कृष्णपक्ष की दशमी को प्रातःकाल स्नान करें। पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध करे। एक बार भोजन करके रात में भूमि पर शयन करे। प्रात:काल होने पर एकादशी को दातुन कुल्ला करके मुख धोवे। भक्ति भाव से उपवास के नियमों को ग्रहण करें नियम करके मध्याह्न के समय शालीग्राम की मूर्ति के सामने विधि पूर्वक श्राद्ध करके शुद्ध ब्राह्मणों का पूजन करके भोजन करावे दक्षिणा दें। 


पितरों के श्राद्ध करने से जो अन्न बचा है, उसको सूंघकर गौ को दे। भगवान का गंध, पुष्प आदि से पूजन करें। रात्रि में भगवान के समीप जागरण करे। द्वादशी को प्रातःकाल भगवान का भक्ति से पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन करावे। भाई, धेवते, पुत्र आदि के साथ आप भी मौन से भोजन करें। हे राजन्! । इस विधि से तुम व्रत करो। ऐसा करने से तुम्हारे पिता स्वर्ग को चले जायेंगे।"


इस प्रकार कहकर मुनि अन्तर्ध्यान हो गये। राजा ने विधि पूर्वक इस श्रेष्ठ व्रत को किया। उसका पिता स्वर्ग को चला गया। इन्द्रसेन राजा भी निष्कंटक राज करके गद्दी पर पुत्र को स्थापित करके स्वर्ग को चले गये।

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