जया एकादशी (माघ शुक्ल) व्रत कथा Spiritual RAGA

यह पवित्र एकादशी सब पाप और पिशाच योगियों को नष्ट करने वाली है। इसका व्रत करने से मनुष्यों को प्रेत योनि नहीं मिलती।

जया एकादशी (माघ शुक्ल) व्रत कथा
(जया एकादशी (माघ शुक्ल) व्रत कथा)

माघ शुक्लपक्ष की एकादशी का क्या नाम है?


माघ शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम है: जया एकादशी


जया एकादशी कौन से महीने में आते है?


जया एकादशी जनवरी-फरवरी में आते है।


जया एकादशी का व्रत कैसे करे?


पूरे दिन निराहार रह कर दिन के आठवें भाग में जब सूर्य का प्रकाश मन्दा हो जाय (उस समय के आहार का नाम नक्त भोजन हैं) तब भोजन करना चाहिए। मध्याह्न के समय स्नान करके पवित्र हो जायें। ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर प्रणाम करके क्षमा मांगे। व्रत का सर्वोत्तम पुण्य दिन में एक बार भोजन करने वाले को होता है। आपत्ति के समय एक से ज़्यादा बार भी फल आदि भगवान को भोग लगा कर खा सकते हैं।  यह उपवास सब पापों को हरने वाली है। इसमें दामोदर भगवान की अच्छी तरह पूजा करे। तुलसी की मंजरी और धूप-दीप से अच्छी तरह भगवान की आराधना करे।


एकादशी का व्रत कितना उत्तम माना जाता है?


यह सब पापों को दूर करने वाली जया एकादशी है। सिद्धि और कामना को पूर्ण करने वाले नारायण इसके देवता हैं।  एकादशी के व्रत के पुण्य की सीमा नहीं हैं। तीर्थ, दान, नियम, इन सभी से ज़्यादा पुण्य एक एकादशी के व्रत का है इसलिए संसार में भयरहित होने की इच्छा से मनुष्यों को एकादशी व्रत करना चाहिए। हजार यज्ञ करके भी एकादशी के बराबर फल नहीं होता।


कथा:


एक समय इन्द्र स्वर्गलोक में राज्य कर रहे थे। देवता उस मनोहर स्थान में सुख से निवास करते और अमृत पान करते थे। अप्सरायें उनका सेवन करती थीं। पूरा स्वर्ग कल्पवृक्षों से सुशोभित था।  तब एक बार इंद्र ने प्रसन्नता से पचास करोड़ नायिकाओं से नृत्य कराया। वहां पुष्प दन्त नामक गन्धर्व गान कर रहा था । चित्रसेन नाम का गन्धर्व अपनी पत्नी और अपनी पुत्री मालिनी के साथ वहां आया। 


मालिनी का पुत्र पुष्पवान् और पुष्पवान् का पुत्र माल्यवान था। पुष्पवती नाम की गन्धर्वी माल्यावान गन्धर्व पर मोहित हो गई। कामदेव के पैने बाणों से उसका शरीर घायल हो गया। उसने अपने सुन्दर स्वरूप, भाव और कटाक्ष से माल्यवान् को वश में कर लिया । इन्द्र को प्रसन्न करने के लिए पुष्पवती और माल्यवान अप्सराओं के साथ गान करने लगे। मोहित होने से उसका चित्त डांवाडोल हो गया। इससे शुद्ध गायन नहीं कर सके। 


परस्पर दोनों की दृष्टि बंध गई और दोनों कामदेव के वशीभूत हो गये। ताल और राग की गति बिगड़ने से इन्द्र ने उन दोनों के मन की बात को जान लिया। तब इन्द्र ने अपमान समझकर कुपित होकर उन दोनों को शाप दे दिया। मेरी आज्ञा भंग करने वाले मुर्ख पापियों! तुमको धिक्कार है। तुम दोनों पिशाच रूप हो जाओ। मनुष्य लोक में जाकर अपने कर्म का फल भोगो। 


इन्द्र के श्राप से ग्रसित होकर वे दोनों हिमालय पर्वत पर पिशाच होकर बड़े दुःखी हुए। श्राप के कारण उनको गंध, रस और स्पर्श का ज्ञान नहीं होता था। शरीर में जलन होती थी, नींद नहीं आती थी। उस विशाल पर्वत पर भ्रमण करते हुए शीत से पीड़ित वे दोनों परस्पर वार्तालाप करने लगे। पिशाच शीत से पीड़ित होकर अपनी स्त्री से बोला हमने ऐसा कौन-सा दुःखदायी पाप किया है, जिस दुष्कर्म से हम दोनों को पिशाच योनि प्राप्त हुई । 


मैं पिशाच योनि को कठोर और निन्दित नरक समझता हूँ। इसलिए किसी प्रकार पाप नहीं करना चाहिए। इस प्रकार वे दुःख से घबराकर चिन्ता करने लगे। दैवयोग से माघ शुक्ला एकादशी आ गई। तिथियों में श्रेष्ठ जया नाम की प्रसिद्ध तिथि आ गई। उस दिन दोनों ने कुछ आहार नहीं किया। 


वे दोनों दुःखी होकर पीपल के पेड़ के पास पड़े रहे। उसी तरह पड़े हुए उनको सूर्यास्त हो गया। रात हो गई जाड़े से कांपने लगे और जड़ सरीखे हो गये, शरीर और भुजाओं से परस्पर आलिंगन किये हुए पड़े रहे। न नींद आई, न सुख मिला, न मैथुन की इच्छा हुई ।


हे राजन् ! इस प्रकार इन्द्र के श्राप से पीड़ित उन दोनों दुखियों की रात्रि बड़े कष्ट से व्यतीत हुई परन्तु एकादशी के व्रत और रात्रि में जागरण करने से उन दोनों को व्रत के प्रभाव से जो फल मिला उसे सुना । हे नृपते! जया एकादशी का व्रत करने से और विष्णु के प्रभाव से द्वादशी के दिन दोंनों पिशाच योनि से छूट गये । पुष्पवती और माल्यवान् पहले की तरह रूपवान, स्नेह युक्त और आभूषणों से सुशोभित हो गए।

 

वे दोनों विमान में बैठ कर इन्द्रलोक को गये और इन्द्र के सम्मुख प्रसन्नता से प्रणाम किया उनको पहले की तरह देखकर इन्द्र को आश्चर्य हुआ। इन्द्र बोले कि किस पुण्य के प्रभाव से तुम्हारी पिशाच योनि दूर हुई ? किस देवता ने तुमको मेरे श्राप से छुड़ाया ? माल्यवान् बोला- वासुदेव की कृपा से और जया एकादशी के व्रत से हमारी श्राप से मुक्ति हुई  है।


फिर इन्द्र बोला एकादशी का व्रत और विष्णु की भक्ति करने से तुम पवित्र हो गये जो मनुष्य शिव तथा विष्णु की भक्ति में लीन हैं, वे नि:संदेह हमारे भी पूज्य और वन्दनीय हैं। अब पुष्पवती के साथ स्वर्ग में सुख से विहार करो। इसलिए जया एकादशी का व्रत जो कोई श्रद्धा से करता है, वह करोड़ों कल्प तक बैकुण्ठ में आनन्द करता है।


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