कार्तिक कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत कथा Spiritual RAGA

(दैत्यराज वृत्रासुर की कथा)

कार्तिक कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत कथा
कार्तिक कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत कथा

कार्तिक कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत किस महीने में आता है?


कार्तिक कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत अक्टूबर या नवम्बर के महीने में आता है।


कार्तिक कृष्ण में गणेश जी के किस नाम की पूजा करनी चाहिए?


इस दिन ‘पिंग’ नाम के गणेश जी की पूजा करनी चाहिए।


विवरण:


यह व्रत संकटनाशक गणेश चतुर्थी व्रत में से एक है। इस व्रत को आप अपनी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए कर सकते हैं। यह व्रत आपके घर में सुख-शांति लाता है। इस व्रत में आप शांति पाठ भी पढ़ सकते हैं। रात को चंद्रमा को जल चढ़ाने के बाद व्रत पूर्ण होगा।


कथा:

॥ श्री महागणाधिपतये नमः ॥


एक समय की बात है, पार्वती जी ने गणेश जी से पूछा, “हे गणपति जी! कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को किस नाम के गणेश जी की आराधना किस तरह करनी चाहिए?” 


पार्वती जी की यह बात सुनकर गणेश जी ने कहा, “कार्तिक कृष्ण चतुर्थी का नाम संकटा है। पिंग नाम के गणेश जी की उस रोज पूजा करनी चाहिए। भोजन एक बार करना चाहिए। व्रत तथा पूजन के पश्चात् ब्राह्मण को भोजन कराकर खुद चुप रहकर भोजन करना चाहिए। इस व्रत का फल मैं बता रहा हूँ, ध्यानपूर्वक सुनिए। कार्तिक कृष्ण चतुर्थी संकटा को घी और उड़द मिलाकर हवन करना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य को सब तरह की सफलता प्राप्त होती है।”


गणेश जी आगे कहते है, "हे पार्वती माता जी! मैं इस सम्बन्ध में एक पूर्व कालीन इतिहास बता रहा हूँ। गणपति व्रत और उनकी पूजा की विधि जैसी पुराण में बताई गई है उसे सुनें।"


गणेश जी ने दैत्यराज वृत्रासुर की कथा सुनाई: 


वृत्रासुर राक्षस ने तीनों लोकों को विजित कर देवों को अपने अधीन कर लिया। उसने देवताओं को उनके लोकों से निकाल दिया। फलस्वरूप देवतागण दिशाहीन हो गए। तब सभी देवता इन्द्र के साथ भगवान् विष्णु की शरण में गए। 


देवों की बात सुनकर विष्णु ने कहा, "समुद्र के मध्य टापू में रहने के कारण वे कष्ट रहित होकर शरारती एवं बलवान हो गए हैं। ब्रह्मा जी से उन्होंने किसी भी देव के द्वारा न मरने का वरदान ले लिया है। इसलिए आप लोग अगस्त्य ऋषि के पास जाइये। 


वे मुनि समुद्र को पी जाएँगे तब राक्षस लोग अपने पिता के पास चले जायेंगे और आप लोग सुख से स्वर्ग में रहने लगेंगे। इसलिए आप का कार्य अगस्त्य ऋषि की मदद से पूरा होगा।"


ऐसा सुनकर समस्त देवतागण अगस्त्य ऋषि के आश्रम में पहुंचे और प्रार्थना द्वारा उनको प्रसन्न किया। मुनि ने खुश होकर कहा, "हे देवगणों! भय वाली कोई बात नहीं है, आप लोगों की मनचाही इच्छा अवश्य ही पूरी होगी।"


मुनि की इस बात को सुनकर सारे देवता अपने-अपने लोकों में चले गए। इधर मुनि को फिक्र हुआ कि इतने बड़े समुद्र को वो कैसे पी पाएगे? तब उन्होंने गणेश जी को याद करके संकट चतुर्थी के सुन्दर व्रत को विधिपूर्वक किया। व्रत करने के पश्चात् गणेश जी उनसे खुश हुए। उसी व्रत के प्रभाव से अगस्त्य ऋषि ने समुद्र को आसानी से पीकर सुखा दिया। 


इस व्रत की केवल कथा सुनने से ही सैंकड़ों-हजारों अश्वमेध यज्ञ और वाजपेय यज्ञों का फल मिलता है तथा पुत्र-पौत्रादि की बढ़ोतरी होती है।

Previous Post Next Post