पद्मिनी एकादशी (अधिकमास शुक्ला) व्रत कथा Spiritual RAGA

अधिकमास में पद्मिनी नाम की पवित्र एकादशी होती है। यत्नपूर्वक उसका उपवास करने से वह पदनाम के पुर को पहुँचा देती है। मलमास (अधिकमास) की एकादशी पवित्र और पापों को दूर करने वाली कही गई है। यह पापों को नाश करने वाला और भक्ति मुक्ति को देने वाला है। जो मनुष्य इसकी सब विधि को सुनेंगे वे पुण्य के भागी होंगे वे बैकुण्ठ को जायेंगे।

पद्मिनी एकादशी (अधिकमास शुक्ला) व्रत कथा
पद्मिनी एकादशी (अधिकमास शुक्ला) व्रत कथा 

पद्मिनी एकादशी का व्रत कब आता है? 


पद्मिनी एकादशी का व्रत, कार्तिक महीने की शुक्लपक्ष को आता है।


पद्मिनी एकादशी का व्रत कैसे करे?


दशमी के दिन नियम करें कांसे के बासन में भोजन मांस मसूर, चना, करोंदा, शाक, शहद, पराया अन्न ये दशमी के दिन वर्जित हैं। हविष्य अन्न भोजन करे। खारी नमक नहीं खाना चाहिए। दशमी के दिन भूमि पर शयन करे और ब्रह्मचर्य से रहे। एकादशी के दिन सवेरे उठकर गोबर, मिट्टी, तिल, कुशा लेकर पवित्र होकर आमले का चूर्ण शरीर में लगाकर विधिपूर्वक स्नान करे। 


इस मन्त्र को पढ़े सौ भुजा वो श्री कृष्ण रूपी वाराह ने तुमको धारण किया है। 


हे मृत्तिके! तुम कश्यपजी से अभिमन्त्रित की हई ब्रह्माजी से दी हुई हो। मैंने सिर और नेत्रों में तुमको लगाया मेरे अंग को पवित्र करो। हे देवताओं के देवता! हे शंख, चक्र, गदा धारण करने वाले! हे जगन्नाथ! हे विष्णो! मुझको तीर्थ में स्नान करने की आज्ञा दीजिए। 


वरुण के मन्त्रों को जपकर गंगादि तीर्थों का स्मरण करके जहां कहीं जलाशय हो उसमें विधि पूर्वक स्नान करे। 


फिर धोती पहिनकर भगवान् का पूजन करें। विधि पूर्वक सन्ध्या करके देव और पितरों का तर्पण करें। एक मासे सुवर्ण की बनाई हुई गधा-कृष्ण की मूर्ति तथा महादेव-पार्वती की विधि पूर्वक पूजा करें। कलश के ऊपर ताबें अथवा मिट्टी के पात्र में उत्तम बस्त्र रखकर सुगन्धित करके देवता को स्थापित करे। उसके ऊपर तांबें, चांदी व सुवर्णा का पात्र रक्खे उसमें मूर्ति का रखकर विधि पूर्वक पूजन करे। सुन्दर जल, गन्ध धूप, । 


चन्दन, अगर, कपूर इनसे भगवान् का पूजन करे । कस्तूरी कुंकुभ, श्वेत कमल और नैवेद्य, धूप, दीपक, कपूर और आरती से केशव और शिव का पूजन करे ब्राह्मण और गुरु की निन्दा न करे। वैष्णव को संग लेकर ठाकुर जी के सामने कथा सुने । मलमास के शुक्लपक्ष की एकादशी में पानी न पिये अथवा इस व्रत में जलपान व दूध पीकर रहना चाहिए और कुछ नहीं खाना चाहिए। 


रात में कीर्तन और बाजे बज़ाकर जागरण करना चाहिए। रात के प्रथम पहर में पूजा में गोला रखकर अर्ध्य देना चाहिए। दूसरे में श्रीफल से तीसरे में बिजौरे से चौथे प्रहर सुपारी से अर्घ्य देना चाहिए। विशेष करके नारंगी से पूजन करना उचित है। प्रथम पहर में जागरण से अग्निष्टोम यज्ञ का पुण्य होता है। दूसरे प्रहर में बाजपेय का तीसरे प्रहर में अश्वमेध का, चौथे प्रहर में राजसूय का फल मिलता है।


एकादशी का व्रत कितना उत्तम माना जाता है?


इस व्रत को जो मनुष्य करते हैं, वे निश्चय ही सब पापों से छूटकर स्वर्ग को जाते हैं। इसके पाठ करने और सुनने से अवश्मेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।


कथा:


त्रेतायुग में माहिष्मतीपुरी में एक बड़ा राजा पैदा हुआ। उस राजा के एक हजार रानियां थी। परन्तु उनमें से किसी के कोई संतान नहीं हुआ। राजा ने मन में विचार किया कि तपस्या करने से इच्छा पूरी होती है, यह सोचकर वह राज्य को मंत्री को सौंपकर तप करने को चला गया। 


राजा हरिश्चन्द्र की पुत्री पद्मिनी उसी राजा की रानी थी। वह भी अपने पति के साथ गंधमादन पर्वत पर चली गई। राजा ने दस हजार वर्ष तपस्या की और उसके शरीर में हड्डी और चमड़ा रह गया। 


तब पद्मिनी नम्रता से पतिव्रता अनसूया से पूछने लगी, "हे साध्वि! मेरे पति को तपस्या करते हुए दस हजार वर्ष बीत गये है, तो भी कष्टों को दूर करने वाले केशव प्रसन्न नहीं हुए। इसलिए हे महाभागे ! मुझको यथार्थ व्रत बतलाओ जिससे भगवान प्रसन्न हो जायें और संतान होने का वरदान प्रदान करें। 


हमारे राजा संतान के न होने से अत्यन्त दुःखी हैं क्योंकि संतानहीन मनुष्य को मोक्ष नहीं मिलता। अतः ऐसा व्रत बताइए जिससे संतान पैदा हो।"


पद्मिनी रानी की बात सुनकर पतिव्रता अनसूया प्रसन्न होकर बोली, "हे सुभ्रु ! यह मलमास बारहों महीनों में अधिक श्रेष्ठ होता है। यह बत्तीस महीनों में आता है। इसमें पद्मिनी नाम की एकादशी होती हैं उनका व्रत करके विधि पूर्वक जागरण करना चाहिए। इनके करने से संतान देने वाले भगवान शीघ्र प्रसन्न होंगे।" 


यह कहकर अनसूया ने व्रत की विधि उसको समझा दी। उसे सुनकर संतान होने की कामना से सब विधि को किया। व्रत पूर्ण होने पर केशव भगवान् शीघ्र प्रसन्न हो गए। गरुड़ ध्वज भगवान बोले, "हे सुन्दरी! वर मांगो।"


यह सुनकर पद्मिनी प्रसन्न होकर बोली, "मेरे पति को बहुत बड़ा वरदान दीजिए।" भगवान बोले, "हे भद्रे! तूने मुझे प्रसन्न कर लिया। जैसा मलमास मुझे प्यारा वैसा दूसरा नहीं है, उसमें एकादशी मुझको विशेष प्रिय है। हे सुन्दरी! तूने विधिपूर्वक एकादशी का व्रत किया है। इसमें मैं तुम पर प्रसन्न हूँ। तुम्हारे पति को मैं इच्छानुसार वर दूंगा।"


यह कहकर संसार के दुःख हरने वाले भगवान् राजा से बोले, "हे राजेन्द्र! अपनी इच्छानुसार वर मांग लो, रानी ने तुम्हारी कामना सिद्ध होने के लिए मुझे प्रसन्न कर लिया।" विष्णु जी का वचन सुनकर राजा प्रसन्न हो गया। जिसको सब लोक नमस्कार करें। ऐसा बड़ी भुजाओं वाला पुत्र मांगा। राजा के ऐसा कहने पर ' बहुत अच्छा' कहकर भगवान् अन्तर्ध्यान हो गए। 


राजा भी रानी समेत हृष्ट, पुष्ट और प्रसन्न हो अपने नगर में आ गया। पद्मिनी को बड़ा बलवान कार्तवीर्य नामक पुत्र हुआ। उसके समान त्रिलोकी में कोई मनुष्य नहीं था।

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