स्वर्ग मोक्ष को देने वाली, सब पापों को हरने वाली, परम पवित्र पाशांकुशा एकादशी है -पाशांकुशा एकादशी। इसके श्रवण मात्र से पाप दूर हो जाते हैं।
आश्विन शुक्लपक्ष की एकादशी का क्या नाम है?
आश्विन शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम है: पाशांकुशा एकादशी।
पाशांकुशा एकादशी का व्रत कैसे करे?
व्रत करने का संकल्प लेने के लिए सुबह जल्दी स्नान करें और अनुष्ठानों का पालन करें। बिना पानी पिए या भोजन किए उपवास करना, निर्जला व्रत, पालन करने के लिए सबसे अच्छा एकादशी व्रत है। यदि यह संभव न हो तो पानी पीकर और भोजन का त्याग कर व्रत का पालन किया जा सकता है। यदि वह भी संभव न हो तो भक्त दिन में दो या एक बार भोजन छोड़कर भी व्रत कर सकते हैं। इस व्रत के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मन में पवित्रता है। यह व्रत गपशप करने, किसी के बारे में बुरा सोचने/बोलने का निषेध करता है।
जो भक्त एकादशी के दिन एक या दो बार भोजन करके उपवास कर रहे हैं उनके लिए एकादशी के दिन सेम और अनाज खाना वर्जित है। एकादशी और द्वादशी के दिन मांसाहारी भोजन, प्याज और लहसुन की सख्त मनाही होती है।
नियमानुसार एकादशी व्रत में दिन में सोना वर्जित है। यदि संभव हो तो, भक्त को रात में सोना नहीं चाहिए और स्वयं भगवान से प्रार्थना करते हुए जागरण करना चाहिए। भक्त को भगवान विष्णु/पद्मनाभ की स्तुति का जाप/गाना करना चाहिए, भागवत गीता और अन्य को पढ़ना चाहिए दिन और रात के माध्यम से पवित्र पुस्तकें। पासांकुसा एकादशी व्रत कथा पढ़ना या सुनना इस पवित्र दिन पर जरूरी है।
एकादशी का व्रत कितना उत्तम माना जाता है?
यह पापों को दूर करने वाली श्रेष्ठ एकादशी पाशांकुशा नाम से प्रसिद्ध है इसमें मनुष्य को पद्मनाभा का पूजन करना चाहिए। इन्द्रियों को वश में करके बहुत समय तक तपस्या करने से जो फल मिलता है, वह फल गरुड़ ध्वज भगवान् को नमस्कार करने से मिलता है। पृथ्वी पर जितने तीर्थ हैं, उनका फल भगवान के नाम के कीर्तन से मिल जाता है।
कथा:
एक समय की बात है विध्यांचल पर्वत पर एक शिकारी रहता था जिसका नाम क्रोधाना था। उसने अपने जीवन में बहुत से पाप किये थे, शिकार के अलावा यात्रियों को लूटना, दूसरों की भेड़ बकरी चुराना आदि। जब क्रोधाना का अंत करीब आने लगा तो उसे आभास हुआ की उसने जीवन में बहुत पाप किये है और इस प्रकार से उसको अंत में यमलोक जाना पड़ेगा। अपनी अवगति के बारे में सोच कर वह अंगीरा ऋषि की शरण में गया और जा कर सब वृत्तांत कह सुनाया। ऋषि ने मैं ही मैं सोचा की जो भी मनुष्य के पाप है उनका फल तो उसको भोगना पड़ेगा ही पड़ेगा। बहुत सोच विचार कर के ऋषि ने क्रोधाना से कहा की एक उपाय है जिससे तुम्हारी गति अच्छी होगी और अंत में तुम अच्छी गति को प्राप्त करोगे।
ऋषि अंगीरा ने कहा की तुम नियम अनुसार पाशांकुश एकादशी के व्रत करो और इसके बाद आने वाली सब एकादशी का व्रत करो। जब व्रत रखो तब किसी भी मनुष्य की बुराई मत करो। अपना शेष जीवन रोगियों की सेवा में लगाओ और नारायण नाम का सदैव जाप करते रहो टफ अवश्य तुम्हे अच्छी गति प्राप्त होगी।
अंगीरा ऋषि के कथन अनुसार क्रोधाना ने सब काम किये और कुछ वर्ष के बाद यमदूत क्रोधाना को लेने के लिए आये। वे क्रोधाना को ले कर यमलोक गए और वहां उसने अपने सब पापों की सजा काटी। फिर उसके बाद यमलोक में विमान आया जो क्रोधाना को ले कर वैकुण्ठ में चला गया और ऋषि के कथनानुसार उसको अच्छी गति मिली।
जो शांर्ग-धनुषधारी जनार्दन की शरण को प्राप्त हो गये हैं, वे मनुष्य यमलोक हो जाते हैं । जो मनुष्य प्रसंग वश एक एकादशी का भी व्रत कर लेता है, वह कठिन पाप करके भी यमलोक के बाद दोबारा से जनम मरण के चक्कर में नहीं फसते । जब तक मनुष्य पद्मनाभा नाम की एकादशी का उपवास नहीं करता तब तक उसके शरीर में पाप रहते हैं। यह एकादशी स्वर्ग, मोक्ष, आरोग्य सुन्दर स्त्री और धन देने वाली है।
आश्विन शुक्लपक्ष में पाशांकुशा का उपवास करके मनुष्य सब पापों से छूटकर विष्णुलोक जाता है। ऐसा करने से सब रोगों से छूटकर वह स्वर्गलोक में जाकर गन्धर्व होता है।