श्रावण कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत कथा Spiritual RAGA

(पार्वती जी के तप की कथा )

श्रावण कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत कथा
श्रावण कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत कथा 

श्रावण कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत किस महीने में आता है?


श्रावण कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत जुलाई या अगस्त के महीने में आता है।


विवरण:


यह व्रत संकटनाशक गणेश चतुर्थी व्रत में से एक है। इस व्रत को आप अपनी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए कर सकते हैं। यह व्रत आपके घर में सुख-शांति लाता है। इस व्रत में आप शांति पाठ भी पढ़ सकते हैं। रात को चंद्रमा को जल चढ़ाने के बाद व्रत पूर्ण होगा।


कथा:

॥ श्री महागणाधिपतये नमः ॥


एक समय की बात है ऋषिगण, कार्तिकेय जी से पूछते हैं "हे स्कन्दकुमार जी! मनुष्यों की भलाई के लिए और उनके सब दुखों को दूर करने के लिए कोई उत्तम उपाय बताइये। किस यत्न  के करने से मनुष्य को मानसिक शक्ति मिलेगी और उसके जीवन में सुख समृद्धि आ जाएगी। यदि आप इसका कुछ उपाय जानते है तो हमे बताइये।    


स्वामी कार्तिकेय जी ने कहा, हे ऋषियों! आपने जो सवाल किया है उसके निवारण हेतु मैं आप लोगों को एक शुभदायक व्रत बतलाता हूँ उसे सुनिए। अपनी भलाई के लिए और मानसिक शान्ति के लिए सावन कृष्ण गणेश चतुर्थी का उत्तम व्रत रखना चाइये। इस व्रत को करने से पृथ्वी के समस्त प्राणी सारे कष्टों से छूट जाते हैं। यह व्रत पुण्य देनेवाला तथा मनुष्यों को समस्त कार्यों में सफलता दिलाने 'वाला है। 


ऋषियों ने आगे पूछा, "हे स्कन्दकुमार जी! इस व्रत को सबसे पहले किसने किया यह भी जाने की हमारी इच्छा है।"


स्वामी कार्तिकेय जी ने उन्हें बताया, "हिमालय की पुत्री देवी पार्वती ने जब महादेव शिव को पति रूप में प्राप्त करने की इच्छा की तब नारद जी की सलाह अनुसार उनको तप करना था। तप बहुत ही कठिन था तो देवी पार्वती  के दिल में उतनी ही घबराहट होने लगी। उस समय उन्होने अपने हिर्दय में स्तिथ महागणेश की पूजा करी, चतुर्थी के दिन सुबह उठ कर एक मिटटी की मूर्ति बना कर उसकी पूजा करी। गंध और पुष्पों से गणेश का श्रृंगार किया फिर पूरा दिन निराहार रह कर शाम को ब्राह्मणो को भोजन करवाया। रात्रि में चंद्र को अर्क दे कर  खुद भोजन किया। इसके पश्चात गणेश जी से अपना तप सफल करने की शक्ति मांगी।  महागणेश जी की कृपा से उनके सब संदेह दूर हो गए और उनको मानसिक शक्ति मिली जिससे वो इतने कठिन तप को सफलता पूर्वक कर पाई।  


महाभारत के यद्ध से पूर्व इसी प्रकार का संदेह धर्मराज युधिष्ठिर के मन में भी उठा तब उन्होंने श्री कृष्ण जी से उपाय पूछा और तब कृष्ण जी ने सावन कृष्णा गणेश चतुर्थी व्रत के बारे में उनको बताया। श्री कृष्ण ने कहा की इसी व्रत के करने से पार्वती जी का विवाह शिवजी से हुआ और जिनके साथ आज तक पार्वती जी गणेश जी की अनुकम्पा से विहार किया करती हैं। इसलिए हे महाराज युधिष्ठिर! आप भी इस संकटनाशक व्रत को करें। यह 'संकटा' नाम की चतुर्थी बहुत सुन्दर फल देने वाली है। कृष्ण जी के समझने से युधिष्ठिर ने उसी प्रकार से सावन गणेश चतुर्थी का व्रत रखा जिसके करने से उन्हें उत्तम ज्ञान की प्राप्ति हुयी और उन्होंने महाभारत के कठिन युद्ध का निश्चय किया।  


इस व्रत को करने से धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष—ये चारों सहज ही हो जाते हैं। मनुष्यों की मानसिक शक्ति प्राप्त होती है और संकट के समय इस व्रत को करने से मनुष्य कष्ट से छूट जाता है। 


पहले समय में राजा बलि से संकटग्रस्त होने पर रावण ने भी इस व्रत को किया था। गौतम की पत्नी अहिल्या ने अपने पति के शाप से ग्रसित होने पर पति वियोग के फलस्वरूप इस व्रत को किया था। जिस प्रकार गणेश जी सब के दुःख दूर कर उनको सोचने की शक्ति देते हैं, उसी प्रकार हमारा भी ध्यान रखें।


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