मनुष्यों को सुख और मोक्ष देने वाली पवित्र और पाप नाशनी एकादशी का नाम परमा है। जो मनुष्य विधि पूर्वक अधिक मास में स्नान करते हैं एकादशी और पंच रात्रि का व्रत करते हैं वे स्वर्ग में इन्द्र के समान सुख भोग कर तीनों लोकों से वन्दित विष्णु भगवान के बैकुण्ठ लोक को जाते हैं।
परमा एकादशी का व्रत कब आता है?
परमा एकादशी का व्रत, अधिकमास की कृष्णापक्ष को आता है।
परमा एकादशी का व्रत कैसे करे?
दिन के आठवें भाग में जब सूर्य का प्रकाश मन्दा हो जाय उस समय के आहार का नाम नक्त भोजन हैं। जब भोजन करना चाहिए। मध्याह्न के समय स्नान करके पवित्र हो जायें। ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर प्रणाम करके क्षमा मांगे।
एकादशी का व्रत कितना उत्तम माना जाता है?
इस व्रत को जो मनुष्य करते हैं, वे निश्चय ही सब पापों से छूटकर स्वर्ग को जाते हैं। इसके पाठ करने और सुनने से अवश्मेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
कथा:
सुमेधा नाम का ब्राह्मण था। उसकी पत्नी का नाम पवित्रा था। पिछले जन्म के कुकर्म से वह ब्राह्मण अन्न धन से रहित हो गया। उसकी पत्नी अपने पति से बहुत प्यार करती थी। अतिथि को भोजन कराके आप भूखी रह जाया करती थी। घर की परेशानियाँ वो अपने पति से कभी नहीं कहती थी।
इस की वजह से उसका शरीर सुखने लग गया। यह देखकर ब्राह्मण ने अपने पत्नी से बोला, "हे कान्ते! मुझे धन नहीं मिलता, मैं क्या करूँ, कहां जाऊं? मुझे लगता है अब मुझे धन की प्राप्ति के लिए विदेश ही जाना होगा। वहां जाकर मेरे भाग्य में होगा सो मिलगा।"
पति का वचन सुनकर पत्नी आंखों में आंसू भर के हाथ जोड़ सिर झुका कर पति से बोली, "हित चाहने वाले मनुष्य आपत्ति पड़ने भी यही कहते हैं कि पृथ्वी पर जहां जो कुछ मिलता है वह पूर्व जन्म का दिया ही मिलता है।"
एक बार उसके यहां मुनि आये। विधि पूर्वक भोजन कराकर वह उत्तम स्त्री उनसे पूछने लगी, "हे विद्वान् ! मुझको छोड़कर मेरा पति बाहर जाना चाहता है। हे मुनीन्द्र! मेरे भाग्य से आप यहीं आ गये आपकी कृपा से निश्चय मेरा दरिद्र शीघ्र ही नष्ट हो जायेगा। हे कृपा सिन्धो! मेरा दरिद्र दूर होने के लिए व्रत, तीर्थ, तप आदि कहिये।"
मुनीश्वर ने उस सुशीला का वचन सुना तो उससे बोले, "अधिक मास के कृष्णपक्ष में भुक्ति मुक्ति और पुण्य को देने वाली सबसे उत्तम परमा नाम की एकादशी है। उसका व्रत करने से मनुष्य धन धान्य से युक्त होता है। इसमें विधि पूर्वक नृत्य-गीत और जागरण करना चाहिए। इस सुन्दर व्रत को पहिले कुबेर ने किया था।
तब शिवजी ने प्रसन्न होकर उसको कोषाध्यक्ष बना दिया। राजा हरिश्चन्द्र ने इस व्रत को किया, इससे स्त्री और निष्कटंक राज्य मिल गया।"
ऋषि के इस तरह कहने पर अधिक मास में पति के साथ स्नान करके ऋषि की कही हुई विधि के अनुसार इस व्रत को किया। अधिक मास के कृष्ण पक्ष की परमा एकादशी का व्रत करने से और आदर पूवक पंच रात्रि का व्रत करने से सब पापों से छूटकर सब सुख और आनन्द भोग कर अन्त में स्त्री को संग लेकर वह ब्राह्मण विष्णु लोक में चला गया।