वामन एकादशी (भाद्रपद शुक्ला) व्रत कथा Spiritual RAGA

स्वर्ग मोक्ष को देने वाली, सब पापों को हरने वाली, परम पवित्र वामन एकादशी है। इसको जयन्ती एकादशी भी कहते हैं। इसके श्रवण मात्र से पाप दूर हो जाते हैं। 

वामन एकादशी (भाद्रपद शुक्ला) व्रत कथा
(वामन एकादशी (भाद्रपद शुक्ला) व्रत कथा)

भाद्रपद शुक्लपक्ष की एकादशी का क्या नाम है?


भाद्रपद शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम है: वामन एकादशी


वामन एकादशी का व्रत कैसे करे? 


दिन के आठवें भाग में जब सूर्य का प्रकाश मन्दा हो जाय उस समय के आहार का नाम नक्त भोजन हैं। जब भोजन करना चाहिए। मध्याह्न के समय स्नान करके पवित्र हो जायें। ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर प्रणाम करके क्षमा मांगे।


एकादशी का व्रत कितना उत्तम माना जाता है?


अश्वमेध यज्ञ का फल भी इसके व्रत से बड़ा नहीं है इस जयन्ती का व्रत पापियों के पापों को दूर करने वाला है। इस एकादशी को शयन करते हुए भगवान ने करवट ली है, इसी से इसको परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं।


कथा:


पहले त्रेतायुग में दक्षिण भारत में राजा बली नाम का असुर हुआ करता था। असुर होने की वजह से यह राजा नीतिशास्त्र और प्रशासनिक कार्य में बहुत कुशल था। राजा बली प्रह्राद का वंशज था इसलिए उसकी भगवान में बहुत निष्ठा थी। और वह बहुत उदार स्वाभाव का भी था। राज्य की सारी प्रजा उसके कार्य से खुश रहती थी। बली बहुत महत्वाकांक्षी राजा था और वह चाहता था कि उसका राज समस्त लोकों पर हो।


अपनी इस महत्वकांक्षा को पूरा करने के लिए बली ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया, जिससे वह स्वर्ग का राजा बन गया और उसके पश्चात तीनो लोको को अपने बल से जीतने के बाद, उसने त्रिलोक्य की भलाई की इच्छा और अपने राज्य के विस्तार की कामना से अश्वमेध यज्ञ कराना शुरू किया।


असुरों से हारा और राज्य से भागा हुआ इन्द्र फिर देवताओं और ऋषियों को लेकर मेरे धाम वैकुण्ठ पहुंचे। सुन्दर वचनों से मेरी स्तुति की और देवताओं के साथ वृहस्पति जी ने मेरा अनेक बार पूजन किया। तब देवताओं की सहायता करने के उद्देश्य से मैंने पांचवा अवतार वामन रूप से धारण किया और राजा बलि के यज्ञ में जा पहुंचा ।


युधिष्ठिर बोले-आपने वामन रूप से असुर बलि राजा को कैसे जीत लिया। यह कथा विस्तार पूर्वक कहिए। मैं आपका भक्त हूँ और मेरी यह सुनने की इच्छा है। श्रीकृष्ण बोले- मैं आगे की कथा कहता हूँ उसे ध्यान से सुनो।  


मैं यह बात जानता था कि राजा बली अपनी उदारता के लिए प्रसिद्ध हैं और इसी बात को ध्यान में रखकर मैं एक वामन ब्राहमण के रूप में बली के पास गया और उससे तीन क़दम ज़मीन मांगी। उदार महाबली किसी ब्राह्मण को खली हाथ नहीं भेजता था और उसने तुरंत वामन ब्राह्मण की इस बात को स्वीकार कर लिया। 


इसके बाद वामन का आकार  बढ़ता ही चला गए और भगवान ने एक ही कदम से पूरी पृथ्वी नाप ली और दुसरे कदम से सारा आकाश नाप लिया।  और फिर राजा बलि से प्रश्न किया की हे राजन अब में अपना तीसरा कदम कहाँ रखूँ।  राजा बलि मेरी इस लीला को समझ गए और मेरे आगे अपना सर झुका कर बोले - "हे प्रभु! मेरे पास मेरे इस शरीर के सिवा अब और कुछ शेष नहीं है, आप अपना तीसरा कदम मेरे सर पे रखने की कृपा करें।  और मेरे राजा बलि के सिर पर पैर रखते ही राजा बली पाताला लोक में समा गया। 


मैं राजा बली की इस धर्म निष्ठा से प्रसन्न हो गया और उससे एक वरदान मांगने की बात कही। तब राजा बली ने कहा कि पुरे साल में आप मुझे एक बार अपने राज्य जाने की अनुमति दे ताकि मैं अपनी प्रजा की खुशहाली और संपन्नता सुनिश्चित कर सकू। तब से ओणम के त्यौहार पे हर वर्ष राजा बलि अपने राज्य जाते है और अपनी प्रजा की खुशहाली का निरिक्षण करते है। 


साथ ही साथ राजा की नम्रता को देखकर मैं प्रसन्न हो गया और उससे कहा कि - हे राजन ! मैं सदा तुम्हारे समीप रहूँगा। मेरी एक मूर्ति बलि राजा के आश्रम में निवास करती है और दूसरी मूर्ति क्षीर सागर में शेष जी के ऊपर शयन करती है। जब कार्तिक की एकादशी आती है, वहां तक भगवान शयन करते हैं। इस बीच में जो पुण्य किया जाय वह सब पुण्यों से उत्तम होता है। हे राजन! इस कारण से इस एकादशी का व्रत यत्नपूर्वक करना चाहिए। 


यह बहुत पवित्र हो और पापों को दूर करने वाली है । सोते हुए प्रभु ने इस एकादशी को करवट ली है। इससे चाँदी और चावल सहित दही का दान करना चाहिए। हे राजन्! सब पापों को नष्ट करने वाली, इस लोक में सुख और अन्त में मोक्ष देने वाली इस सुन्दर एकादशी के व्रत को जो करता हैं, वह देवलोक में जाकर चन्द्रमा की तरह प्रकाश करता है। जो मनुष्य के पापों को हरने वाली इस कथा को सुनता है। उसको हजार अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।


राजा बलि चिरंजीवी है और कलयुग के अंत में जब दोबारा से पृथ्वी का नव निर्माण होगा तब राजा बलि स्वर्ग का राज्य संभालेंगे।

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