विजया एकादशी (फागुन कृष्णा) व्रत कथा Spiritual RAGA


प्राचीन समय में श्री कृष्णचन्द्र जी ने एकादशी
के उत्तम व्रत का माहात्म्य विधि पूर्वक वर्णन किया है। ये व्रत विजय की प्राप्ति की लेया है इस लेया इसका नाम विजया एकादशी है।

विजया एकादशी (फागुन कृष्णा) व्रत कथा
(विजया एकादशी (फागुन कृष्णा) व्रत कथा)

फागुन कृष्णा पक्ष की एकादशी का क्या नाम है?


फागुन कृष्णा पक्ष की एकादशी का नाम है: विजया एकादशी


विजया एकादशी कौन से महीने में आते है?


विजया एकादशी फरवरी-मार्च में आते है।


विजया एकादशी का व्रत कब आता है?


विजया एकादशी का व्रत, फागुन महीने की कृष्णापक्ष को आता है।


विजया एकादशी का व्रत कैसे करे?


दशमी के दिन मिट्टी का कलश बनवावे, स्थण्डित के ऊपर सप्त धान्य रखकर उसके ऊपर जल से भरा हुआ कलश रक्खे। उसमें पंच पल्लव रखकर कलश के ऊपर सकोरे में जो रक्खे उसके ऊपर नारायण की प्रतिमा स्थापित करें। एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नान करे, विधिपूर्वक पूजन करें, मूर्ति समेत उस कलश को विद्वान ब्राह्मण को देवे। 


एकादशी का व्रत कितना उत्तम माना जाता है?


खेत में तिल बोने से जितनी संख्या में तिल पैदा होते है। उतने हजार वर्ष तक वह मनुष्य स्वर्ग में निवास करता है। यह व्रत करने वालों को सदा विजय देने वाली है। 


कथा:


जब रामचन्द्रजी ने वनवास के समय सीता और लक्ष्मण के साथ पंचवटी में निवास किया तो सीता को रावण हर कर ले गया। उस दुःख से रामचन्द्र जी बहुत दुःखी हुये। वन में भ्रमण करते हुए आसन्न मृत्यु जटायु को देखा और कबन्ध नामक दैत्य को मारा। रामचन्द्र जी से सीता जी का वृत्तान्त कहकर जटायु भी मर गया। फिर रामचन्द्र जी की सुग्रीव से मित्रता हो गई और बन्दरों की सेना इकट्ठी हुई। 


फिर हनुमान जी ने अशोक वाटिका में सीता जी को देखा रामजी की अंगूठी सीता जी को देकर बड़ा काम किया। फिर लौट कर सीता जी का सब वृतान्त सुनाया। तब रामचन्द्र जी ने बानरों के साथ समुद्र को देखकर लक्ष्मण जी से बोले, “हे सुमित्रे! किस पुण्य से समुद्र को पार किया जाये? क्योंकि यह सागर अथाह जल परिपूर्ण है।”


लक्ष्मण जी बोले, “हे पुराण पुरुषोत्तम! आप आदिदेव हैं ! इस द्वीप में बकदाल्भ्य मुनि रहते हैं। यहां से उनका आश्रम दो कोस है। उन्हीं प्राचीन श्रेष्ठऋषि से पूछिये।” लक्ष्मण जी के इस सुन्दर बचन को सुनकर रामचन्द्र जी बकदाल्भ्य मुनि के दर्शन के लिए गए। दूसरे विष्णु के समान बैठे हुए मुनि को रामचन्द्र जी ने प्रणाम किया। तब रामचन्द्रझी को पुराण पुरुषोत्तम जानकर मुनि यह समझ गये कि किसी कारण से इन्होंने मनुष्य देह धारण किया है।


फिर ऋषि बोले, “हे राम! तुम यहाँ क्यों आये हो?” रामचन्द्र जी बोले, “हे मुने! मैं लंका जीतने को आया हूँ, आप कृपा करके उपाय बतलाइये।” 


मुनि बोले, “हे राम! मैं सब व्रतों में उत्तम व्रत कहूँगा, जिसके करने से तुम्हारी शीघ्र विजय हो जायेगी और राक्षसों सहित लंका को जीतकर विशेष कीर्ति होगी। तुम एकाग्र मन से इस व्रत को करो। फाल्गुन के कृष्णपक्ष में विजया नाम की एकादशी होती है, उसका व्रत करने से तुम्हारी जीत होगी। इस व्रत की विधि को सुनो। 


दशमी के दिन मिट्टी का कलश बनवावे, स्थण्डित के ऊपर सप्त धान्य रखकर उसके ऊपर जल से भरा हुआ कलश रक्खे। उसमें पंच पल्लव रखकर कलश के ऊपर सकोरे में जो रक्खे उसके ऊपर नारायण की प्रतिमा स्थापित करें। एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नान करे, विधिपूर्वक पूजन करें, मूर्ति समेत उस कलश को विद्वान ब्राह्मण को देवे। 


हे राम! इस विधि से सेना समेत यत्नपूर्वक इस व्रत को करो इससे तुम्हरी विजय होगी।”


इस बचन को सुनकर रामचन्द्रजी ने विधि पूर्वक इस व्रत को किया। इसके करने से रामचन्द्र जी की विजय हो गई। राम जी विष्णु का अवतार थे, फिर भी जब ये मनुष्य रूप में अवतरित हुए उन्हें भी विजय प्राप्ति की लिए  तप और उपवास करना पड़ा। उसे प्रकार हमे भी ये व्रत करना चाहिए।

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