आषाढ़ कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत कथा Spiritual RAGA

 (राजा महिजित की कथा)

गणेश चतुर्थी व्रत कथा
(आषाढ़ कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत कथा) 

आषाढ़ कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत किस महीने में आता है?

आषाढ़ कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत जून या जुलाई के महीने में आता है।


आषाढ़ कृष्ण में गणेश जी के किस नाम की पूजा करनी चाहिए?


इस दिन लम्बोदरनाम के गणेश जी की पूजा करनी चाहिए।


विवरण:


यह व्रत संकटनाशक गणेश चतुर्थी व्रत में से एक है। इस व्रत को आप अपनी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए कर सकते हैं। यह व्रत आपके घर में सुख-शांति लाता है। इस व्रत में आप शांति पाठ भी पढ़ सकते हैं। रात को चंद्रमा को जल चढ़ाने के बाद व्रत पूर्ण होगा।


कथा:

॥ श्री महागणाधिपतये नमः ॥

पार्वती जी ने गणपति जी से पूछा “हे पुत्र! आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी बहुत ही अच्छा फल देनेवाली बताई गई है। आप उसकी विधि बतलाइए। इस माह के गणेश जी का क्या नाम है और उनकी आराधना किस तरह करनी चाहिए?”


गणपति जी ने उत्तर दिया “हे माता! आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी के गणपति का नाम ‘लम्बोदर’ है। पूरे दिन व्रत के बाद, लड्डू का प्रसाद भगवान को भोग लगाएं। ब्राह्मणों को भोजन परोसने के बाद, स्वयं भोजन करें। जो मनुष्य इस व्रत को श्रद्धा सहित करेंगे उन्हें संसार के समस्त सुख मिलेंगे। हे शैलपुत्री! इसका इतिहास बहुत अद्भुत है, जिसके स्मरण मात्र से ही मनुष्य को सिद्धि मिलती है। उसे मैं आपको कहता हूँ।”


गणेश जी ने राजा महिजित की कथा सुनाई:


द्वापर युग में महिष्मति नगरी का राजा महिजित था। वह बहुत ही प्रतापवान् और पुण्यशील राजा था। वह सन्तान की तरह अपनी प्रजा का पालन करता था। लेकिन उसके सन्तान न होने के कारण उसे राजमहल का सुख अच्छा नहीं लगता था। 


वेदों में सन्तानहीन मनुष्य का जीवन निरर्थक माना गया है। उन्होंने सन्तान पाने के लिए बहुत से दान, यज्ञादि कार्यों को किया परन्तु राजा के सन्तान पैदा नहीं हुई। एक दिन राजा ने नगर के सारे विद्वान् ब्राह्मणों और प्रजा के लोगों को अपनी परेशानी का समाधान खोजने के लिए बुलाया। 


राजा ने कहा, “हे ब्राह्मणों तथा प्रजा के लोगों ! आप सब को पता है कि मैं सन्तानहीन हूँ। अब मेरी क्या गति होगी? मैंने समस्त जीवन कोई भी पाप कर्म नहीं किया। मैंने कभी अत्याचार से धन इकट्ठा नहीं किया। मैंने सर्वदा अपने बचे की तरह प्रजा का पालन किया तथा धर्म पर चलते हुए ही राज्य किया। मैंने अपराधियों, चोर-डाकुओं को दण्ड दिया। 


पूज्य मित्रों की भोजन व्यवस्था की। गौ, ब्राह्मणों का भला सोचते हुए सभ्य पुरुषों का सम्मान किया। फिर भी हे श्रेष्ठ ब्राह्मणों! मेरे अब तक बच्चा न होने का क्या कारण है? मुझे ऐसा क्या करना चाहिए जिस से मुझे बच्चे की प्राप्ति हो?”


विद्वान् ब्राह्मणों ने कहा “हे राजन्! हम सब लोग ऐसा ही प्रयास करेंगे जिससे आपके कुल की वृद्धि हो।" तब एक दूसरे ब्राह्मण बोले "मैंने सुना है एक वन में एक श्रेष्ठ मुनि रहते है। वे मुनिराज भोजन रहित रहकर तपस्या में लीन है। ब्रह्माजी के समान वे आत्मा को जीते हुए, क्रोध को जीते हुए एक दिव्य पुरुष है। वे समस्त वेदों के जानने वाले, दीर्घायु एवं अनेक ब्रह्म ज्ञान से युक्त है। 


उनका पवित्र नाम लोमश ऋषि है। प्रत्येक कल्प के अन्त में उनका एक-एक रोम गिरता था अतः उनका नाम लोमश ऋषि हो गया है। ऐसे तीनों कालों के जानने वाले महर्षि लोमश ही आपकी सहायता कर सकते है। पर वो किसी  राजा से नहीं मिलते है।"


तब सारी प्रजा और ब्राह्मणों ने कहा "हे राजन्! हम सब जाएगे और आपकी समस्या का समाधान, उन महान ऋषि से ले कर आएगें|" सारी प्रजा राजा की मनोकामना की प्राप्ति के लिए ब्राह्मणों के साथ वन में चली गई। वन में जाकर वे सब ऋषि को खोजने में लग गए। तभी उन लोगों को श्रेष्ठ मुनि के दर्शन हुए।


सब लोग उनके पास गये। उचित प्रार्थना एवं नमस्कार आदि के पश्चात् सब लोग उनके सामने खड़े हो गये। मुनि को देखकर सभी लोग प्रसन्न होकर आपस में कहने लगे “हम सब को भाग्यवश ही ऐसे मुनि के दर्शन हुए हैं। इनके उपदेश से हम सभी का कल्याण होगा।” ऐसा विचार कर उन लोगों ने मुनिराज से कहा, “हे ऋषिराज! हम लोगों के दुःख का कारण सुनिये। अपने संशय को समाप्त करने हेतु हम लोग आपकी शरण में बहुत दूर से आये हैं।"


तब ऋषिराज ने पूछा, "आप मेरे पास ही क्यों आए है?" तो सब लोगों ने कहा, "हे स्वामी! आपके समान महात्मा को पाकर हम लोग दूसरे आदमी से क्या कहें। आप ब्राह्मण एवं ऋषियों में श्रेष्ठ हैं। आपसे उत्तम कोई दूसरा व्यक्ति हमें दिखाई नहीं पड़ता।" महर्षि लोमश ने पूछा, "हे महानुभावों! आप लोग यहाँ किस कारणवश आए हैं? मुझसे आपका क्या अभिप्राय है ? साफ तौर से कहिए मैं आपकी समस्त शंकाओं का समाधान करूँगा। तपस्वियों की तपस्या केवल दूसरों का भला करने के लिए होती है।"


प्रजावासियों ने निवेदन किया, "हे ब्राह्मणों में श्रेष्ठ मुनि! हम लोग महिष्मति नाम की नगरी में रहते हैं। हमारे राजा महिजित नाम के हैं। वे ब्राह्मणों की रक्षा करने वाले धर्मात्मा, दानवीर, पराक्रमी एवं मृदुभाषी हैं। परन्तु आज तक ऐसे राजा के कोई सन्तान पैदा नहीं हुई है। हे प्रभु! माता एवं पिता तो केवल जन्म देने वाले होते हैं, किन्तु राजा ही वास्तव में उनको पालने वाला एवं उनकी उन्नति करने वाला होता है।” 


प्रजावासियों ने आगे कहा, “उसी राजा के हेतु हम इस घने वन में आये हैं। हे द्विज श्रेष्ठ! आप कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे राजा को सन्तान की प्राप्ति हो, क्योंकि ऐसे योग्य राजा के कोई संतान न हो यह बड़े ही दुःख की बात है। हे मुनि श्रेष्ठ! किस व्रत, दान एवं पूजन आदि के कराने से राजा को संतान मिलेगी।  कृपा करके आप हमें बताए।"


प्रजावासियों की यह बात सुनकर महर्षि लोमश ध्यानमग्न, राजा की भलाई के लिए कहने लगे, "हे द्विजों! आप लोग ध्यान से सुनो। मैं संकटनाशक व्रत को बतला रहा हूँ। आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी के दिन ‘लम्बोदर’ नामक गणेश जी की अर्चना करें। पूरे दिन व्रत के बाद, लड्डू का प्रसाद भगवान को भोग लगाएं तथा ब्राह्मणों को भोजन करावें और उन्हें वस्त्र का दान करें। गणेश जी की अनुकम्पा से उनको अवश्यमेव संतान की प्राप्ति होगी।"


महर्षि लोमश के ऐसा कहने पर सभी लोग हाथ जोड़कर उठ खड़े हुए और सिर झुकाकर उनके चरणों में लेटकर प्रणाम किया। तत्पश्चात् सभी लोग नगर को लौट आए। वन में जो कुछ हुआ उन सभी घटनाओं को प्रजावासियों ने राजा को बतलाया। प्रजावासियों की यह बात सुनकर यशस्वी एवं निर्मल बुद्धि वाले राजा बहुत ही प्रसन्न हुए और उन्होंने श्रद्धापूर्वक भक्ति से विधिवत् गणेश चतुर्थी का व्रत करके ब्राह्मणों को भोजन करा कर वस्त्रादि दान में दिये। 


कुछ समय पश्चात् रानी सुदक्षिणा के गर्भवती होने के बाद श्री गणेश जी की कृपा से राजा के यहाँ एक सुन्दर और सुलक्षण संतान उत्पन्न हुआ। राजा ने समस्त नगर में रहने वालों को सन्तुष्ट करके पुत्रोत्सव किया। राजा महिजित ने ब्राह्मणों को धन तथा रत्नादि देकर पूर्ण रूप से प्रसन्न किया। 


यह ऐसा ही प्रभावकारी व्रत है। जो मनुष्य इस व्रत को श्रद्धा सहित करेंगे उन्हें संसार के समस्त सुख मिलेंगे। आप भी इस व्रत का विधिपूर्वक आचरण कीजिए। श्री गणपति जी की कृपा से आपकी सभी मन की इच्छाएँ पूरी होंगी। आपके शत्रुओं का नाश होगा। जो व्यक्ति गणेश जी की व्रत कथाओं को सुनते हैं अथवा सुनाते हैं उनके समस्त कार्य पूर्ण होते हैं।


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