फाल्गुन कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत कथा Spiritual RAGA


(विष्णुशर्मा नामक ब्राह्मण की कथा)

फाल्गुन कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत कथा
फाल्गुन कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत कथा

फाल्गुन कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत किस महीने में आता है?


फाल्गुन कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत फरवरी या मार्च के महीने में आता है।


फाल्गुन कृष्ण में गणेश जी के किस नाम की पूजा करनी चाहिए?


इस दिन 'हेरम्ब' नाम के गणेश जी की पूजा करनी चाहिए।


विवरण:


यह व्रत संकटनाशक गणेश चतुर्थी व्रत में से एक है। इस व्रत को आप अपनी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए कर सकते हैं। यह व्रत आपके घर में सुख-शांति लाता है। इस व्रत में आप शांति पाठ भी पढ़ सकते हैं। रात को चंद्रमा को जल चढ़ाने के बाद व्रत पूर्ण होगा।


कथा:

॥ श्री महागणाधिपतये नमः ॥


पार्वती जी पूछती हैं- हे लम्बोदर! फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी को गणपति जी की पूजा-अर्चना कैसे करनी चाहिए? इस महीने में गणेश जी का पूजन किस नाम से होता है और आहार में क्या लेना चाहिए?


गणेश जी ने कहा हे माते! फाल्गुन चतुर्थी को 'हेरम्ब' नाम से गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। इस दिन खीर में कनेर का पुष्प मिलाकर गुलाबांस की लकड़ी से हवन करना चाहिए। विद्वानों के मतानुसार भोजन में घृत और चीनी लें। 


इस बारे में पहले समय की एक कथा सुनाता हूँ:


पुराने समय में युवनाश्व नाम के एक राजा हुए थे। वे बहुत उदार, धर्मात्मा और देवताओं एवं ब्राह्मणों की पूजा करने वाले थे। उसके राज्य में विष्णुशर्मा नाम के एक विद्वान् ब्राह्मण रहते थे। वे वेदों के ज्ञाता तथा धर्मशास्त्र का अनुसरण करने वाले थे। उनके सात पुत्र हुए। वे सब धनी थे लेकिन आपसी वैमनस्यता की वजह से वे सब अलग रहने लगे। उनके पिता हरेक पुत्र के घर क्रमशः एक-एक दिन भोजन करते थे। लेकिन कोई उनका आदर सत्कार नहीं करता था। 


धीरे-धीरे वह वृद्ध होकर दुर्बल हो गए। वे अपनी पुत्र-वधुओं द्वारा अपमानित होकर रोते रहते थे। एक बार विष्णु शर्मा गणेश चतुर्थी का व्रत रखकर अपनी बड़ी पुत्रवधू के घर पहुँचे। उन्होंने कहा- हे बहूरानी! आज मैंने गणेश जी का व्रत किया है। तुम पूजन का सामान इकट्ठा कर दो। गणेश जी खुश होकर बहुत धन देंगे। 


यह सुनकर बहू कठोर वाणी में बोली, “ससुर जी मुझे घर के कार्यों से ही अवकाश नहीं मिलता मेरे पास फिजूल के कामों में पड़ने का वक्त नहीं है। आप सदैव ही कुछ न कुछ कार्य बताते रहते हो। आज गणेश जी का व्रत करने को कह दिया। मैं गणेश व्रत को नहीं जानती और न ही तुम्हारे गणेश जी को। आप यहाँ से चले जाइए।” 


बहू की डांट-फटकार सुनकर वह बाकी बहुओं के घर क्रमशः गया परन्तु सभी ने डाँट फटकार कर उसे भगा दिया। सभी जगह से अनादर पाकर वह दुर्बल शरीर ब्राह्मण बहुत ही दुखी हुआ अन्त में वह छोटी बहू के घर जा बैठा। छोटी बहू बहुत निर्धन थी। वह संकुचाता हुआ बोला कि अरी बहूरानी ! अब मैं कहा जाऊँ। सब बहुओं ने मुझे अपने घर से दिया। 


तेरे पास तो व्रत के सामान को इकट्ठा करने का कोई साधन नहीं दीख रहा। मैं स्वयं भी बहुत वृद्ध हो गया हूँ। हे कल्याणी बहू! मैं बार-बार विचारता हूँ कि इस व्रत को करने से सिद्धि मिलेगी और सभी दुखों का नाश हो जाएगा। 


अपने ससुर की यह बात सुनकर बहू बोली। हे ससुर जी! आप इतने परेशान क्यों हो रहे हैं? आप स्वेच्छापूर्वक व्रत कीजिए। आपके साथ मैं भी इस व्रत को करूँगी। इससे हमारे दुखों का नाश होगा। ऐसा कहकर छोटी बहू कहीं से भीख मांग लाई और उसने अपने तथा ससुर के लिए अलग-अलग लड्डू बनाये। ससुर के साथ पूजन किया। इसके बाद आदर से ससुर को भोजन कराया। भोजन की कमी के कारण आप कुछ न खाकर भूखी रही। 


आधी रात के बाद ससुर को उल्टी-दस्त होने लगे जिससे उसके दोनों पैर गंदे हो गए। उसने ससुर के पैर धुलवाए और शरीर पोंछा। वह दुखी होने लगी कि मुझ अभागिन के कारण आपकी ऐसी दशा क्यों हुई? रात्रि में अब मैं कहाँ जाऊँ? मुझे कोई उपाय सुझाइए। सारी रात विलाप करते रहने से अन्जाने में उसका जागरण भी हो गया।


गणेश जी उसके व्रत से खुश हुए। कुछ समय बाद उसकी पति की बहुत अच्छी नौकरी लग गई और उसे भी काम मिल गया।  वो हर बार गणेश जी का व्रत रखते रहे और धीरे धीरे ऐसे करके उसने पैसे भी बचा लिए। ससुर ने कहा ये सब तुम्हारी श्रद्धा-भक्ति का फल है। 


तुम्हारी भक्ति से गणेश जी प्रसन्न हो गये हैं और उन्होंने इस व्रत के करने से ही तुम्हें इतना धन दिया है। बहू कहने लगी हे ससुर जी! आपकी कृपा वश गणेश जी प्रसन्न हुए हैं। मेरी निर्धनता दूर हुई है और मुझे अपार धन सम्पत्ति प्राप्त हुई है। आप धन्य हैं। आपकी कृपा से ही मैं धन्य हुई। अब छोटी बहू के घर में अपार धन-सम्पत्ति देखकर अन्य बहुएँ बहुत क्रोधित हुई। वे कहने लगीं कि ससुर ने अपना सारा जमा किया हुआ धन छोटी बहू को दे दिया है। 


भाईयों की आपसी कलह को देखकर विष्णुशर्मा भयवश कहने लगे कि इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। छोटी बहू को केवल इस व्रत के करने से ही गणेश जी ने प्रसन्न होकर यह कुबेर जैसी सम्पत्ति प्रदान की है। हे बहुओं मैंने पहले तुम्हारे घर जाकर इस व्रत को करने के लिए कहा था परन्तु तुमने मुझे झिड़क दिया। छोटी बहू ने भीख माँगकर इस व्रत को किया। इस व्रत को करने से गणेश जी ने प्रसन्न होकर इसको अपार सम्पत्ति प्रदान की है।

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