(महाराज दशरथ की कथा)
मार्गशीर्ष कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत कथा |
मार्गशीर्ष कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत किस महीने में आता है?
मार्गशीर्ष कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत नवम्बर या दिसम्बर के महीने में आता है।
मार्गशीर्ष कृष्ण में गणेश जी के किस नाम की पूजा करनी चाहिए?
इस दिन ‘गजानन’ नाम के गणेश जी की पूजा करनी चाहिए।
विवरण:
यह व्रत संकटनाशक गणेश चतुर्थी व्रत में से एक है। इस व्रत को आप अपनी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए कर सकते हैं। यह व्रत आपके घर में सुख-शांति लाता है। इस व्रत में आप शांति पाठ भी पढ़ सकते हैं। रात को चंद्रमा को जल चढ़ाने के बाद व्रत पूर्ण होगा।
कथा:
॥ श्री महागणाधिपतये नमः ॥
पार्वती जी ने गणेश जी से पूछा कि अगहन मास की कृष्ण चतुर्थी को किस गणेश जी की पूजा किस ढंग से करनी चाहिए ?
गणेश जी ने कहा कि हे माता! अगहन माह में पहले कही गई विधि से “गजानन” नामक गणेश जी की उपासना करनी चाहिए। इसके पश्चात् अर्घ्य देना चाहिए। सारे दिन व्रत रखकर पूजन के पश्चात् ब्राह्मण को भोजन कराकर जौ, चावल, चीनी, तिल और घी की सामग्री बनाकर हवन करावे तो वह अपने मन को अपने वश में कर सकता है। इस बारे में आपको एक पुरानी कथा सुनाता हूँ।
पुराने समय में त्रेता युग में दशरथ नाम के एक राजा थे। वे राजा शिकार करने के बहुत शौकीन थे। एक बार दशरथ शिकार के लिए जंगल में गए और वहाँ भूल से उन्होंने श्रवण कुमार नामक एक ब्राह्मण का वध कर दिया। उसके अन्धे माता-पिता ने राजा दशरथ को शाप दिया कि जिस तरह हम पुत्र के वियोग में मर रहे हैं उसी तरह तुम भी एक दिन पुत्र शोक में मरोगे।
इससे राजा बहुत चिन्तित हुए। उनका मन चिंता में रहने लगा और वे हमेशा भविष्य के विचार में लगे रहने लगे। राजा को दुखी देख कर समस्त प्रजा भी परेशान रहने लगी। इस बात के बारे में सोच कर राजा और परेशान रहने लगा। जब इस सोच का कुछ उपाय नहीं निकल रहा था तब दशरथ ने अपने राजगुरुको बुला के सब कथा कह सुनाई। तब गुरुदेव ने उनको मन को शांत और वश में करने के लिए अगहन मास की गणेश चतुर्थी का व्रत करो। दशरथ ने इसके पश्चात अगहन माह की गणेश चतुर्थी का व्रत और यज्ञ किया और तब से हर माह की गणेश चतुर्थी का व्रत रखने लगा जिससे उसका मन शांत हो गया।
फिर बाद में गुरु की आज्ञा से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। इस व्रत के प्रभाव के कारण चार भुजाओं वाले जगदीश्वर ने स्वयं श्री राम रूप में राजा दशरथ के घर में पुत्र रूप में अवतार लिया और लक्ष्मी जी सीता जी के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुई।
जब रावण ने देवी सीता का हरण कर के अशोक वाटिका में ले आया तब देवी सीता भी पति के वियोग में बहुत चिंतित रहने लगी तब उन्होंने भी गणेश चतुर्थी का व्रत किया। यज्ञ के अभाव में पूरी श्रद्धा से गणेश जी का मन ही मन पूजन किया जिससे उनका विश्वास वापस बन पाया और वो पति वियोग में खुद को संभाल पायी।