पौष कृष्ण-गणेश चतुर्थी कथा व्रत कथा Spiritual RAGA

(राक्षस राज रावण की कथा )

पौष कृष्ण-गणेश चतुर्थी कथा व्रत कथा
पौष कृष्ण-गणेश चतुर्थी कथा व्रत कथा

पौष कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत किस महीने में आता है?


पौष कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत दिसम्बर या जनवरी के महीने में आता है।


पौष कृष्ण में गणेश जी के किस नाम की पूजा करनी चाहिए?


इस दिन ‘लम्बोदर’ नाम के गणेश जी की पूजा करनी चाहिए।


विवरण:


यह व्रत संकटनाशक गणेश चतुर्थी व्रत में से एक है। इस व्रत को आप अपनी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए कर सकते हैं। यह व्रत आपके घर में सुख-शांति लाता है। इस व्रत में आप शांति पाठ भी पढ़ सकते हैं। रात को चंद्रमा को जल चढ़ाने के बाद व्रत पूर्ण होगा।


कथा:

॥ श्री महागणाधिपतये नमः ॥


पार्वती जी ने गणेश जी से पूछा, “हे पुत्र! पौष माह में किस गणेश जी की पूजा करनी चाहिए? पूजा का विधान क्या है और भोजन क्या करना चाहिए? संक्षेप में आप यह सब बतलाइए।”


गणेश जी ने कहा, “हे माता! पौष माह की चतुर्थी संकटनाशिनि होती है। इस दिन लम्बोदर नामक गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। सारे दिन शान्त स्वभाव से उपवास रखकर व्रत करे। ब्रह्मचर्य का पालन करे, दिन में सोये नहीं। रात को पूजा से निपटकर ब्राह्मण को भोजन कराए। 


इस सम्बन्ध में हम आपको एक पुरानी कथा सुनाते हैं:


एक बार रावण ने सभी देवताओं को जीत लिया। घमण्ड के नशे में चूर होकर उसने संध्या करते हुए बालि को पीछे से जाकर पकड़ लिया। शक्तिशाली बालि, रावण को अपनी बगल में दबाये हुए आकाश के रास्ते किष्किन्धापुरी पहुँचा और रावण को खिलौने के रूप में अपने पुत्र अंगद को दे दिया। 


अंगद ने रावण के गले में रस्सी बाँधकर उसे नगर में घुमाना शुरू कर दिया। संसार को जीतने वाले रावण की यह दशा देखकर समस्त नगर में रहने वाले उस पर हँसने लगे। वे कहने लगे, “अरे जरा देखो तो सही, यह विश्वविजेता रावण, आज राजकुमार अंगद द्वारा सड़कों पर घुमाया जा रहा है।” नगरवासियों की बातें सुनकर रावण शर्मिंदा होकर लम्बे-लम्बे साँस लेने लगा। उसका घमण्ड चूर-चूर हो गया। 


उसने अपने नाना पुलस्त्य मुनि को याद किया। अपने नाती की दीन पुकार सुनकर मुनि को अचम्भा हुआ कि उसके नाती की ऐसी दशा क्यों हुई। अधिक गर्व करने से देव, दानव, मनुष्य आदि सभी का नाश जरूर होता है। रावण के पास आकर मुनि ने पूछा, “तुमने मुझे क्यों याद किया है?” 


रावण ने कहा, “हे नाना जी! देवताओं को जीतने के कारण घमण्ड करने से मेरी यह दुर्गति हुई है। मैंने पूजा करते हुए एक वानर राज को देखा। पश्चिमी महासागर के किनारे पर मैंने उसे पीछे से पकड़ने की कोशिश की। परन्तु मैं ही उसके हाथों पकड़ा गया। उसने मुझे यहाँ लाकर मेरे गले में रस्सी बांधकर अपने लड़के को खेलने के लिए दे दिया। 


इस दुर्दशा को देखकर नगरवासी मेरी हँसी उड़ाते हैं। इसी चिन्ता में मैं दुखी रहता हूँ। रस्सी में बंधे रहने से मैं कमजोर हो गया हूँ। अब मुझे क्या करना चाहिए? मेरे समान आपके कुल में कोई अन्य कुल को कलंकित करने वाला नहीं है। अब आप ही मुझे बचा सकते हैं।”


पुलस्त्य ऋषि ने कहा, “हे रावण! डरने वाली कोई बात नहीं है, मैं तुम्हें इससे छुटकारा दिला दूंगा। बालि देवराज इन्द्र के वीर्य से पैदा हुआ है और तुमसे अधिक शक्तिशाली है। यह राजा दशरथ के पुत्र श्री राम जी के हाथों मारा जाएगा। 


हे दैत्यराज! यदि तुम बालि के बन्धन से छुटकारा चाहते हो तो मेरा कहा मानकर संकटनाशक गणेश जी का व्रत करो। पुराने समय में वृत्रासुर की हत्या के पश्चाताप हेतु इन्द्र ने इस व्रत को किया था। इसलिए तुम भी इसी संकटनाशक व्रत को करो। बहुत जल्दी ही तुम्हारा संकट दूर हो जायेगा।”


ऐसा आदेश देकर पुलस्त्य ऋषि वन में प्रस्थान कर गये। तत्पश्चात् रावण ने इस व्रत को किया। इस व्रत के करने से रावण उसी समय बन्धन मुक्त हो गया तथा सुख से अपना राज्य करने लगा।

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