प्राचीन समय में श्री कृष्णचन्द्र जी ने एकादशी के उत्तम व्रत का माहात्म्य विधि पूर्वक वर्णन किया है। जो कोई इस माहात्म्य को सुनेगा वह अनेक सुखों को भोगकर विष्णुलोक को प्राप्त होगा। अपने घर में आदर पूर्वक नैवेद्य आदि से श्री गोविन्द का पूजन करके भक्ति से दीपदान करें।
सफला एकादशी (पौष कृष्णा) व्रत कथा |
पौष कृष्णा पक्ष की एकादशी का क्या नाम है?
पौष कृष्णा पक्ष की एकादशी का नाम है: सफला एकादशी।
सफला एकादशी कौन से महीने में आते है?
सफला एकादशी दिसंबर-जनवरी में आते है।
सफला एकादशी का व्रत कब आता है?
सफला एकादशी का व्रत, पौष महीने की कृष्णापक्ष को आता है।
सफला एकादशी का व्रत कैसे करे?
इसके नारायण अधिदेव हैं, विधिपूर्वक उनका पूजन करें। व्रत के दिन अच्छे ऋतु फलों से मेरा पूजन करें। सफला में दीपदान विशेष उत्तम कहा है। रात्रि में विधि पूर्वक दीपदान करना चाहिए। जब तक नेत्र खुले रहें तब एकाग्रचित्त से रात्रि में जो जागरण करे उसके पुण्य का फल सुनो।
एकादशी का व्रत कितना उत्तम माना जाता है?
उसके समान न तो यज्ञ है, न तीर्थ, न संसार में कोई व्रत है। पांच हजार वर्ष तपस्या करने से जो फल मिलता है, वह सफला एकादशी के व्रत करने से मिलता है।
कथा:
एक समय की बात है, महिष्मत राजा अपने राज्य की देखभाल बहुत ही अच्छे से करते थे। राजा के चार पुत्र थे। उनमें लुम्पक नामक बड़ा लड़का बड़ा पापी था। वह परस्त्री गामी, जुआरी और वेश्या गामी था। राजा ने बहुत कोशिश की अपने पुत्र को सुधारने की, मगर सफल न हो सका। तो जब राजा की पास कोई उपाय न बचा तो पुत्र को राज्य से निकाल दिया। तब लुम्पक मन में सोचने लगा कि पिता और बन्धुओं ने मुझको त्याग दिया है, अब मुझको क्या करना चाहिये? इस प्रकार चिन्ता करते हुए उसने विचार किया कि मैं दिन में वन में चला जाऊंगा फिर रात को वन से आकर राज्य में रहूँगा। यह विचार कर वह वन में चला गया नित्य जीव हिंसा और चोरी करता था। वहां अति प्राचीन पीपल का पेड़ था। उस वन में उस वृक्ष को देवता की तरह मानते थे। उसी स्थान पर वह पापी लुम्पक रहता था। हर रोज सुबह वन में चला जाता और रात को राज्य में आकर सो जाता। एक दिने राजा को पता चल गया कि लुम्पक रात को राज्य में आकर सोता है। तो राजा ने राज्य के बाहर सैनिको को पहरे पर खड़ा कर दिया। तो जब रात को वो सोने के लिए जा रहा था तो सैनिको ने उसे जाने नहीं दिया और राजा से कहने पर उसके सारे वस्त्र इत्यादि भी ले लिए। निन्दित और दुष्कर्म करते हुए पौष कृष्ण सफला एकादशी का दिन आया। दशमी की रात्रि थी और वस्त्र हीन होने के कारण वो शीत से पीड़ित होकर बेहोश हो गया। शीत के कारण पीपल के नीचे मृतक के समान पड़ा था। दांतों को कटकटाते हुए रात बीत गई। सूर्योदय होने पर भी उसको होश नहीं हुआ। सफला एकादशी के दिन लुम्पक बेहोश पड़ा रहा। जब मध्यान्ह हुआ तब उसको होश आया। चैतन्य होने के थोड़ी देर बाद वह अपने आसन से उठा वह पग- पग पर गिरता-पड़ता लंगड़े की तरह चलने लगा। वह भूख प्यास से पीड़ित होकर वन में गया उस दुष्ट लुम्पक को जीव हिंसा की शक्ति नहीं रही जो फल भूमि पर पड़े हुए थे उनको उठा लाया। जब तक वह आया सूर्य अस्त हो गया। अब क्या होगा ऐसा कहकर दुःखी होकर विलाप करने लगा। वे सब फल पेड़ के नीचे रख दिये। रात में उसको नींद नहीं आई। इससे उसका जागरण हो गया। मधुसुदन भगवान् ने उन फलों का पूजन और सफला एकादशी का व्रत स्वीकार कर लिया। इस प्रकार लुम्पक ने अकस्मात् व्रत कर लिया। इस व्रत के प्रभाव से भगवान प्रसन्न हुये और लुम्पक को अपनी सब गलतिया समझ में आने लगी। उसको आभास होने लगा की वो कहा गलत था। एकादशी व्रत की कृपा से उसे सद्बुद्धि प्राप्त हुई और वो अगले दिन ही सुबह अपने पिता के पास वापस पूछा और जा कर माफ़ी मांगी। फिर पिता की आज्ञा से कुछ वर्ष हर तरह के काम कर के पहले अपनी पुरानी गलतिया सुधरी और फिर राजा के कार्य सीखे। अंत में अपनी कुशलता के पिता का दिल जीत लिया। उसको देखकर पिता ने निष्कंटक राज्य उसको दे दिया। उसने बहुत वर्षो तक राज्य किया। एकादशी के दिन वह भगवान की भक्ति में लीन रहने लगा। वृद्धावस्था प्राप्त होने पर पुत्र को राजगद्दी देकर वन को चला गया। इस प्रकार से जो सफला एकादशी का व्रत करते हैं, वे इस लोक में यश लेकर निःसन्देह मोक्ष को प्राप्त करेंगे।