दालभ्य ऋषि बोले- कि मनुष्य लोक में आकर लोग ब्रह्म हत्यादि अनेक पाप करते हैं, पराये धन को चुराते हैं, दूसरों को कष्ट देते हैं ऐसा करने पर भी वे नरक में न जाएं हे भगवान! अल्पदान करने से अनायास पाप दूर हो जायें उसे कहिये| पुलस्त्य मुनि बोले - हे महाभाग ! तुमने बहुत सुन्दर प्रश्न किया है। जिसको ब्रह्मा, विष्णु और इन्द्रादि देवताओं ने किसी से नहीं कहा। तुम्हारे पूछने पर उस गुप्त बात को तुमसे कहूँगा।
षट्तिला एकादशी (माघ कृष्ण) व्रत कथा |
माघ कृष्णा पक्ष की एकादशी का क्या नाम है?
माघ कृष्णा पक्ष की एकादशी का नाम है: षट्तिला एकादशी।
षट्तिला एकादशी कौन से महीने में आते है?
षट्तिला एकादशी जनवरी-फरवरी में आते है।
षट्तिला एकादशी का व्रत कब आता है?
षट्तिला एकादशी का व्रत, माघ महीने की कृष्णापक्ष को आता है।
षट्तिला एकादशी का व्रत कैसे करे?
माघ मास के आरम्भ में ही शुद्धता से स्नान करके इन्द्रियों को वश में करे । जल से हाथ पैर धोकर भगवान का स्मरण करे। ऐसा गोबर ले जो पृथ्वी पर न गिरा हो। उसमें तिल और कपास मिलाकर पिंड बना लें। उनके 108 पिंड बनावे| स्नान करके पवित्र होकर कीर्तन करते हुए एकादशी का उपवास करें।
रात्रि जागरण करे और गोबर के बने हुये 108 पिंडों से हवन करे। शंख, चक्र, गदाधारी भगवान् का पूजन करे। चन्दन, अगर, कपूर चढ़ावे। बूरा मिला हुआ नैवेद्य चढ़ाकर बारम्बार कृष्ण का नाम स्मरण करे यदि इस सब का अभाव हो तो सुपारी ही श्रेष्ठ है। फिर अर्घ्य देकर जनार्दन का पूजन करके प्रार्थना करे।
एकादशी का व्रत कितना उत्तम माना जाता है?
खेत में तिल बोने से जितनी संख्या में तिल पैदा होते है। उतने हजार वर्ष तक वह मनुष्य स्वर्ग में निवास करता है। तिल से स्नान उबटना, होम, तर्पण, भोजन और दान करे, ये छः प्रकार की विधि पापों का नाश करती है। इसी से इस एकादशी का नाम षट्तिला है।
कथा:
एक ब्राह्मणी मनुष्य लोक में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करती हुई देवताओं का पूजन करती थी। वह पूर्ण मास व्रत में लगी हुई सदा भगवान भक्ति करती थी। कृष्ण का उपवास करती हुए पूजा में लगी रहती थी। नित्य व्रत करने से उसका शरीर दुर्बल हो गया। भगवान ने देखा इसने अन्न का दान नहीं किया जिससे कि सबकी तृप्ति होती है। उसकी जांच करने को भगवान मनुष्य लोक में गए। भिक्षुक का रूप धारण करके भिक्षा पात्र लेकर ब्राह्मणी से भिक्षा मांगने लगे। ब्राह्मणी को उस भिक्षुक पर शक हुआ कि ये भिक्षुक नहीं है। तब ब्राह्मणी बोली "हे ब्राह्मण! तुम कहां से आये हो मुझसे सत्य कहो।" फिर भगवान ने कहा- "हे सुन्दरी भिक्षा दो।" तब उसने क्रोध में भरकर मिट्टी का डेला भिक्षा पात्र में डाल दिया। फिर भगवान स्वर्ग को चला गए। मिट्टी के पिण्डदान करने से उसको एक सुन्दर घर मिल गया। परन्तु उस घर में अन्न और धन नहीं था। तब घर से निकल कर भगवान के पास आई और बहुत कुपित होकर बोली "सब लोकों को रचने वाले भगवान का मैंने बड़े कठिन व्रत उपवास और पूजा से आराधाना की है। परन्तु हे जनार्दन! मेरे घर में अन्न, धन कुछ भी नहीं हैं।” तब भगवान ने उससे कहा “तू जैसे आई है उसी तरह अपने घर चली जा। देवताओं की स्त्रियां कौतूहल के वश तुझको देखने आयेंगी तब षट्तिला एकादशी का माहात्म्य बिना पूछे दरवाजा मत खोलना।” तब देवताओं की स्त्रियां उसे देखने आयीं और कहा, “हम तुम्हारे दर्शन के लिए आई हैं। तुम दरवाजा खोलो।” मानुषी बोली, “यदि तुम मुझे अवश्य ही देखना चाहती हो तो दरवाजा खोलने से पहले षट्तिला का व्रत पुण्य और माहात्म्य कहना होगा।” उनमें से एक ने माहात्म्य सुना दिया और कहा, “मानुषी! दरवाजा खोल दो तुझको देखना आवश्यक हैं।” दरवाजा खोल दिया। उन सबने मानुषी को देख लिया। देवियों के उपदेश से सत्य पर चलने वाली उस मानुषी ने मुक्ति देने वाली षट्तिला का व्रत किया। तब वह मानुषी क्षण भर में रूपवती और कान्ति युक्त हो गई और उसके यहां धन, धान्य, वस्त्र, सुवर्ण चाँदी ये सब हो गया। विधि पूर्वक किया हुआ दान सब पापों का नाश करता है । इमसे शरीर में थकावट, अनर्थ अथवा कष्ट नहीं होगा।