Surya Stuti - 1 Spiritual RAGA

Surya dev with 7 horses
Surya Dev

स्तुति का अर्थ है स्तुति करना, स्तुति करना, स्तुति करना और भगवान के गुणों, कर्मों और प्रकृति की अपने हृदय में अनुभूति करके उनकी स्तुति करना। इस सूर्य स्तुति के रचयिता श्री गोस्वामी तुलसीदास जी हैं।


Makar Sankranti


दीन-दयालु देवा।

कर मुनि, मनुज, सुरासुर सेवा ॥ १ ॥ 

 

हे दीनदयालु सूर्य भगवान! मुनि, मनुष्य, देवता और राक्षस सभी आपकी सेवा करते हैं।

 

हिम-तम-करि केहरि करमाली। 

दहन दोष-दुख-दुरित-रुजाली ॥ २ ॥ 

 

आप ठंढ और अन्धकाररुपी को मारने वाले वनराज सिंह हैं। आप किरणों की माला पहनते हो। आप दोष, दुःख, दुराचार और रोगों को भस्म कर डालते हैं। 

 

कोक-कोकनद-लोक-प्रकासी। 

तेज-प्रताप-रूप-रस-रासी ॥ ३ ॥ 

 

रात के बिछुड़े हुए चकवाचकवियों को मिला कर प्रसन्न करने वाले, कमल को खिलाने वाले तथा समस्त लोकों को प्रकाशित करने वाले हैं। आप तेज, प्रताप, रुप और रसकी खानि हैं।  

 

सारथि-पंगु, दिब्य रथ-गामी। 

हरि-संकर-बिधि-मूरति स्वामी ॥ ४ ॥ 

 

आप दिव्य रथपर चलते हैं, आपका सारथी (अरुण) लूला (बिना हाथ का) है। हे स्वामी! आप विष्णु, शिव और ब्रह्माके का रुप हैं।

 

वेद पुरान प्रगट जस जागै। 

तुलसी राम-भगति बर माँगै ॥ ५ ॥ 

 

वेद-पुराणों में आपकी कीर्ति जगमगा रही है। तुलसीदास आप से श्री राम भक्ति का वर माँगता है।


Surya Stuti -2 Spiritual RAGA


Surya mantra Spiritual RAGA

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