सञ्जय उवाच ।
दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा ।
आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत् ।। 2।।
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sanjaya uvacha ।
drishtva tu pandavanikam vyudham duryodhanastada ।
Acharyamupasangamya raja vachanamabravit ।। 2।।
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संजय ने कहाः
हे राजन्! पाण्डवों की सेना की व्यूहरचना का अवलोकन कर राजा दुर्योधन ने अपने गुरु द्रोणाचार्य के पास जाकर इस प्रकार के शब्द कहे।
Sanjay said:
On observing the Pandava army standing in military formation, King Duryodhan approached his teacher Dronacharya, and said the following words.
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विवरण:
कुरुक्षेत्र का उल्लेख वेदों में 'कुरुक्षेत्र देव यजनम्' के रूप में किया गया है अर्थात 'कुरुक्षेत्र, स्वर्ग के निवासियों के लिए तीर्थ स्थल है।' धृतराष्ट्र को उस पवित्र तीर्थ स्थान के प्रभाव के विषय में संदेह था कि उसके कहीं उनके पुत्र, पाण्डु पुत्रों से समझोता न कर ले। तो धृतराष्ट्र युद्ध की शुरुआत की पुष्टि करना चाहते थे। संजय धृतराष्ट्र के इस प्रश्न के प्रमाणीकरण को समझा गया। वो धृतराष्ट्र को विश्वास करना चाहता था कि युद्ध विचारधारा होगा। तो संजय ने उनसे कहा कि पाण्डवों की सेना व्यूह रचना कर युद्ध करने को तैयार है।
धृतराष्ट्र ने हस्तिनापुर के शासन की भागदौड़ दुर्योधन के हाथों में बहुत काम उम्र में दे दी थी। दुर्योधन प्रजा पर बहुत अत्याचार करता था और पाण्डु पुत्रों से बहुत नफरत करता था और बस हस्तिनापुर, जो पांडवो की नगरी थी , उस पर अपना दबदबा बनाना चाहता था। दुर्योधन को यकीन था कि इस युद्ध में वही जीतेगा क्योकि उसके पास सेना अधिक थी और उसने यह कल्पना की थी कि पाण्डव कभी भी इतनी विशाल सेना एकत्रित नहीं कर सकते थे जो उनकी सेना का सामना कर सके।
फिर धृतराष्ट्र ने कहा कि दुर्योधन क्या कर रहा था। इस पर संजय ने बताया की दुर्योधन पाण्डवों की सेना को देखकर अपने सेनापति द्रोणाचार्य के पास गया। यदपि वो राजा था मगर स्थिति इतनी व्याकुल करने वाली थी कि उसे अपने सेनापति के पास जाना पड़ा। वह द्रोणाचार्य के पास अपनी सेना का आँकलन करने गया।
Description:
Kurukshetra is mentioned in the Vedas as 'Kurukshetra Deva Yajanam' which means 'Kurukshetra is the place of pilgrimage for the inhabitants of heaven.' Dhritarashtra had doubts about the effect of that holy pilgrimage place, lest his son. Pandu might compromise with his sons. So Dhritarashtra wanted to confirm the beginning of the war. The authentication of this question of Sanjaya Dhritarashtra was understood. He wanted Dhritarashtra to believe that the war would be ideological. So Sanjay told him that the army of Pandavas is ready to fight after forming an array.
Dhritarashtra had left the running of the administration of Hastinapur in the hands of Duryodhana at an early age. Duryodhan used to torture the people a lot and hated the sons of Pandu very much and just wanted to dominate Hastinapur, which was the city of Pandavas. Duryodhana was sure that he would win this war because he had more army and he imagined that the Pandavas could never muster an army large enough to face their army.
Then Dhritarashtra asked what Duryodhana was doing. On this Sanjay told that Duryodhana went to his commander Dronacharya after seeing the army of Pandavas. Although he was the king, the situation was so disturbing that he had to go to his general. He went to Dronacharya to assess his army.